क्या भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों का आगमन लाभप्रद है?

क्या भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों का आगमन लाभप्रद है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों (Foreign Higher Educational Institutions- FHEIs) के परिसरों की स्थापना और संचालन पर एक मसौदा विनियमन तैयार किया है। इस तरह की प्रविष्टि की सुविधा के लिये एक विधायी ढाँचा तैयार किया जाएगा और ऐसे विश्वविद्यालयों को भारत के अन्य स्वायत्त संस्थानों के समान नियामक, शासन एवं सामग्री संबंधी मानदंडों के संबंध में विशेष छूट दी जाएगी।

  • प्रारंभ में यह अनुमति दस वर्षों के लिये दी जाएगी, जिसका नवीकरण आवश्यक शर्तों को पूरा करने के अधीन होगा। विदेशी विश्वविद्यालयों को अपना पाठ्यक्रम और प्रवेश प्रक्रिया तैयार करने की स्वतंत्रता होगी।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP), 2020 में कहा गया है कि ‘‘चयनित विश्वविद्यालयों, यानी दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में से शामिल विश्वविद्यालयों को भारत में कार्यकरण की सुविधा प्रदान की जाएगी।’’

इस कदम का क्या महत्त्व है?

  • भारत को लाभ:
    • भारतीय धन के बहिर्वाह और ‘ब्रेन ड्रेन’ पर नियंत्रण:
      • भारतीय छात्रों की एक बड़ी संख्या विदेशी शिक्षा संस्थानों का रुख करती है जिससे भारतीय धन का बहिर्वाह होता है।
        • एक प्रमुख परामर्शदाता फर्म की एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय छात्रों का विदेशी व्यय वर्तमान 28 बिलियन डॉलर वार्षिक से बढ़कर वर्ष 2024 तक 80 बिलियन डॉलर वार्षिक तक पहुँच जाएगा।
        • उच्च शिक्षा के लिये विदेश का रुख करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या वर्ष 2016 में 4.4 लाख से बढ़कर वर्ष 2019 में 7.7 लाख हो गई; वर्ष 2024 तक यह लगभग 18 लाख तक पहुँच सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा पर विदेशी व्यय में वृद्धि होगी।
    • सकल नामांकन अनुपात के मुद्दे को संबोधित करना:
      • भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन से उच्च शिक्षा के लिये अधिक विकल्प प्राप्त होने और डिग्री प्राप्त करने के लिये संभावित रूप से अधिक छात्रों को आकर्षित करने के रूप में नामांकन अनुपात में वृद्धि हो सकती है।
        • विश्व की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणालियों में से एक होने के बावजूद उच्च शिक्षा में भारत का सकल नामांकन अनुपात (GER) महज 27.1% है जो विश्व में न्यूनतम में से एक है।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान:
      • भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना से भारत और अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं समझ को बढ़ावा मिल सकता है।
    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता की वृद्धि:
      • देश में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना से भारत शिक्षा और अनुसंधान के मामले में वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन सकेगा।
    • छवि निर्माण:
      • यह देश के ब्रांड मूल्य को भी बढ़ा सकता है जिससे विश्व के समक्ष भारत की क्षमता और शक्ति को प्रकट कर सकने का अवसर मिलेगा।
  • विदेशी विश्वविद्यालयों को लाभ:
    • भारत में युवाओं की एक बड़ी और तेज़ी से बढ़ती आबादी मौजूद है, जिनमें से कई उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं।
    • भारत में उच्च शिक्षित और कुशल कामगारों का एक बड़ा पूल मौजूद है, जो इसे विदेशी विश्वविद्यालयों के लिये अनुसंधान केंद्र या अन्य निकायों की स्थापना के लिये एक आकर्षक गंतव्य बनाता है।
    • भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से विकास कर रही है और यह विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में अपने पैर जमाने का अवसर प्रदान कर रही है।

भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना से संबद्ध चुनौतियाँ

  • शिक्षा की गुणवत्ता:
    • FHEIs द्वारा प्रदत्त शिक्षा की गुणवत्ता भारतीय संस्थानों के मानकों के स्तर की नहीं भी हो सकती हैं, जो फिर भारतीय छात्रों की रोज़गार सक्षमता और भविष्य की संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
  • शुल्क:
    • FHEIs द्वारा लिया जाने वाला शुल्क प्रायः भारतीय संस्थानों की तुलना में बहुत अधिक होता है, जो निम्न-आय परिवारों के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा को कम सुलभ बना सकता है।
  • निरीक्षण का अभाव:
    • भारत में FHEIs का विनियामक निरीक्षण अपर्याप्त सिद्ध हो सकता है, जिससे ऐसी स्थिति बन सकती है जहाँ छात्रों का गलत लाभ उठाया जाए या समस्याओं के मामले में उन्हें निराश्रित छोड़ दिया जाए।
  • सांस्कृतिक प्रभाव:
    • विदेशी संस्थानों और छात्रों के आगमन से भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों की हानि हो सकती है; साथ ही भारतीय और विदेशी छात्रों के बीच एकीकरण या समन्वयन की कमी की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • विदेशी संस्थानों का दुरुपयोग जासूसी और अन्य अवैध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
  • संसाधनों की अपर्याप्तता:
    • वास्तविक रूप से प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान लाभ-रहित आधार पर कार्य करते हैं और उनके पास विदेश में अपने कैंपस स्थापित करने का कोई भौतिकवादी उद्देश्य नहीं होता है।
      • कुछ ऐसे देश जिन्होंने विदेश में अपने कैंपस स्थापित किये हैं, उन्हें लगभग बिना किसी लागत के भूमि लीजिंग सौंपने, अवसंरचना लागत के एक बड़े भाग का वहन करने और उन्हें अपने गृह देशों के समान अकादमिक, प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वायत्तता देने का वादा करने जैसे कदम के साथ आकर्षित किया जा सका है।
    • भारत ऐसे प्रोत्साहन देने के लिये पर्याप्त संसाधन नहीं रखता है।
  • विदेशी संस्थानों को स्वायत्तता:
    • अधिसूचना के मसौदे में विदेशी संस्थानों के लिये शैक्षणिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता का वादा तो किया गया है, लेकिन इसके प्रभाव को इस घोषणा के साथ कम करने का प्रयास भी किया गया है कि वे उन सभी शर्तों का पालन करेंगे जो यूजीसी और भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित किया जाता है।
    • यह प्रावधान कि विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों को ‘‘भारत की संप्रभुता एवं अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता’’ के विपरीत कुछ भी नहीं करना होगा, उन सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों को हतोत्साहित कर सकता है जो अपनी शैक्षणिक स्वायत्तता को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं।

आगे की राह

  • स्पष्ट और पारदर्शी विनियमों का विकास:
    • सरकार को भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना, संचालन और मान्यता के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश और नियम स्थापित करने चाहिये। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि ये संस्थान इस तरह से कार्य करेंगे जो भारतीय कानूनों और विनियमों के अनुरूप हों।
  • सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना:
    • विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में स्वतंत्र कैंपस स्थापित करने की अनुमति देने के बजाय सरकार उन्हें मौजूदा भारतीय संस्थानों के साथ सहयोग और साझेदारी करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है। यह प्रतिस्पर्द्धा को कम करने और यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के लाभ भारतीय संस्थानों एवं छात्रों के साथ साझा किये जाएँ।
  • भारतीय विश्वविद्यालयों में सुधार:
    • सरकार को भारतीय विश्वविद्यालयों में सुधार करने की आवश्यकता है जिसमें शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने, उच्च शिक्षा के लिये धन की वृद्धि करने और अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने जैसे कई अलग-अलग कदम शामिल हो सकते हैं।
  • EEZs की स्थापना:

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