श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है-केशव जी महाराज

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

श्रीमद् भागवत कथा प्रवक्ता संत प्रवर आचार्य डॉक्टर केशव जी महाराज के श्री मुख से भगवान की अमृतमयी कथा सुनने की जिज्ञासा उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही है सुदूर देहात से लोग पधारे अपार जनसमूह भक्तिमय वातावरण में झूमने लगा भगवान के वाराह अवतार एवं बुद्धावतार की सप्रसंग व्याख्या से जनमानस भाव विभोर हो गया। उन्होंने कहा की श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।

अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है । भागवत पुराण में महर्षि सूत जी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सूत जी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं। प्रथम स्कन्ध में सभी अवतारों का सारांश रूप में वर्णन किया गया है।
प्रेम के वशीभूत अजन्मा ब्रम्ह भी जन्म ग्रहण करता है। भक्ति में तपस्या भगवान को भी विवश कर देती है।

भक्त के हितार्थ भगवान कुछ भी करने को किसी भी रूप मैं स्वत: अवतरित हो जाते हैं।उत्कृष्ट साधना का ही प्रतिफल है भगवतसत्ता का धरा धाम पर अवतार ग्रहण करना। कथा के साथ-साथ संगीत की सु मधुर ध्वनि ने मणिकांचन संयोग उपस्थित कर रहा है। भगवान के 24 अवतार की चर्चा में विशेष रुप से मत्स्य वाराह कुर्म एवं भगवान बुद्ध स्वरूप की विशद व्याख्या ने उपस्थित जनमानस को अभिभूत करता रहा विभिन्न दृष्टांत एवं राष्ट्रीयता भारतीयता एवं भारतवर्ष की सनातन संस्कृति का समग्र रूप कथा की केंद्र बिंदु बनी रही कुशल मातृत्व एवं अति कुशल गुरुत्व ही पात्रता की पहचान करता है एवं धर्म के रक्षणार्थ सशक्त साधना को प्रतिविम्बित एवं चिन्हित कर रामकृष्ण शिवा राणा राधा एवं सीता जैसी शक्तियों की पहचान कर उसे राष्ट्र आराधना धर्म साधना एवं मानवता की परिकल्पना तथा पहचान कर पाता है संगीत सहयोग एवं स्वर साधना पंडित अवधेश जी पांडेय , रमैया पांडेय एवं पंडित विश्वंभर नाथ दुबे जी कर रहे थे

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