सीवान में पदस्थापित प्रशासनिक पदाधिकारी के लिए प्रभु नारायण विद्यार्थी सदैव एक उदाहरण के रूप में रहेंगे

सीवान में पदस्थापित प्रशासनिक पदाधिकारी के लिए प्रभु नारायण विद्यार्थी सदैव एक उदाहरण के रूप में रहेंगे

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रभुनारायण विद्यार्थी एक प्रशासनिक पदाधिकारी के रूप में सीवान में पदास्थापित थे ।उनका जन्म 22 अप्रैल 1944 को झारखण्ड के जमुई जिले के अलीगंज में हुआ था । उनके माता का नाम श्रीमती सोनमती देवी तथा पिता का नाम मोतीलाल आर्य था ।

किसी भी देश का इतिहास स्थानीय इतिहास के आधार पर लिखा जाना चाहिए तभी वह सही होगा । विद्यार्थी जी का काम इसी दिशा में था । वे अपनी नौकरी के दौरान जहाँ भी पदस्थापित रहे वहाँ के स्थानीय साहित्य , इतिहास , भूगोल आदि को प्रकाश में लाया । सीवान में उन्होंने कई उल्लेखनीय काम किए । यहाँ के कई गुमनाम नायकों को प्रकाश में लाया । यहाँ पर शिक्षा की ज्योति जगाने वाले दाढ़ी बाबा उर्फ वैद्यनाथ प्रसाद , स्वतंत्रता सेनानी उमाशंकर प्रसाद , कालापानी की सजा पाए श्याम नारायण , शुभलाल महतो , संगीतज्ञ और संत कवि रासबिहारी लाल खाकी बाबा को प्रकाश में लाया ।

इनसे नयी पीढी को परिचित कराने का श्रेय उन्हें जाता है । जिले की कवियों की रचनाएं उत्पल के नाम से संपादित की । अपनी पत्नी से उन्होंने 1942 के स्वतंत्रता संग्राम में सीवान की भूमिका विषय पर पी . एचडी . कराई ।इसी तरह इतिहासकार बांके बिहारी मिश्र की जन्मशती वर्ष पर उन्होंने उनपर पुस्तक संपादित की । इसी तरह उन्होंने राहुल सांकृत्यायन के अनछुए पक्षो पर एक पुस्तक लिखी । उन्होंने कविता , कहानी , संस्मरण आदि भी लिखा परंतु आज वे स्थानीय साहित्य , इतिहास , भूगोल आदि पर किए गए अपने कामों के कारण ही याद किए जा रहे हैं । यहाँ एक बात को याद कर लेना जरूरी है कि इस तरह के काम में समय और पैसा अपने पास से ही खर्च होता है ।

विद्यार्थी जी के साथ भी ऐसा ही था।शुरू से उनके लेखन और काम का मूल स्वर सबाल्टर्न समाज था । उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – 1. कितना कुछ अनकहा ( कविता . संग्रह ) 2. सुहाग रात की चटाई ( कहानी . संग्रह ) 3. अंकुर (बाल कविता – संग्रह ) 4. हजरत मुहम्मद की प्रेरक कथाएँ ( प्रेरक कथा ) 5. गिरमिट ( व्यंग्य कथा – संग्रह ) 6. क्रांतिकारी विधाभूषण शुक्ल ( जीवनी ) 7. स्वाधीनता आंदोलन की बिखरी कड़ियाँ ( इतिहास ) 9. राहुल सांकृत्यायन अनछुए प्रसंग ।
उनकी संपादित पुस्तकें हैं – 1. उतपल (सीवान जिले के कवियों की कविताओं का संग्रह ) 2. संत कवि खाकी बाबा ( भजन – संग्रह ) 3. नजर हमीद अभिनन्दन ग्रन्थ 4. दाढ़ी बाबा स्मृति ग्रन्थ 5. कालापानी बंदी श्यामदेव नारायण 6. उमाशंकर प्रसाद स्मृति ग्रन्थ 7. कविता कोशी तीर की ( कविता – संग्रह ) 8. राहुल सांकृत्यायन : विविध प्रसंग 9. आधुनिक इतिहास के निर्माता बाँके बिहारी मिश्र ।

सीवान में उनका एक काम यादगार है । शांति वट वृक्ष का नामकरण उन्होंने ही किया था । पहले लोग इसे झगरहवा बर कहते थे , आज भी लोग बोलचाल में यही कहते हैं । असल में इस जगह को ले कर हिंदू – मुस्लिम दोनों आपस में लड़ते रहते थे । बस लोगों इसे झगरहवा बर कहना शुरू कर दिया । विद्यार्थी जी ने इसका नाम शांति वट वृक्ष रखा । उनका उद्देश्य था कि यह स्थल ज्ञान का केंद्र बने ।

वे भोजपुरी भाषा – साहित्य के आंदोलन से भी संपर्क रखते थे । देवघर में पदस्थापित रहते समय उन्होंने अखिल भारतीय भोजपुरी भाषा सम्मेलन का अधिवेशन नर्मदेश्वर चतुर्वेदी की अध्यक्षता में कराया । पहले यह संस्था बिहार राज्य स्तर की थी । इसी अधिवेशन के साथ इस संस्था के साथ अखिल भारतीय लगा ।
उनका निधन 12 फरवरी 2009 को हुआ ।

 

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