गुरु पूर्णिमा इस वर्ष 21 जुलाई को मनाया जाएगा

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गुरु पूर्णिमा इस साल 2024 में 21 जुलाई, रविवार के दिन है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। पूर्णिमा की तिथि 20 जुलाई को शाम 6 बजे से शुरू होकर 21 जुलाई 3 बजकर 47 मिनट तक है। जिस तिथि को सूर्योंदय होता है, वह तिथि मान्य होती है, इसलिए 21 जुलाई को ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा व्रत भी 21 तारीख को ही रखा जाएगा। गुरु पूर्णिमा पर दान-पुण्य का बहुत महत्व होता है। आइए, जानते हैं गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं और गुरु पूर्णिमा की कथा।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं

लगभग 3000 ई.पूर्व पहले आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास जी के सम्मान में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का दिन बनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन वेद व्यास जी ने भागवत पुराण का ज्ञान भी दिया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुजनों के सम्मान और उन्हें गुरु दक्षिणा देने का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इस दिन अपने गुरु और गुरु तुल्य वरिष्ठजनों को मान-सम्मान देते हुए उनका आभार जरूर व्यक्त करना चाहिए। साथ ही जीवन में मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें गुरु दक्षिणा देने का भी महत्व है। गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का भी बहुत महत्व है। माना जाता है कि जो मनुष्य गुरु पूर्णिमा का व्रत रखता है और दान-पुण्य करता है, उसे जीवन में ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन के बाद मोक्ष मिलता है।

मातृदेवो भवः, पितृदेवो भवः, आचार्य देवो भवः।
ऐतिहासिक एवं धर्मग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पूर्व में भारतीय शिक्षा सत्र को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता था। प्रथम माता के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार, द्वितीय पिता के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार तथा तृतीय आचार्य के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार।
“गुरु गृह पठन गए रघुराई। अलप काल विद्या सब पाई।।”

धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि भगवान श्रीराम ने अपने अनुज भ्राताओं के साथ महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में रहकर विद्यार्जन किया था। इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने बलराम जी और सुदामा जी के साथ महर्षि संदीपनी के गुरुकुल में विद्यार्जन किया था। कौरव और पाण्डवों ने भी महर्षि द्रोणाचार्य के का गुरुकुल में रहकर विद्यार्जन किया था। गुरु संदीपनी के गुरुकुल में श्रीकृष्ण ने राजनीति शास्त्र, कूटनीति, अर्थशास्त्र, नैतिक शिक्षा, धर्म, कर्म, मोक्ष, न्याय दर्शन आदि विषयों की शिक्षा ग्रहण की थी, जिससे श्रीकृष्ण आगे चलकर युग पुरुष सिद्ध हुए थे।

भारत की प्राचीनतम शिक्षण संस्था तक्षशिला नामक नगरी, जहाँ चाणक्य जैसे महान राजनीतिज्ञ एवं कौमारजीव जैसे शल्य चिकित्सक गुरु स्वरूप में थे। इस गुरुकुल में 18 विद्याएं विशेष रूप से अर्थशास्त्र राजनीति और आयुर्वेद के अध्ययन के लिए देश-विदेश से शिक्षार्थी आते थे। इतिहासकारों के दो पुत्र थे-तक्ष और पुष्करपुर ने पुष्करावर्त एवं क्षतक्षशिला नगरी बसाई थी। ईश्वी सन् के 500 वर्ष पूर्व से लेकर छठी शताब्दी तक तक्षशिला उन्नतशील रहा। इस गुरुकुल के अवशेषों में एक महान् समृद्धशाली सभ्यता का निहित है।

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