“शारीरिक शिक्षा का इतिहास, सिद्धांत एवं आधारभूत संरचना” नामक पुस्तक का बिहार खेल विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ विमोचन:
संघर्षों को मात देकर बनीं शारीरिक शिक्षा की लेखिका रंजिता प्रियदर्शिनी की प्रेरणादायक कहानी:
श्रीनारद मीडिया, गोपालगंज (बिहार):
कहते हैं कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मंज़िल नामुमकिन नहीं होती है। इस कहावत को छपरा की बेटी सह गोपालगंज के थावे में स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) की व्याख्याता डॉ रंजिता प्रियदर्शिनी ने सच साबित कर दिखाई है। जिन्होंने कठिन परिस्थितियों और जीवन के अनेक संघर्षों के बावजूद न केवल शिक्षा के क्षेत्र में अपना स्थान बनाई है, बल्कि शारीरिक शिक्षा जैसे उपेक्षित विषय से संबंधित एक प्रेरक पुस्तक भी लिख डाली है। इनकी पुस्तक “शारीरिक शिक्षा का इतिहास, सिद्धांत और आधारभूत संरचना” को शिक्षा जगत में सराही जा रही है।
बिहार खेल विश्वविद्यालय राजगीर एवं राज्य शैक्षिणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) पटना के बीच हुए समझौता ज्ञापन (एमओयू) के आलोक में शारीरिक शिक्षा के व्याख्याताओं के लिए आयोजित एडवांस्ड रिफ्रेशर कोर्स के प्रथम बैच का शनिवार को विश्वविद्यालय परिसर में प्रमाण पत्र वितरण समारोह के दौरान बिहार का पहला और देश का छठा खेल विश्वविद्यालय जो बिहार के राजगीर में स्थित है के प्रथम कुलपति सह सेवानिवृत (आईएएस) शिशिर सिन्हा, कुलसचिव सह सेवानिवृत (आईएएस) अधिकारी रजनी कांत, परीक्षा नियंत्रक- सह- डीन निशिकांत तिवारी, खेल विश्वविद्यालय के प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के सलाहकार रौशन कुमार और अजीत कुमार के अलावा शारीरिक शिक्षा का इतिहास, सिद्धांत और आधारभूत संरचना की लेखिका सह डायट गोपालगंज में पदस्थापित व्याख्याता डॉ रंजिता प्रियदर्शिनी के द्वारा संयुक्त रूप से पुस्तक का विमोचन किया गया।
खेल विश्वविद्यालय बिहार कुलपति सह सेवानिवृत (आईएएस) शिशिर सिन्हा ने पुस्तक विमोचन के दौरान कहा कि कई वर्ष पूर्व शारीरिक शिक्षा को अकादमिक विषयों के मुकाबले इसका महत्त्व कम दिया जाता था, लेकिन इन्होंने इस धारणा को बदलने की दिशा में एक ठोस कदम उठाया है। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने न केवल इस विषय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को उजागर किया है, बल्कि इसके सिद्धांतों और व्यवहारिक पक्षों को भी सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया है।
इस कृति से यह स्पष्ट होता है कि खेल- कूद और शारीरिक विकास केवल शारीरिक बल नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास का भी आधार है। हालांकि इनकी यात्रा इतनी आसान नहीं रही होगी, लेकिन सीमित संसाधनों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच पढ़ाई जारी रखना, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना और नौकरी हासिल करना किसी जंग से कम नहीं हुआ होगा। इसके बावजूद इन्होंने अपने सपनों को जीवित रखा और जीवन की हर चुनौती को अवसर में बदलने का काम किया है। समाज को ऐसे ही शिक्षकों और लेखकों की जरूरत है, जो ना केवल ज्ञान देते हैं बल्कि खुद अपने जीवन से उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इनकी कहानी यह संदेश देती है कि अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाह हो, तो कोई भी परिस्थिति बाधा नहीं बन सकती है।
वहीं लेखिका सह डायट की व्याख्याता डॉ रंजिता प्रियदर्शिनी ने कहा कि खेल के प्रति बचपन से ही गहरी रुचि रही है। पढ़ाई के साथ- साथ खेल- कूद की गतिविधियों में भी बराबर हिस्सा लेते रही हूं। क्योंकि खेल केवल शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, बल्कि यह अनुशासन, टीम भावना और नेतृत्व के गुण को भी विकसित करता है। यही सोच हमें इस विषय पर गहराई से अध्ययन करने और एक पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया है।
उन्होंने यह भी कहा कि खेल कूद सहित सभी विषयों को उदाहरण के साथ सरलता पूर्वक समझाया गया है। क्योंकि प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए शारीरिक शिक्षा के रूप में बहुत ही ज्यादा उपयोगी साबित होने वाली है। हालांकि सबसे अहम बात यह है कि कठिन से कठिन शब्दो को बहुत ही सरल और आसान शब्दों द्वारा प्रस्तुत किया गया है। हालांकि बी ए, बी पी ई एस और बी पी एड के छात्रों के लिए मिल का पत्थर साबित होगी। जबकि इस अवसर पर शारीरिक शिक्षा के व्याख्याता डॉ सैयद मोहम्मद अयूब, डॉ अनिल कुमार मिश्रा, डॉ शंभूनाथ सिंह, अमित सौरभ, एकता कन्नौजिया सहित राज्य के कुल 37 व्याख्याता शामिल हुए।
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