दक्षिणी राज्यों में तीन अलग-अलग गठबंधनों को जनादेश,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दक्षिणी राज्यों में मतदाताओं ने तीन अलग-अलग गठबंधनों को जनादेश दिया है, लेकिन तमिल मतदाताओं की समझदारी उल्लेखनीय है. राज्य के चार करोड़ मतदाताओं ने न तो द्रमुक को भारी जीत दी है और न ही अन्ना द्रमुक को पूरी तरह खारिज किया है. केरल भी अचरज का मामला नहीं है. पहले से ही माकपा के पक्ष में समर्थन का अंदाजा था, लेकिन दिलचस्प है कि पार्टी ने हिंदुत्व पर नरम रुख अपनाया है.

उसने जब देखा कि मुस्लिम मतदाता उससे दूर जा रहे हैं, तो उसने सबरीमला मंदिर को खोल दिया और अभी मामले वापस ले लिया. इससे क्या इंगित होता है? केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन अब पार्टी नेता सीताराम येचुरी और प्रकाश करात से सवाल करेंगे.

पुद्दुचेरी ने एनडीए को पांच साल शासन करने का मौका दिया है. यह एक विशिष्ट राज्य है. यहां तीन विधायक केंद्र सरकार द्वारा नामित किये जा सकते हैं. कहने का मतलब है कि यहां भाजपा को कृत्रिम रूप से जादुई संख्या मिल सकती है. भाजपा ने उत्तर भारतीय तथा बनियों की पार्टी होने की अपनी छवि को तोड़ दिया है. कर्नाटक और पुद्दुचेरी के रूप में दक्षिण में अब उसकी दो सरकारें होंगी. ग्रेटर हैदराबाद में भाजपा ने अधिकतर सीटें जीती है और तेलंगाना में वह उभरती हुई पार्टी है.

यदि एमके स्टालिन तमिलनाडु में सरकार बनाते हैं, तो उन्हें तीन चीजों का सामना करना होगा- कोरोना, नगद भंडार और केंद्र. वे नवीन पटनायक, जगन रेड्डी आदि की तरह ही होंगे. स्टालिन नरेंदर मोदी के साथ तनातनी का रवैया नहीं रख सकते हैं. कोरोना संकट से जूझना एक कठिन दायित्व है. मुझसे बातचीत में द्रमुक के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि स्टालिन को अपने समर्थकों और जिला इकाइयों पर निर्भर रहना होगा. इसका मतलब है कि परिवार पर उनकी निर्भरता कम होगी.

इसका कारण यह है कि एक मजबूत विपक्ष है और दिन-रात मीडिया की निगरानी है. एक्जिट पोल में स्टालिन के गठबंधन की स्पष्ट जीत इंगित की गयी थी, लेकिन वे गलत साबित हुए हैं. द्रमुक को भारी जीत नहीं मिली है. अन्ना द्रमुक को 2011 और 2016 में लगातार जीत मिली थी. राज्य में करीब तीन दशकों में ऐसा पहली बार हुआ था. पिछले चुनाव में थोड़े अंतर से हुई हार के बाद स्टालिन ने इस बार सधा हुआ अभियान चलाया और पूरे राज्य का दौरा किया.

अब एक महीने में द्रमुक को वित्तीय नीति निर्धारित करनी होगी. देखना होगा कि क्या अन्ना द्रमुक सरकार के समय दी गयी डॉ सी रंगराजन कमिटी रिपोर्ट को द्रमुक स्वीकार करता है या फिर पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम अपने मोदी-विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे. जेल भेजे जाने का बदला लेने के लिए चिदंबरम द्रमुक के कंधे से बंदूक चलायेंगे.

अन्य राज्यों की तरह तमिलनाडु के सामने भी महामारी और इसके आर्थिक प्रभावों से निपटने की चुनौती है. बजट के अनुमान से राज्य को कम राजस्व हासिल होगा. चुनाव में दोनों द्रविड़ पार्टियों ने अनेक कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया है. इस स्थिति में उन्हें कैसे पूरा किया जायेगा, इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है. पहले की योजनाओं को जारी रखते हुए वादों को पूरा करने के लिए राज्य के सकल घरेलू उत्पादन का तीन से चार फीसदी हिस्सा खर्च करना होगा. महामारी नियंत्रण पर भी भारी खर्च होना है. ऐसे में नये इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना भी बड़ी चुनौती होगी.

केरल में कोई नया हिसाब नहीं है क्योंकि वही प्रशासन आगे काम करेगा. लेकिन सोने की तस्करी के मामले की आंच का सामना मुख्यमंत्री विजयन को करना पड़ेगा. केरल में कांग्रेस का सफाया हो गया है, तो राहुल गांधी को तमिलनाडु में किसी सुरक्षित सीट की तलाश करनी होगी.

इतनी पुरानी पार्टी के नेता का लोकसभा के लिए सीट खोजना विपक्षी पार्टियों की एकता के लिए दुखदायी स्थिति है. चाहे आप पांच राज्यों के परिणामों की जैसे व्याख्या करें, नरेंद्र मोदी 2024 के लिए कद्दावर नेता हैं और कोई विपक्ष भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है. हां, कोरोना से जूझना भाजपा सरकार के लिए बड़ी चुनौती है.

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