राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी की घोषणा पर लगाई थी मुहर.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

25 जून 1975 को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री, कांग्रेस के कद्दावर नेता, संविधान विशेषज्ञ और इंदिरा गांधी पर खास असर रखने वाले सिद्धार्थ शंकर रे को दिल्ली बुलाया गया था… इसी दिन दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण यानी जेपी ने एक बड़ी रैली बुलाई थी… दिल्ली के बंगाल भवन में रुके सिद्धार्थ शंकर रे को प्रधानमंत्री निवास 1 सफ़दरजंग रोड पर तलब किया गया… उस मुलाक़ात के बारे में मुखर्जी ने अपनी किताब द ड्रामेटिक डिकेड – द इंदिरा गांधी ईयर्स में लिखा है… ‘सिद्धार्थ बाबू के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने शाम को होने वाली जय प्रकाश नारायण की रैली की ख़ुफ़िया रिपोर्ट पढ़नी शुरू कीं, रिपोर्ट में इस बात की तरफ़ इशारा था कि जेपी एक सामानांतर प्रशासन मसलन कोर्ट के गठन का ऐलान कर सकते थे… साथ ही वो पुलिसवालों और सैन्य बलों को ग़ैर क़ानूनी लगने वाले आदेशों का पालन ना करने की अपील करने वाले थे…

जेपी की तैयारी
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति निवास से कुछ ही किलोमीटर दूर दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में विपक्ष ने एक बड़ी रैली बुलाई थी, विपक्ष का नेतृत्व कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथी रहे और इंदिरा के सबसे बड़े आलोचक बन कर उभरे जय प्रकाश नारायण कर रहे थे, वरिष्ठ पत्रकार और उस वक्त इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्टर रहीं कूमी कपूर ने अपनी क़िताब ‘इमरजेंसी – ए पर्सनल हिस्ट्री’ में लिखा है अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से लौटे और राज्य सभा में जनसंघ की तरफ़ से जाने वाले स्वामी ने जेपी से पूछा था अगर इंदिरा अमेरिका की तरह मार्शल लॉ लगा देंगी तो क्या होगी, तो जेपी ने उनके डर को हंसते हुए ये कह कर खारिज कर दिया था कि तुम काफ़ी अमेरिकी हो चुके हो… जनता इंदिरा के ख़िलाफ़ विद्रोह कर देगी’

जेपी की रैली
25 जून की शाम को हुई जेपी की रैली में लाखों लोग आए, इंदिरा गांधी को इस्तीफ़े के लिए मजबूर करने के लिए शांतिपूर्वक प्रदर्शन और सत्याग्रह के नारे लगाए गए, इसी रैली में जेपी ने आखिरकार वो आह्वान भी किया जिसका अंदेशा ख़ुफ़िया रिपोर्ट में लगाया गया था… पुलिस और सैन्य कर्मचारी ग़ैरकानूनी और असंवैधानिक आदेशों को ना मानें… बाद में श्रीमती गांधी ने इसी बात को आपातकाल को सही ठहराने का आधार बताया…

आपातकाल
शाम होते होते इंदिरा गांधी सिद्धार्थ शंकर रे के साथ राष्ट्रपति भवन से प्रधानमंत्री आवास 1 सफ़दरजंग रोज वापस आ गईं, रे ने प्रधान सचिव पीएन धर को सब कुछ समझा दिया, धर ने एक टाइपिस्ट से आपातकाल की घोषणा टाइप करवाई, साथ ही इंदिरा गांधी की राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी भी टाइप करवाई गई… दस्तावेज़ तैयार होते ही इन्हें इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन के हाथों राष्ट्रपति भवन पहुंचाया गया… इंदिरा गांधी ने साफ़ निर्देश दिए थे कि कैबिनेट मंत्रियों को सुबह 5 बजे फ़ोन करके एक घंटे बाद कैबिनेट की मीटिंग में बुलाया जाए…

सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी का वो भाषण लिखने में रात भर मदद की जिसे वो देश के नाम सुबह देने वाली थीं… 25 जून की रात 11:45 मिनट पर राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए… संजय गांधी और मंत्री ओम मेहता उन लोगों को लिस्ट बनाने में लग गए जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था, इस लिस्ट को भी इंदिरा की मंज़ूरी हासिल थी… संजय के करीबी बंसीलाल लगातार उनसे फोन से संपर्क में रहे… इंदिरा और रे ने करीब 3 बजे तक भाषण पर काम किया, जिसके बाद वो सोने चली गईं, लेकिन रे गृहमंत्री ब्रह्मानंद और दिल्ली के उपराज्यपाल किशन चंद से बात करते रहे थे.

रात को ही विपक्ष के नेताओं को गिरफ़्तार करना शुरू कर दिया गया, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग की बिजली काट दी गई, यहीं ज़्यादातर अख़बारों के दफ़्तर थे, सुबह सिर्फ 2 अख़बार ही निकले, हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेट्समैन क्योंकि ये बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग पर नहीं छपते थे… सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो प्रसारण में देशवासियों के सामने दावा किया था कि ‘आपातकाल से आतंकित होने का कोई कारण नहीं है’ लेकिन प्रधानमंत्री के इस ऐलान से पहले ही बिना कराण बताए कई राजनैतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया जा चुका था.

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