उपराष्ट्रपति का चुनाव 6 अगस्त को, 5 जुलाई को जारी होगी अधिसूचना.

उपराष्ट्रपति का चुनाव 6 अगस्त को, 5 जुलाई को जारी होगी अधिसूचना.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव 6 अगस्त 2022 को होगा. निर्वाचन आयोग ने बुधवार को यह जानकारी दी है. आयोग ने निर्वाचन कार्यक्रम भी जारी कर दिया है. इसके मुताबिक, चुनाव की अधिसूचना 5 जुलाई को जारी होगी. 19 जुलाई तक नामांकन दाखिल किये जायेंगे. 20 जुलाई को नामांकन पत्रों की जांच की जायेगी. 22 जुलाई तक उम्मीदवार अपना नाम वापस ले सकेंगे.

6 अगस्त को हो सकती है वोटिंग

अगर मतदान की जरूरत पड़ी, तो 6 अगस्त को राज्यसभा के सभी 233 सदस्यों के अलावा उच्च सदन के नॉमिनेटेड 12 सदस्य और लोकसभा के 543 सांसद सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इसके बाद उसी दिन मतगणना करायी जायेगी. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त 2022 को समाप्त हो रहा है.

788 सदस्य करते हैं उपराष्ट्रपति का चुनाव

बता दें कि संसद के दोनों सदनों के 788 सदस्य उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करते हैं. सभी सांसदों के वोट का समान महत्व होता है. दोनों सदनों के सदस्य के वोट का मूल्य 1 (एक) होता है. निर्वाचन आयोग ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की अगुवाई में एक बैठक हुई, जिसके बाद निर्वाचन की तिथि और कार्यक्रम जारी किया गया.

वोट के लिए विशेष पेन देगा चुनाव आयोग

निर्वाचन आयोग ने कहा है कि मतदान के लिए आयोग की ओर से एक विशेष पेन दिया जायेगा. उसी पेन से मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देंगे. निर्वाचन आयोग ने कहा है कि पहली प्राथमिकता का वोट देना सभी के लिए अनिवार्य है. इसके बाद चाहें, तो सांसद दूसरी वरीयता का वोट नहीं भी दे सकते हैं. कहा गया है कि अगर आयोग की ओर से दिये गये विशेष पेन को छोड़ किसी और पेन से वोट डाला जाता है, तो उस वोट को रद्द कर दिया जायेगा.

लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल होंगे रिटर्निंग ऑफिसर

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि लोकसभा और राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल बारी-बारी से उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर बनाये जाते हैं. इस बार लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किये जायेंगे. आयोग ने इस बार संसद में सहायक रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति का भी फैसला किया गया है, जो रिटर्निंग ऑफिसर की मदद करेंगे.

उपराष्ट्रपति में कौन वोट डालता है?

उपराष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा के 233 निर्वाचित सांसद, राज्यसभा में मनोनीत 12 सांसद और लोकसभा के 543 सांसद वोट डाल सकते हैं। इस तरह के कुल 788 लोग वोट डाल सकते हैं। जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग होने के कारण इस वक्त राज्यसभा में जम्मू कश्मीर के कोटे की चार सीटें रिक्त हैं।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के इस्तीफे की वजह से भी एक सीट रिक्त है। इस तरह निर्वाचित सदस्यों की वर्तमान संख्या 228 ही है। वहीं, मनोनीत सांसदों की भी सात सीटें खाली हैं। इस तरह से इलेक्टोरल कॉलेज में कुल सदस्य संख्या फिलहाल 776 ही है। हालांकि, छह अगस्त से पहले इसमें बदलाव हो सकता है।

उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान होता कैसे है?

संविधान के अनुच्छेद 66 में उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया का जिक्र है। यह चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति से किया जाता है। इसमें वोटिंग सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होती है। आसान शब्दों में इस चुनाव के मतदाता को वरीयता के आधार पर वोट देना होता है। मसलन वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद के उम्मीदवार को एक, दूसरी पसंद को दो और इसी तरह से अन्य प्रत्याशियों के आगे अपनी प्राथमिकता नंबर के तौर पर लिखता है। ये पूरी प्रक्रिया गुप्त मतदान पद्धति से होती है। मतदाता को अपनी वरीयता सिर्फ रोमन अंक के रूप में लिखनी होती है। इसे लिखने के लिए भी चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए खास पेन का इस्तेमाल करना होता है।

मतों की गणना का कैसे की जाती है? 

पहले यह देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं। फिर सभी को मिले पहली प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाता है। कुल संख्या को दो से भाग किया जाता है और भागफल में एक जोड़ दिया जाता है। अब जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए जरूरी है।

अगर पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए जरूरी कोटे के बराबर या इससे ज्यादा वोट हासिल कर लेता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है। अगर ऐसा न हो पाए तो प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है। सबसे पहले उस उम्मीदवार को चुनाव की रेस से बाहर किया जाता है जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले हों।

इसके बाद जो उम्मीदवार रेस से बाहर होता है उसे पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है। फिर दूसरी प्राथमिकता वाले ये वोट अन्य उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। इन वोटों के मिल जाने से अगर किसी उम्मीदवार के मत कोटे वाली संख्या के बराबर या ज्यादा हो जाएं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

अगर दूसरे राउंड के अंत में भी कोई उम्मीदवार न चुना जाए तो प्रक्रिया जारी रहती है। सबसे कम वोट पाने वाले कैंडिडेट को बाहर कर दिया जाता है। उसे पहली प्राथमिकता देने वाले बैलट पेपर्स और उसे दूसरी काउंटिंग के दौरान मिले बैलट पेपर्स की फिर से जांच की जाती है और देखा जाता है कि उनमें अगली प्राथमिकता किसे दी गई है।

फिर उस प्राथमिकता को संबंधित उम्मीदवारों को ट्रांसफर किया जाता है। यह प्रक्रिया जारी रहती है और सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को तब तक बाहर किया जाता रहेगा जब तक किसी एक उम्मीदवार को मिलने वाले वोटों की संख्या कोटे के बराबर न हो जाए।

उपराष्ट्रपति की उम्मीदवारी कब स्वीकार होती है?

चुनाव में खड़े होने के लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम 20 संसद सदस्यों को प्रस्तावक और कम से कम 20 संसद सदस्यों को समर्थक के रूप में नामित कराना होता है। उपराष्ट्रपति का प्रत्याशी बनने के लिए 15 हजार रुपए की जमानत राशि जमा करनी होती है। नामांकन के बाद फिर निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्रों की जांच करता है और योग्य उम्मीदवारों के नाम बैलट में शामिल किए जाते हैं।

 कौन लड़ सकता है उपराष्ट्रपति का चुनाव? 

  •  भारत का नागरिक हो।
  • 35 साल वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • वह राज्यसभा के लिए चुने जाने की योग्यताओं को पूरा करता हो।
  • उसे उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए।
  • कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, वह इसका पात्र नहीं हो सकता है।

उम्मीदवार संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए। अगर वह किसी सदन का सदस्य है तो उसे उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ेगी।

उपराष्ट्रपति के पास क्या जिम्मेदारियां होती हैं, कैसे करते हैं काम? 

यूं तो उपराष्ट्रपति की संवैधानिक जिम्मेदारियां बहुत सीमित हैं लेकिन राज्यसभा के सभापति के तौर पर भूमिका काफी अहम हो जाती है। इसके अलावा उनकी जिम्मेदारी तब और अहम हो जाती है, जब राष्ट्रपति का पद किसी वजह से खाली हो जाए। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की जिम्मेदारी भी उपराष्ट्रपति को ही निभानी पड़ती है क्योंकि राष्ट्रप्रमुख के पद को खाली नहीं रखा जा सकता। देश के प्रोटोकॉल के हिसाब से भी राष्ट्रपति सबसे ऊपर होता है। इसके बाद उपराष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री।

राष्ट्रपति चुनाव से कितना अलग है उपराष्ट्रपति का चुनाव?

उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्य वोट डालते हैं। इनमें राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी शामिल होते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचित सांसद और सभी राज्यों के विधायक मतदान करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सांसद वोट नहीं डाल सकते हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसा नहीं है। उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसे सदस्य भी वोट कर सकते हैं।

 

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