आचार्य किशोर कुणाल अधिकारी ही नहीं थे, बल्कि एक सनातनी योद्धा भी थे

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“वो महावीर मंदिर में घंटी बजाता है। ऐसे अफसर को या तो कान पकड़ कर निकाल देना चाहिए, या जेल भेज देना चाहिए।”

बात तब की है जब लालू यादव का नाम राजनीति की क्षितिज पर चमक रहा था। लालू ने 1996 लोकसभा चुनाव के बाद अपनी पार्टी के अपराधी तस्लीमुद्दीन को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बनवाया क्योंकि उसे एक अधिकारी को सबक सिखाना था। तस्लीमुद्दीन को CISF की जिम्मेदारी दी गई। लालू को दिक्कत थी महावीर मंदिर से, एक सनातनी अधिकारी से, उसकी आस्तिकता से।

रविवार के दिन आनन-फानन में गृह मंत्रालय का दफ्तर खुलवा कर तबादले का आदेश जारी करने की कोशिश की गई। तस्लीमुद्दीन ने डायरेक्टर (पुलिस) KN सिन्हा को बुला कर कहा कि किशोर कुणाल महावीर मंदिर के कार्य में व्यस्त रहते हैं, इसीलिए उनको हटाओ। सिन्हा ने मना कर दिया। CISF ने भी कह दिया कि वो ऐसे निष्ठावान अधिकारी को नहीं खोना चाहता। चंद्रशेखर सक्रिय हुए और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री HD देवेगौड़ा को पत्र लिख कर तबादला रुकवाने को कहा। किशोर कुणाल ने ऐच्छिक सेवानिवृत्ति की याचिका डाल दी। उन्हें जॉर्ज फर्नांडिस का समर्थन मिला। तभी वामपंथी नेता इंद्रजीत गुप्त ने गृह मंत्रालय सँभाला और दबाव में तस्लीमुद्दीन को मंत्रालय से निकाल बाहर किया।

लेकिन, तबादले का आदेश अब भी वापस नहीं हुआ था। मामला न्यायपालिका में गया। तस्लीमुद्दीन की तरफ से विभूति नारायण पांडेय वकील बने, लेकिन उस अजातशत्रु की लोकप्रियता देखिए कि वकील ने पत्नी ने ही विद्रोह कर दिया कि महावीर मंदिर का निर्माण कराने वाले के विरुद्ध आप कोई केस नहीं लड़ेंगे। पटना उच्च न्यायालय में किशोर कुणाल की जीत हुई। सामने बिहार सरकार और केंद्र सरकार, दोनों थी। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया।

के पराशरण ने बिना एक रुपया लिए हुए किशोर कुणाल का केस लड़ा। जी हाँ, वही – हमारे राम मंदिर के अधिवक्ता। उन्होंने पैसे तो नहीं लिए, उलटा महावीर मंदिर को दान ही देते थे। पराशरण ने हरीश साल्वे को नियुक्त किया। साल्वे ने भी एक भी रुपया फीस के रूप में नहीं लिया। यहाँ भी जीत सत्य की हुई।

‘ज्ञान निकेतन’ के जरिए उन्होंने शिक्षा की अलख जगाई, कैंसर संस्थान के जरिए उन्होंने ग़रीबों को इलाज मुहैया कराया। उनकी पुस्तक ‘Ayodhya Revisited’ ने इस विवाद में न्यायालय में एक दस्तावेज का कार्य किया। जिस पूर्वी चम्पारण जिले से मैं आता हूँ, इसी धरती पर उनका भी जन्म हुआ था।

आचार्य किशोर कुणाल केवल एक IPS अधिकारी और एक सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं थे, बल्कि हमारे लिए वो पटना के महावीर मंदिर का जीर्णोद्धार करने वाले एक सनातनी योद्धा थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन महावीर जी को समर्पित कर दिया। किशोर कुणाल एक अध्येता थे, अयोध्या पर उन्होंने एक शानदार पुस्तक लिखी।

किशोर कुनाल बिहार में एक चलती-फिरती किंवदंती बन चुके थे, घर-घर में उनकी चर्चा होती थी। वो न सिनेमा से आते थे न राजनीति से – ऐसे में बिहार में उन्हें इस तरह की उपलब्धि मिलना उन्हें महान आत्माओं के एक अलग वर्ग में खड़ा करता है।

‘धार्मिक न्यास परिषद’ के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कैमूर स्थित भारत की प्राचीनतम सक्रिय मंदिर माँ मुंडेश्वरी की प्रतिमा की खोज करवाई। मंदिरों में महादलित समुदाय से पुजारी नियुक्त किए गए जिससे न केवल सनातन एकता को बल मिला बल्कि जातिभेद की बात करने वाले सनातन धर्म के विरोधी प्रपंचियों को भी करारा जवाब मिला।

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