आंगनबाड़ी केंद्र से निकली हरियाली , घर-घर बनने लगी पोषण क्यारी

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अपनी क्यारी, अपनी थाली’ संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में मिली सफलता

पोषक क्षेत्र फैला रही है पोषण की संदेश

आंगनबाड़ी केंद्र को आदर्श केंद्र के रूप में किया विकसित

श्रीनारद मीडिया पंकज मिश्रा, अमनौर, सारण (बिहार)

गोपालगंज। यदि सुपोषण की अलख आंगनबाड़ी केंद्र से निकलकर समुदाय के घर-घर जगने लगे तो यह पोषण के उद्देश्यों की पूर्ति के संकेत हैं। जिले के सदर प्रखंड के जंघीराय टोला की आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 56 भी कुछ इसी दिशा में कार्य कर रही है। इस आंगनबाड़ी केंद्र के आस-पास पोषण वाटिका का निर्माण हुआ है, जिसमें सहजन के पेड़ व पपीता का पेड़ आपको दिख जाएंगे। लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती है। अब यही पोषण वाटिका आंगनबाड़ी केंद्र से निकलकर गाँव के कई घरों की क्यारियों से होते हुए लोगों की थाली में पहुँच चुकी है। ‘अपनी क्यारी, अपनी थाली’ के इस संदेश की सूत्रधार इस आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका सरोज देवी बनी हैं। कुपोषण को मात देने के लिए आईसीडीएस भी निरंतर पोषण वाटिका की पहल पर जोर दे रही है, जिसे सेविका सरोज देवी मूर्त रूप देने में जुटी हैं।

प्रत्येक थाली में पौष्टिक आहार पहुँचाने की है कोशिश:

सेविका सरोज देवी ने अपने आंगनबाड़ी सेंटर पर सुपोषण की नयी तकनीक ईजाद की है। वह अपने आंगनबाड़ी केंद्र पर आने वाली महिलाओं को पोषण वाटिका में घूमाकर पोषण के बारे में जानकारी देती है। वहीं अपने पोषक क्षेत्र के प्रत्येक घरों में पोषण क्यारी निर्माण में भी जुटी हैं। सेविका सरोज देवी के अथक प्रयास के बदौलत आज इस क्षेत्र के कई परिवार के लोग अपने-अपने घरों के आस-पास पोषण वाटिका का निर्माण कर चुके हैं। गांव की महिलाएं सिर्फ उनकी बातों को समझी हीं नहीं, बल्कि उसको अपनाया भी है। हरी साग-सब्जी के लिए गांव से दूर जाने वाले लोगों के सामने सरोज देवी उन्हें अपने ही घर की क्यारी में पोषण वाटिका निर्माण करने की वैकल्पिक उपाय बताती हैं, ताकि उनकी थाली में आसानी से पौष्टिक आहार पहुंच सके।

बच्चों की थाली में झांकती है सरोज:

सेविका सरोज देवी का काम सिर्फ गृह भ्रमण के दौरान लोगों को पोषण के बारे में जानकारी देने तक सीमित नहीं है, बल्कि गृह भ्रमण के दौरान अगर उन्हें कोई बच्चा कमजोर मिलता है तो वह बच्चों की थाली में भी झांकने का प्रयास करती है। सेविका अक्सर कमजोर या कुपोषित बच्चों के घरों के किचन में पहुंच जाती हैं एवं यह जानने की कोशिश करती हैं कि बच्चे को दिए जाने वाले आहार में पोषक तत्व मौजूद है या नहीं। इसके बाद वह बच्चे की माँ या दादी को बच्चे को पौष्टिक आहार देने की बात समझाती हैं। इतना ही नहीं अन्नप्राशन दिवस के दिन भी वह खुद अपने हाथ से बच्चों को कभी खीर तो कभी हलवा खिलाती हैं।

आंगनबाड़ी केंद्र को बनाया मॉडल:

जिले में कई आंगनबाड़ी केंद्र को मॉडल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार की ओर से राशि दी गयी है। लेकिन सदर प्रखंड के जंघीराय टोला आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 56 को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। लेकिन सेविका सरोज देवी ने अपनी मेहनत के बदौलत इस केंद्र के स्वरूप को बदल दिया और इसे मॉडल केंद्र के रूप में विकसित किया है। इसका असर भी देखने को मिलता है। जो बच्चें पहले यहां नहीं आते थे वो अब नियमित रूप से आते हैं। इस केंद्र पर खेलने के लिए फिल्ड, बैठने के लिए कुर्सी-टेबल एवं झुला आदि बनाया गया है। इसके साथ आकर्षक रूप से वाल पेंटिंग भी की गयी है। अब इस केंद्र पर 40 बच्चें प्रतिदिन पढ़ने आते हैं।

आम लोगों तक पहुंची पोषण की हरियाली:

सदर प्रखंड जंघीटोला गांव निवासी सेवानिवृत शिक्षक मुक्तिनाथ कहते हैं, ‘‘पोषण को लेकर मुझे पहले से जानकारी थी। लेकिन पोषण वाटिका का जो कंसेप्ट है उसको सेविका सरोज देवी के द्वारा ही मुझे पता लगा। मैं उनकी बातों से सहमत हुआ और अपने घर आस-पास खाली पड़े जगह पर पोषण वाटिका लगाया। जिसमें टमाटर, भिंडी, लौकी, पालक जैसे हरा साग-सब्जी लगाया है। पहले कभी-कभी घर पर लड़के नहीं होते थे तो हरा सब्जी लाने में परेशानी होती थी। ठेले वाले का इंतजार करना पड़ता था। लेकिन अब तो पोषण वाटिका से घर पर हरा साग-सब्जी उपलब्ध हो जा रहा है’’।

पोषण योजनाओं का मकसद लोगों को बताना जरुरी:

सेविका सरोज देवी कहती हैं- सरकार सामुदायिक पोषण को बेहतर करने के लिए कई योजनायें चला रही हैं। इन सभी योजनाओं का मकसद समाज को कुपोषण से सुरक्षित रखना ही है। इसलिए वह लोगों को इन योजनाओं के उद्देश्य के विषय में जानकारी देती हैं। वह बताती हैं, लोगों में योजनाओं के तहत दिए जाने वाले लाभ के प्रति रुझान अधिक होता है। लेकिन लोग योजनाओं के पीछे छिपे वास्तविक मकसद से अवगत नहीं होते। उनका कहना है, जब से वह योजनाओं के उद्देश्य के विषय में लोगों से चर्चा करना शुरू की हैं तब से लोगों की सोच में परिवर्तन भी आये हैं। जो लोग कल तक योजनाओं के तहत दिए जाने वाले लाभ पर अधिक चर्चा करते थे, अब वही लोग पोषण पर बात करने लगे हैं।

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