यदि कोई सीखने की इच्छा रखता हो, तो वह अपनी गलतियों से भी सीख सकता है।

यदि कोई सीखने की इच्छा रखता हो, तो वह अपनी गलतियों से भी सीख सकता है।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


मनुष्य अल्पज्ञ और अल्पशक्तिमान है। वह अल्पज्ञ और अल्पशक्तिमान होने के कारण कभी न कभी कुछ न कुछ छोटी बड़ी गलतियां तो करता ही है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति से कोई गलती हो जाए, तो यह कोई असंभव बात नहीं है, कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। यह तो स्वाभाविक है।

परंतु अपनी गलती को स्वीकार न करना, उसका सुधार न करना, सिखाने वाले या गलती सुधारने वाले को ही मूर्ख समझना, यह ‘मनुष्यता नहीं’ है। सिखाने वाले लोग अर्थात शिक्षक, मुख्य रूप से माता पिता और आचार्य होते हैं। वैदिक शास्त्रों में ऐसा लिखा है, कि जिसके पास माता पिता और आचार्य, ये 3 शिक्षक उत्तम होते हैं, वह व्यक्ति बड़ा भाग्यशाली है। वह बुद्धिमान बनता है। सज्जन बनता है। धार्मिक सदाचारी बनता है। देशभक्त ईश्वरभक्त और परोपकारी बनता है। उसका जीवन सफल हो जाता है।

अब हर समय (24 घंटे) तो माता-पिता एवं आचार्य साथ में नहीं रहते। जब इन तीनों में से कोई एक भी साथ में हो, तो वह आपकी गलती देखकर आपको बता सकता है, कि ऐसा नहीं करना चाहिए, और ऐसा करना चाहिए।

अनेक बार काम करने से पहले, पूर्व सावधानी (Precaution) के रूप में भी, माता-पिता और आचार्य बच्चों तथा विद्यार्थियों को समझाते रहते हैं, कि ऐसा काम नहीं करना, यह गलत है। और ऐसा कर लेना, यह ठीक है। इस प्रकार से वे आपकी क्रियाओं को देखते हैं, या किसी प्रकार से जान लेते हैं, अथवा पूर्व सावधानी (Precaution) के रूप में भी, वे आपकी त्रुटियां भूलें दूर करते हैं। आप को अच्छी शिक्षाएं देते रहते हैं।

परंतु उनकी अनुपस्थिति में जब आप अकेले होंगे, और कोई गलतियां करेंगे, तब यदि बाद में आपको पता चलेगा कि मैंने तो गलती कर दी, तब आपको अपनी गलतियों से स्वयं ही सीखना होगा, कि मैंने यह गलती कर दी है, अब आगे नहीं करूंगा। इस प्रकार से भी व्यक्ति चाहे, तो अपनी गलतियों को दूर कर सकता है. अथवा किसी दूसरे को गलती करता हुआ देखकर भी यह संकल्प कर सकता है, कि जैसे यह व्यक्ति गलती कर रहा है, मैं ऐसी गलती नहीं करूंगा।

इस प्रकार से जो व्यक्ति सावधानी पूर्वक अपना जीवन जीता है, गलतियों से बचता रहता है, उन्हें स्वीकार करता है, और उन्हें दूर करता रहता है, वह तो ‘मनुष्य’ कहलाता है। यदि वह अपनी गलतियां स्वीकार नहीं करता, उन्हें दूर करने का कोई प्रयत्न विशेष नहीं करता, गलतियां बताने वाले मार्गदर्शक लोगों को ही मूर्ख समझता है, तो उसे ‘मनुष्य नहीं’ कह सकते। जैसा कि आजकल बहुत स्थानों पर देखा जाता है।

पश्चिमी देशों की परंपरा से प्रभावित होकर भारतीय बच्चे भी अपने माता-पिता को डांटते हैं, उनकेे अनुशासन में नहीं रहते। और विद्यार्थी अपने गुरुजनों के साथ कॉलेज आदि में दुर्व्यवहार करते हैं। परन्तु भारतीय संस्कृति सभ्यता के अनुसार 3 उत्तम शिक्षकों के आशीर्वाद से व्यक्ति का बहुत बड़ा कल्याण हो सकता है।

जैसे माता पिता और आचार्य आपके 3 शिक्षक हैं, उसी प्रकार से, उनकी अनुपस्थिति में ‘आप की गलतियां’ भी आपका चौथा शिक्षक है। वह भी आपको सिखाता है, कि अब तो गलती हुई सो हुई, अब आगे नहीं करना।

जो मनुष्य इस प्रकार से अपनी गलतियों को सुधारता रहता है, उसका कल्याण तो संभव है। परंतु जो इस प्रकार से 4 शिक्षकों से शिक्षा नहीं लेता, उसका प्रेमपूर्वक सुधार होना तो असंभव है। उसको तो समाज, राजा और ईश्वर आदि ‘दंड देकर’ ही सुधार सकते हैं। ‘दंड के अतिरिक्त’ उसके सुधार का और कोई उपाय नहीं है।

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