बिहार में पांच दिनों का देसी फूड फेस्टिवल,क्या है खास?

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इस मेले पर जेएनयू के प्रोफेसर ने लिखी किताब.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार के बक्‍सर जिले में इसी महीने एक खास उत्‍सव होने वाला है। धार्मिक और आध्‍यात्‍म‍िक महत्‍व वाला पांच दिनों का यह मेला एक तरह से देसी अंदाज वाला फूड फेस्टिवल है। इसमें पांच दिनों तक अलग-अलग बिल्‍कुल देसी भोजन लोग ग्रहण करते हैं। भारतीय संस्‍कृति के अनुरूप इस मेले में हर रोज भोजन ग्रहण करने से पहले लोग गंगा नदी और पवित्र सरोवरों में स्‍नान करते हैं और पूजा-उपासना करते हैं।

भोजन को प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है। बक्‍सर के पांच दिवसीय पंचकोशी मेले को लोककथाओं में भगवान श्रीराम से जोड़ा जाता है। अब जवाहर लाल नेहरू वि‍श्‍वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने इस मेले के सांस्‍कृतिक पक्ष को उजागर करते हुए एक किताब भी लिख दी है।

नेशनल बुक ट्रस्‍ट से प्रकाशित हुई है ‘पंचकोशी मेला’

बक्सर का प्रसिद्ध पंचकोशी मेला कुंभ, सोनपुर और हेनिस गोम्पा मेला की ही तरह आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस मेला में भारतीय ज्ञान, सामाजिक संस्कृति और मानव सभ्यता के विराट रूप का दर्शन होता है। मेला की इन्हीं खूबियों को साहित्य के पन्ने पर जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के प्रोफेसर डा. देवेंद्र चौबे ने स्थान दिया है। हिंदी के चर्चित समालोचक और कथाकार डा. चौबे के मानव संस्कृति और सभ्यता पर आलेख अक्सर छपते रहते हैं। नेशनल ट्रस्ट बुक से प्रकाशित पुस्तक ‘पंचकोशी मेला’ का लोकार्पण इस साल 23 नवंबर को पांच दिवसीय मेला से पूर्व 23 नवंबर को होगा।

गंगा घाटी में ऋषियों की महान परंपराएं

प्रोफेसर डा. चौबे ने बताया कि यह मेला आज देश के अनेकों जगह लगता है, लेकिन पुस्तक के केंद्र में बक्सर है, जहां करीब तीन हजार वर्ष पूर्व वाराणसी से बलिया के बीच एक सभ्यता का उदय हुआ, जिसका उल्लेख गंगा घाटी सभ्यता के रूप में देखने को मिलता है। बक्सर क्षेत्र में मौजूद ऋषियों के कारण यहां ज्ञान और दर्शन की अनेक परंपराएं जीवित हुईं। पंचकोशी के पांच स्थल अहरौली, नदांव, भभुअर, नुआंव और बक्सर में आज भी यह परंपराएं जीवित हैं।

भगवान राम से जोड़ती हैं लोककथाएं

बक्‍सर के पंचकोशी मेला को लोककथाओं में भगवान राम से जोड़ा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक बक्‍सर में ही मुनि विश्‍वामित्र का आश्रम था, जहां भगवान राम और उनके भ्राता लक्ष्‍मण ने काफी दिन गुजारे। लोककथाओं में कहा जाता है कि बक्‍सर शहर के आसपास के पांच गांवों में भगवान राम ने पांच दिनों तक भ्रमण करते हुए हर जगह अलग-अलग पकवान बनाकर खाए थे।

इस मेले का समापन जिला मुख्‍यालय बक्‍सर के चरित्रवन में लिट्टी-चोखा खाकर होता है। इससे पहले श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में स्‍नान करते हैं और रामरेखा घाट पर भगवान रामेश्‍वरनाथ की उपासना करते हैं।

पांच दिन, पांच स्‍थल और पांच प्रकार के व्‍यंजन

पंचकोशी मेला पांच दिनों तक चलता है। स्‍थानीय समाजसेवी जितेंद्र मिश्र ने बताया कि इस बार मेला 24 से 29 नवंबर तक चलेगा। मेले के पहले दिन बक्‍सर के बिल्‍कुल सटे अहिरौली नाम के गांव में  पुआ-पूरी का प्रसाद खाया जाता है। यह गांव बिल्‍कुल गंगा से सटे हुए है। इसे गौतम ऋषि‍ और उनकी पत्‍नी अहिल्‍या का स्‍थान बताया जाता है।

कहा जाता है कि इसी स्‍थान पर माता अहिल्‍या की मुलाकात भगवान श्रीराम से हुई थी। मेले के दूसरे दिन नदांव में खिचड़ी, तीसरे दिन भभुअर में दही-चूड़ा, चौथे दिन नुआंव में सत्‍तू और मूली का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। मेले के आखिरी दिन जिला मुख्‍यालय बक्‍सर के चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। आखिरी दिन मेले में काफी भीड़ होती है।

नई पीढ़ी चाहती- फूड फेस्टिवल के तौर पर भी हो विकास

नई पीढ़ी चाहती है कि इस मेले का फूड फेस्टिवल के तौर पर भी विकास हो तो अधिक लोग बक्‍सर की धार्मिक, आध्‍यात्‍म‍िक संस्‍कृति से परिच‍ित हो सकेंगे। खास बात यह है कि इस मेले के पांचों दिन बिहार के स्‍थानीय और बिल्‍कुल शुद्ध व्‍यंजनों को ही प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने से पहले गंगा नदी और पवित्र सरोवरों में स्‍नान के बाद स्‍थानीय मंदिरों में उपासना करने की परंपरा है।

इस तरह से पहुंच सकते हैं बक्‍सर

बक्‍सर, दानापुर रेलमंडल के अंतर्गत एक बड़ा स्‍टेशन है। नई दिल्‍ली से हावड़ा मेन रेल लाइन पर यह स्‍टेशन पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जंक्‍शन से पटना जंक्‍शन के लगभग बीचोबीच पड़ता है। राजधानी, तेजस और संपूर्ण क्रांति एक्‍सप्रेस जैसी चुनिंदा ट्रेनों को छोड़कर इस रूट से गुजरने वाली अधिकतर ट्रेनें यहां रुकती हैं। यह शहर पटना और वाराणसी से सड़क मार्ग के जरिए भी जुड़ा हुआ है। एनएच-दो पर मोहनिया से बक्‍सर पहुंचना काफी आसान है। बक्‍सर के लिए नजदीकी एयरपोर्ट पटना और वाराणसी में हैं।

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