अफगानिस्तान में मुल्‍ला बरादर को बंधक बनाने और हैबतुल्लाह अखुनजादा की मौत की खबर!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भले ही तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा करने और सरकार बनाने में कामयाब रहा हो, लेकिन उसके गुट के बीच एक आंतरिक दरार उभरने लगी है। तालिबान की सरकार पर हक्कानी नेटवर्क का काफी प्रभाव है, जो पाकिस्‍तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की कठपुतली है। मुल्ला बरादर को कंधार में बंधक बनाया गया है, जबकि हैबतुल्लाह अखुंदजादा मर चुका है। यह जानकारी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मिली है।

साप्ताहिक ब्रिटिश पत्रिका द स्पेक्टेटर के लिए लिखने वाले डेविड लॉयन ने कहा कि तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला बरादर ने सरकार चलाने की उम्मीद की थी, लेकिन इसके बजाय उन्हें डिप्टी पीएम की भूमिका दी गई। वह सरकार में अफगानिस्तान के कई जातीय अल्पसंख्यकों के लिए और अधिक भूमिकाएं चाहते थे और उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि हरे, लाल और काले रंग के अफगान राष्ट्रीय ध्वज को अभी भी तालिबान के सफेद ध्वज के साथ फहराया जाना चाहिए। लॉयन ने कहा, पिछले दिनों काबुल में प्रेसिडेंशियल पैलेस में आयेजित एक बैठक में गुस्सा भड़क गया। बरादर और खलील हक्कानी के बीच लड़ाई हो गई। कुछ सूत्रों ने कहा कि गोलीबारी हुई थी, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है।

कुछ सूत्रों के अनुसार, इस महीने की शुरुआत में काबुल में सुनी गई गोलियों की आवाज वास्तव में दो वरिष्ठ तालिबान नेताओं सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और अनस हक्कानी के बीच सत्ता संघर्ष थी। यह घटना तालिबान नेताओं के बीच पंजशीर की स्थिति को कैसे हल किया जाए, इस पर कथित असहमति को लेकर हुई। रिपोर्ट की गई गोलीबारी की जानकारी पंजशीर ऑब्जर्वर के असत्यापित ट्विटर हैंडल के माध्यम से साझा की गई थी, जो खुद को अफगानिस्तान और पंजशीर को कवर करने वाला एक स्वतंत्र समाचार आउटलेट बताता है।

लड़ाई के बाद बरादर कुछ दिनों के लिए काबुल से गायब हो गया। उसके बाद कंधार में फिर से उभर आया, जहां समूह के सर्वोच्च नेता हैबतुल्ला अखुंदजादा का बेस है। कुछ लोगों का मानना है कि बरादर को हक्‍कानी नेटवर्क ने बंधक बना लिया है। लायन ने कहा कि इस दौरान तालिबान के गुटों में जोरदार तरीके से सार्वजनिक असहमति खेली गई। तालिबान के नेता हैबतुल्लाह अखुनजादा के ठिकाने का अब तक पता नहीं है। उसे कुछ समय से देखा या सुना नहीं गया है। अफवाहें हैं कि वह मर चुका है।

लायन ने कहा कि तालिबान के शीर्ष पर इस शून्य ने उसके गुटों के बीच इस तरह की बहसों करने की इजाजत दी है कि तालिबान में सत्ता के लिए संघर्ष आखिरी बार नहीं है। तालिबान का शीर्ष नेता मुल्ला उमर के मुंह से निकले बोल कानून के रूप में जाने जाते थे, भले ही वह काबुल कभी नहीं आया। इस महीने की शुरुआत में गठित सरकार के प्रमुख मुल्ला हसन अखुंद वास्तविक शक्ति नहीं रखता है। हक्कानी नेटवर्क पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है, जो अपने सार्वजनिक बयानों में बहुत अधिक संदेश देता है।

एक महीने से अधिक समय हो गया है, जब तालिबान ने अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान सरकार की सेना के खिलाफ आक्रामक और तेजी से आगे बढ़ने के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया था। काबुल के तालिबान के हाथों में आने और पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार गिरने के बाद पिछले महीने देश संकट में आ गया।

लायन ने कहा कि यह भविष्यवाणी करना मुश्किल है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में नई शक्ति का प्रबंधन कैसे करेगा। इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के खुफिया प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए काबुल पहुंचे थे। हमीद का आपातकालीन दौरा इस बात की पुष्टि करता है कि तालिबान आईएसआई की कठपुतली मात्र है। पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ पर अफगानिस्तान पर कब्जा करने में तालिबान का समर्थन करने का आरोप लगाया गया है।

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि चुनी हुई अफगान सरकार को सत्ता से हटाने और तालिबान को अफगानिस्तान में एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित करने में पाकिस्तान एक प्रमुख खिलाड़ी रहा है। हाल में संयुक्त राष्ट्र की एक निगरानी रिपोर्ट में कहा गया है कि अल कायदा के नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अफगानिस्तान और पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में रहता है।

पिछले दिनों अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने जोर देकर कहा था कि तालिबान को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ द्वारा सूक्ष्म रूप से प्रबंधित किया जा रहा है। यह भी कहा कि इस्लामाबाद एक औपनिवेशिक शक्ति के रूप में युद्धग्रस्त देश का प्रभावी रूप से प्रभारी है।

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