अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस 2021: प्रेस की आजादी पर पूर्ण विराम..

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पेन इज माइटियर देन स्वाॅर्ड मतलब कलम तलवार से भी अधिक ताकतवर है।

प्रेस फ्रीडम डे 2021 यानि अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस हर साल 3 मई को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। प्रेस जनता और सरकार के बीच का माध्यम है। हां, मीडिया से सरकार और जनता बुरा भी मान जाती है, जब बात सिर्फ एक पक्ष की रखी जाती हो।

हालांकि मीडिया जमीनी स्तर पर रहकर सरकार और जनता को आमने – सामने रखता है लेकिन सच्चाई सामने आने पर पत्रकारों की खैर नहीं होती है। विश्व में कई ऐसे देशों में पत्रकारों को सच का चिट्ठा खोलने के अधिकार से वंचित रखा जाता है। 3 मई को अंतराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का उद्देश्य है स्वतंत्रता की आजादी को सम्मान और उसके महत्व को बरकरार रखना।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम थीम 2021
हर साल यूनेस्को द्वारा एक थीम निर्धारित की जाती है। साल 2021 की थीम ‘लोगों के अच्छे के लिए सूचना’ है। हालांकि मीडिया की नींव जबसे रखी गई है तब से ही लोगों के लिए हर वो ख़बर मीडिया द्वारा उठाई जाती है जिससे जनता वंचित हो या उनके पास नहीं पहुंची हो। ऐसा अक्सर जनता के लिए बनाई गई योजनाओं में होता है, जो जनता के लिए बनाई जाती है लेकिन उन तक ही नहीं पहुंच पाती है।
प्रेस की आजादी में भारत का स्थान 2021
वल्र्ड प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक हर साल तय करता है कि किस देश में प्रेस की कितनी आजादी है और कौन से पायदान पर है। 180 देशों में भारत में प्रेस का पायदान नीचे खिसकता जा रहा है। रिपोर्टर्स विदआउट बाॅर्डर्स की सालाना रिपोर्ट के अनुसार प्रेस 2019 में 2 पायदान खिसक गया था। वह 138 से 140वें स्थान पर आ गया था। साल 2020 में भारत में प्रेस की आजादी और भी कम होती गई। वह दो पायदान और नीचे खिसक गया। और 142 वें पायदान पर पहुंच गया। साल 2021 में भारत उसी स्थान पर कायम रहा
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि समूचे विश्व में पत्रकारों के प्रति शत्रुता की भावना बढ़ी है। साल 2019 में करीब 6 पत्रकारों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा।
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 के मुताबिक दुनियाभर में करीब 16 पत्रकारों की हत्या कर दी गई।
भारत में 2014 से लेकर 2019 तक 198 पत्रकारों पर हमले हुए हैं। 36 हमले साल 2019 में ही हुए है। 40 हमलों में पत्रकारों की हत्या कर दी गई। वहीं 21 हत्याएं खबर छापने से नाराज होने पर कर दी गई।
प्रेस की आजादी पर पूर्ण विराम!
पिछले कुछ सालों में डिजिटल मीडिया की भी अभिव्यक्ति में अहम भूमिका नज़र आ रही है। आज के वक्त में जनता सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखती है और मदद की आशा करती है। लेकिनवह मदद जनता तक नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में एक असंगठित सिस्टम काम करना शुरू कर देता है। वह है जनता द्वारा ही एक दूसरे की मदद करना।

सूचनाओं के प्रसार पर इस तरह शिकंजा नहीं कसा जा सकता है।

आज के बदलते दौर में सरकार अब सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय है लेकिन खिलाफ जाने पर आपकी सूचनाओं को, स्टेटस को, ट्वीट को डिलीट कर दिया जाता है। ये कैसी आजादी है?

भारतीयों के पास नहीं है यह अवार्ड

साल 1997 से यूनेस्को हर साल 3 मई को इस खास मौके पर एक अवार्ड भी देता है। गिलेरमो कानो वल्र्ड प्रेस फ्रीडम यह अवार्ड किसी भी भारतीय पत्रकारों के पास नहीं है। यह अवार्ड उस संस्थान और व्यक्ति विशेष को दिया जाता है जिनके द्वारा मीडिया जगत में कुछ उल्लेखनीय कार्य किया गया हो।

संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन

‘अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है। आज हमारा मीडिया अपना दायित्व ठीक तरीके से नहीं निभा रहा है। कुछ लोगों को छोड़कर श्रद्धांजलि देने का काम भी हमारा मीडिया शायद ही ठीक से कर रहा है। जबकि होना तो ये चाहिए की कम से कम इस दिन तो सारे देश का मीडिया एकजुट होकर इस दिन की सार्थकता को अंजाम देता। कम से कम आज के दिन तो ख़बरों में तड़का लगाने से परहेज करता, किंतु ये भी नहीं होता। ऐसा होने पर टी आर पी पर असर पड़ सकता है, जो की हरगिज बर्दास्त नहीं है।

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