बच्चों के जीवन भर की यात्रा में उनकी सुरक्षा, संरक्षण और खुशहाली सुनिश्चित करें: नफीसा शफीक

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रेलवे सुरक्षा बल (RPF), चाइल्डलाइन और यूनिसेफ ने बिहार के 11 रेलवे स्टेशनों पर ‘सुरक्षित सफर’ की शुरुआत की

वापस लौटते हुए प्रवासियों के बीच संकटग्रस्त बच्चों को सहयोग एवं सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास

चाइल्डलाइन को पिछले साल संकटग्रस्त बच्चों के संबंध में कुल 13, 039 कॉल प्राप्त हुए

श्रीनारद मीडिया, पटना (बिहार):

सुरक्षित सफर-प्रवासी बच्चों और परिवारों के सहयोग के साथ उन तक पहुंचने के एक संयुक्त पहल की शुरुआत रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (RPF), चाइल्डलाइन और यूनिसेफ के संयुक्त प्रयास के द्वारा एक ऑनलाइन ओरिएंटेशन के माध्यम से की गयी। बिहार में 11 रेलवे प्लेटफार्मों पर 150 से अधिक युवा मोबिलाइज़र तैनात किए गए हैं। वे COVID-19 उपयुक्त व्यवहार (CAB) के बारे में जागरूकता बढ़ाने में रेलवे सुरक्षा बल (RPF) और चाइल्डलाइन की सहायता करेंगे और वापसी करने वाले प्रवासियों के बीच से उपेक्षा, दुरुपयोग और शोषण के प्रति संवेदनशील बच्चों और महिलाओं की पहचान करेंगे। उन्हें तत्काल सहायता (भोजन, चिकित्सा, अन्य आवश्यक जानकारियों ) के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और कल्याण के लिए विशिष्ट सेवाएं प्रदान करने के लिए उपलब्ध कोविड देखभाल और बाल संरक्षण सेवाओं से जोड़ेंगे। यह जानकारी यूनिसेफ बिहार के बाल संरक्षण अधिकारी, गार्गी साहा के द्वारा दिया गया। राज्य के 11 रेलवे स्टेशनों में गया, नरकटियागंज, मुजफ्फरपुर, कटिहार बक्सर, हाजीपुर, भागलपुर, दरभंगा, पटना जंक्शन, राजेंद्र नगर और छपरा शामिल हैं। इस पहल के अंतर्गत जीआरपीएफ, आरपीएफ एवं चाइल्डलाइन जैसे सहयोगी, विभागों, संगठनों और यूनिसेफ के प्रतिनिधियों का ऑनलाइन माध्यम से उन्मुखीकरण किया गया।

पिछले साल COVID -19 के कारण रिवर्स माइग्रेशन के कारण बाल शोषण की घटनाओं में वृद्धि देखी गयी, जिसमें बाल श्रम, तस्करी, घरेलू हिंसा जैसे जोखिम शामिल थे। COVID-19 की दूसरी लहर के दौरान, बच्चे और युवा तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। इस पहल का लक्ष्य लगभग 10 लाख प्रवासियों तक पहुंचना है, जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे और किशोर शामिल हैं। महामारी के कारण पैदा हुआ आर्थिक संकट और पलायन, बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। रेलवे स्टेशन महत्वपूर्ण प्रवेश बिंदु हैं, जिसके माध्यम से हम संवेदनशील बच्चों और महिलाओं की पहचान कर सकते हैं और तत्काल और दीर्घकालिक सहयोग प्रदान कर सकते हैं।यूनिसेफ बिहार के प्रमुख सुश्री नासिफ़ा बिन्ते शफ़ीक़ ने कहा सरकार और अन्य हितधारकों को बच्चे के पूरे जीवन चक्र के दौरान उनकी सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित करना है।

मुज़फ़्फ़रपुर के एसपी रेल अशोक कुमार सिंह ने कहा “हम महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करने वाले लोगों के प्रति एक उदाहरण स्थापित करने के लिए सभी भागीदारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि इन मामलों की अभियोजन और सजा की दर बढ़ सके”। उन्होंने लोगों से यह आग्रह किया कि पुलिस की मदद करें।
सीआईडी (कमजोर वर्ग) की एसपी सुश्री बीना कुमारी ने कहा, “बाल अधिकारों के उल्लंघन के मामलों को देखने के लिए प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (सीडब्ल्यूपीओ) होना चाहिए।” उन्होंने आगे बताया कि कर्मियों को बाल मनोविज्ञान की समझ होनी चाहिए ताकि बच्चों में यह विश्वास पैदा हो कि पुलिस और अन्य नामित अधिकारी उनकी ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद करने के लिए हैं।

चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन बिहार के समन्वयक सुशोभन सी ने विस्तार पूर्वक चाइल्ड लाइन 1098 के बारे में बताया। उन्होंने जानकारी दी कि 1098 सारे SAARC देशो में भी कार्यरत है। उन्होंने कहा की पिछले वर्ष CHILDLINE को बिहार से बच्चों से कुल 13039 कॉल आये थे, जहां उन्हें आपातकालीन सेवा की जरुरत थी। श्री सुशोभन ने साइलेंट कॉल्स के बारे में बताया जिसमे कॉल करने वाला व्यक्ति चुप रहता है और चाइल्ड लाइन के टीम को उनका विश्वास जितना पड़ता है तब जा कर बच्चे कुछ बोल पाते है।

यूनिसेफ बिहार के संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने मीडिया के महत्व के बारे में बताते हुए कहा सकारात्मक खबरों से लोगो में एक विश्वास जागता है और सही सूचना जनता तक पहुचती हमें उम्मीद, सहयोग और सकारात्मकता के संक्रमण को फैलाना है ओर covid को मिटाना है। बाल सखा के निदेशक सनत कुमार सिन्हा ने सभी को धन्यवाद दिया तथा रेलवे चाइल्ड लाइन टीम का मनोबल बढाया। उन्होंने कहा कि इस त्रासदी के समय वालंटियर्स और रेलवे चाइल्ड लाइन की टीम निरंतर अपने काम में लगी हुई है। यूनिसेफ बिहार के बाल सुरक्षा सलाहकार सैफुर रहमान ने परियोजना के डिजाईन के संबंध में विस्तार पूर्वक बताया। जबकिं रिचा बाजपेयी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

 

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