मदद की भावना:कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को कलकत्ता के एक सेठ महादेव प्रसाद मतवाला बहुत मानते थे। वे उनकी हर सुख-सुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। एक दिन उन्होंने निराला जी को बेहद कीमती व गरम दुलाई भेंट की। वे जाड़ों में उस दुलाई को लपेट कर रखते थे। एक दिन कड़ाके की सर्दी में वे दुलाई ओढ़ कर सेठ जी के दफ्तर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक भिखारी ठिठुरता हुआ दिखाई दिया। उसे इस हालत में देखकर निराला जी दुखी हो उठे। उन्होंने तुरंत वह दुलाई भिखारी को ओढ़ा दी।
भिखारी को दुलाई ओढ़ते ही गर्माहट का एहसास हुआ और वह बेहद खुश होकर निराला जी को अनेक आशीष देने लगा। यह सारा नजारा मतवाला प्रेस का एक कर्मचारी देख रहा था। उसने सारी बात अपने मालिक को बताई। सेठजी तुरंत बाहर आए और उन्होंने देखा कि निराला जी को भेंट की गई दुलाई एक भिखारी ओढ़े बैठा है। वह निराला जी से बोले,’यह आपने क्या किया? इतनी महंगी दुलाई एक भिखारी को दान में दे दी?’

सेठ जी की बात सुनकर निराला जी बोले, ‘आप जैसे महानुभाव के होते हुए दुलाई तो फिर आ जाएगी, लेकिन यदि सर्दी से ठिठुरते हुए इस भिखारी की जान चली गई तो वह कभी वापस नहीं आ पाएगी। उसका पाप मुझे भी लगेगा कि मैंने देखकर भी एक जरूरतमंद की मदद नहीं की। इसलिए मदद करने से पहले मदद की भावना का विकास होना बेहद जरूरी है। मैं तो खुद में यही भावना विकसित करने का प्रयास कर रहा था।’ निराला जी की बात पर सेठ जी निरुत्तर हो गए। उन्होंने दूसरे भिखारियों को भी गर्म कपड़े दान किए ।

 

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