मंदिरों की जमीनों पर कब्‍जा करने वालों को गुंडा एक्‍ट के तहत करें गिरफ्तार-हाईकोर्ट.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को तमिलनाडु के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग को एक सार्वजनिक अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया जिसमें राज्य भर में मंदिर संपत्तियों के अतिक्रमणकारियों को एक निर्धारित अवधि के भीतर स्वेच्छा से जमीन सुपुर्द करने का आह्वान किया गया है। अदालत ने विभाग को विशेष रूप से अधिसूचना में इस बात का उल्लेख करने का निर्देश दिया है कि यदि अतिक्रमणकर्ता स्वेच्छा से मंदिर की संपत्तियों को निर्धारित समय सीमा के भीतर आत्मसमर्पण नहीं करते हैं तो उन्‍हें गुंडा एक्‍ट के तहत आपराधिक कार्यवाही के तहत गिरफ्तार किया जाए।

भारत में कभी मंदिर समाज का प्रमुख केंद्र हुआ करते थे, सिर्फ पूजा के लिए ही नहीं बल्कि शिक्षा और सामाजिकता के भी. औपनिवेशिक दौर में कई बड़े मंदिरों का प्रशासन मठों या फिर स्थानीय धार्मिक व्यवस्थाओं को सौंप दिए गए.1947 में भारत की आजादी के बाद सरकार के नियुक्त बोर्डों ने कई धर्मस्थलों की व्यवस्था देखनी शुरू की. कई राज्यों में मंदिर की संपत्ति की व्यवस्था के लिए कानून बनाए जिसका मंदिरों के ट्रस्टों ने विरोध किया.

भारत आधिकारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष देश है जिसमें धार्मिक अधिकारों की रक्षा की जाती है. बहुत से हिंदुओं की शिकायत है कि सरकार धर्म में दखल देती है. उदाहरण के लिए दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में  44,000 मंदिर हैं और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उनके पास 5 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है. मंदिरों को इस संपत्ति से होने वाली आमदनी का कुछ ही हिस्सा मिलता है क्योंकि इन जमीनों पर अवैध दुकानों और बस्तियों का कब्जा है. हिंदुओं के हक की बात करने वाले संगठन से जुड़े रमेश कहते हैं, “मंदिर की इतनी अधिक जमीन हड़प ली गई है कि हमारे लिए पूजा और शिक्षा की जगह घट गई है. इसके साथ ही स्कूल, अस्पताल या समामसेवी कामों के लिए जगह ही नहीं है. धीरे धीरे हिंदुओं की जमीन कम होती जा रही है.

तमिलनाडु में मंदिरों की व्यवस्था को चुनौती देने वाले वकील का कहना है कि दूसरी जगहों के मंदिर ट्रस्ट भी जमीनों के वैकल्पिक इस्तेमाल के बारे में सोंचेगे अगर उसका स्वामित्व उनके पास रहे और उन्हें उससे उचित आमदनी हो. उन्होंने कहा, “मंदिर की संपत्तियों को मंदिर ट्रस्टों को सौंपा जाए और तब जमीन के इस्तेमाल के समकालीन सिद्धांतों को लागू किया जाए, और हम ऐसे उपाय ढूंढ लेंगे जिससे आमदनी भी हो. हमें मंदिर की संपत्तियों की व्यवस्था आस्था और आध्यात्म के नजरिए से करनी चाहिए, सरकार का इस काम को करना गलत है.”

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