‘भास्कर-1’ ने कैसे भारत को अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनाने में मदद की.

‘भास्कर-1’ ने कैसे भारत को अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनाने में मदद की.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश के पहले स्वदेशी उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के लांच के करीब चार साल बाद भारत ने अपना पहला प्रायोगिक रिमोट सेंसिंग उपग्रह भास्कर-1 प्रक्षेपित किया। इसे 7 जून, 1979 को वोल्गोग्राद स्पेस स्टेशन (वर्तमान रूस में) से प्रक्षेपित किया गया था। इसका वजन 442 किलोग्राम था और इसकी अवधि केवल एक वर्ष थी। पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित होने वाला यह उपग्रह इसरो के लिए एक बड़ी कामयाबी थी। स्वाधीनता के 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव शृंखला के तहत जानते हैं ‘भास्कर-1’ ने कैसे भारत को अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनाने में मदद की…

वर्ष 1975 में ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह को प्रक्षेपित करने के बाद इसरो को एक और बड़ी कामयाबी वर्ष 1979 में मिली। इसरो द्वारा निर्मित पहले प्रायोगिक सुदूर संवेदन उपग्रह (एक्सपेरिमेंटल रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट) भास्कर-1 को 7 जून, 1979 को तत्कालीन सोवियत संघ के वोल्गोग्राड लांच स्टेशन (वर्तमान में रूस में) से सी-1 इंटरकासमास व्हीकल के जरिए प्रक्षेपित किया गया था। अंतरिक्ष में प्रायोगिक सुदूर संवेदन उपग्रह भेजने का यह भारत का पहला प्रयास था। अपने इस पहले ही प्रयास में इसरो को बड़ी कामयाबी मिली। इस उपग्रह का नाम महान भारतीय गणितज्ञ भास्कर के नाम पर रखा गया।

भास्कर-1 का उद्देश्य: भास्कर-1 उपग्रह का मुख्य उद्देश्य हाइड्रोलाजी (जल विज्ञान), ओसनोग्राफी (समुद्र विज्ञान), फारेस्ट्री (वानिकी) और टेलीमेट्री पर डाटा एकत्र करना था। यह उपग्रह भारत का पहला ‘लो आर्बिट अर्थ आब्जर्बेशन सैटेलाइट’ था। प्रक्षेपण के समय इसका वजन 442 किलोग्राम था। इस उपग्रह को टीवी कैमरा और तीन बैंड सैटेलाइट माइक्रोवेव रेडियोमीटर से लैस किया गया था।

टेलीविजन कैमरा सेंसर का काम जल विज्ञान, वानिकी और भूविज्ञान से संबंधित डाटा को एकत्र करना था, जबकि माइक्रोवेव रेडियोमीटर सिस्टम का कार्य महासागर, जल वाष्प आदि का अध्ययन करना था। इससे जुटाया जाने वाला डाटा भूमि-समुद्र-वायुमंडल संपर्क को बेहतर तरीके से समझने में विज्ञानियों के लिए काफी मददगार था। इससे मौसम की भविष्यवाणी में भी काफी मदद मिली।

7 जून, 1979 को लांच होने के एक पखवाड़े बाद भास्कर-1 का माइक्रोवेव रेडियोमीटर सिस्टम सफलतापूर्वक चालू हो गया। इसने उपमहाद्वीप और पड़ोसी समुद्रों पर तापमान वितरण, वातावरण में वाष्प बनने की प्रक्रियाओं और हिंद महासागर की सतह पर बारिश और आर्दता से संबंधित उपयोगी डाटा भेजना शुरू कर दिया। उपग्रह का माइक्रोवेव रेडियोमीटर सिस्टम तो कार्य कर रहा था, लेकिन दूसरा प्रमुख हिस्सा असफल रहा। बिजली की खराबी की वजह से उपग्रह के कैमरे करीब एक साल तक बंद रहे।

हालांकि बाद में इसके एक कैमरे ने 16 मई, 1980 को काम करना शुरू कर दिया और इसने बंगाल की खाड़ी के ऊपर बादल बनने की तस्वीरें भेजी। इस उपग्रह की मिशन लाइफ एक वर्ष और आर्बिट लाइफ लगभग 10 वर्ष की थी। इस क्रम में दूसरा उपग्रह भास्कर-2 नवंबर 1981 में लांच किया गया। भास्कर-1 ने बड़े पैमाने पर डाटा भेजा, जिसका उपयोग समुद्र विज्ञान सहित विभिन्न शोधों व अध्ययनों के लिए किया गया। भास्कर-1 का प्रक्षेपण ऐसा पहला कदम था, जिसने सुदूर संवेदन से संबंधित भविष्य के प्रक्षेपणों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

 

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