जनगणना में मातृभाषाओं का प्रश्न

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श्रीनारद मीडिया‚ सेंट्रल डेस्कः

उत्तर भारत में 49 से अधिक ऐसी भाषाएँ हैं जिनकी गणना जनगणना में हिंदी में की जाती है । ऐसी भाषाओं में अवधी , भोजपुरी , मगही , अंगिका , वज्जिका , सुरजापुरी , राजस्थानी , बुंदेलखंडी , छत्तीसगढ़ी जैसी भाषाएँ शामिल हैं । इन भाषाओं को हिंदी मान लिया जाता है ।

सन 1961 की जनगणना में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन मातृभाषाओं की गणना की व्यवस्था करवाई थी । उस समय मातृभाषा तय करने वाला सरकारी निर्देश इस प्रकार था ” जनगणना के क्रम में लोग जैसा कहते हैं , उसी प्रकार मातृभाषा का उल्लेख , बोली सहित , पूर्णरूपेण करें । मातृभाषा वह भाषा है , जिसमें किसी की माँ बाल्यावस्था में उससे बोलती है या वह भाषा है जो मुख्यतः परिवार में बोली जाती है , अगर बाल्यावस्था में ही माँ की मृत्यु हो गई हो तो उस भाषा का उल्लेख करें जो इस व्यक्ति की बाल्यावस्था में उसके घर में मुख्यतः बोली जाती हो । बच्चे या गूंगे – बघिर के सम्बन्ध में उस भाषा का उल्लेख करें जो उन सबों की माँएँ बराबर बोलती हो । ”

मातृभाषा तय करनेवाले इस निर्देश के फलस्वरूप उत्तर भारत की भाषाओं की संख्या में बढोत्तरी हुई । इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है । सन 1951 के जनगणना में भोजपुरी भाषियों की संख्या 1902 थी वह सन 1961 की जनगणना में बढ़ कर 78 लाख हो गई । कुछ लोगों को लगा कि इससे हिंदी की संख्या घट रही है । इसका विरोध हुआ ।फलतः 1971 की जनगणना में इसे बदल दिया गया । तब से इन भाषाओं को हिंदी माना जाता रहा है ।

कुछ लोग धर्म के आधार पर अपनी मातृभाषा लिखवाते हैं । भोजपुरी क्षेत्र के मुसलमानों की मातृभाषा भोजपुरी ही है परंतु कुछ मुसलमान उर्दू लिखवाते हैं । हिंदी , उर्दू यहाँ की मातृभाषा नहीं है वह अर्जित की हुई भाषा है ।

कभी राहुल सांकृत्यायन ने अपने एक लेख में मातृभाषाओं का प्रश्न उठाया था । यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है ।

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