ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से हुआ है बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार.

ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से हुआ है बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अखिल भारतीय ऋण एवं निवेश सर्वे का प्रतिवेदन वर्ष 2018 के लिए जारी किया गया है। इस प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2012 एवं 2018 के बीच ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में औसत ऋण की राशि में काफी सुधार देखने में आया है। ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की राशि में 84 प्रतिशत की वृद्धि एवं शहरी क्षेत्रों में 42 प्रतिशत की वृद्धि, उक्त 6 वर्षों के दौरान, दृष्टिगोचर हुई है। देश के 18 राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में औसत ऋण की राशि इस अवधि के दौरान दुगुनी से भी अधिक हो गई है जबकि 7 राज्यों के शहरी क्षेत्रों में औसत ऋण की राशि इस अवधि के दौरान दुगुनी से भी अधिक हो गई है। इसी प्रकार, 5 राज्यों के शहरी एवं ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों में औसत ऋण की राशि इस अवधि के दौरान दुगुनी से भी अधिक हो गई है।

उक्त वर्णित 6 वर्षों की अवधि के दौरान ऋण आस्ति अनुपात में भी वृद्धि देखने में आई है। ग्रामीण परिवारों में ऋण आस्ति अनुपात वर्ष 2012 के 3.2 से बढ़कर वर्ष 2018 में 3.8 हो गया है। इसी प्रकार शहरी परिवारों में ऋण आस्ति अनुपात वर्ष 2012 के 3.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2018 में 4.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इस सर्वे के प्रतिवेदन में यह एक अच्छी खबर उभरकर सामने आई है कि उक्त बढ़े हुए ऋण की राशि से आस्तियों को निर्मित किया गया है अर्थात ऋण की राशि को अपने व्यवसाय को बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है ताकि ऋण उपयोगकर्ता के व्यवसाय में वृद्धि हो सके एवं उनकी बढ़ी हुई लाभप्रदता में से ऋण की ब्याज राशि एवं मूलधन का भुगतान समय पर किया जा सके।

कोरोना महामारी के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में तरलता को बनाए रखने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा लिए गए कई निर्णयों के कारण इस कालखंड में देश के व्यवसायियों, किसानों, छोटे-छोटे उद्योग धंधों (सूक्ष्म, लघु, मध्यम एवं कुटीर उद्योगों) एवं परिवारों को व्यावसायिक बैंकों (सरकारी क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र में), सहकारी बैकों, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों, आदि द्वारा आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया गया है ताकि इन कारोबारियों एवं किसानों को तरलता की कमी नहीं हो एवं वे इस कोरोना महामारी काल में भी अपना व्यवसाय सुचारू रूप से चला सकें।

इस प्रकार, परिवार ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत वर्ष 2019-20 के 32.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 37.3 प्रतिशत तक पहुंच गया। हालांकि एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि 30 जून 2021 को समाप्त तिमाही के दौरान परिवार ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत घटकर 34 प्रतिशत पर आ गया है क्योंकि एक तो कारोबारियों, किसानों एवं परिवारों ने अपने ऋण का भुगतान समय पर किया है और दूसरे, इस तिमाही के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी अच्छी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है।

 

उक्त सर्वे के प्रतिवेदन में एक अच्छी खबर यह भी उभरकर आई है कि इन 6 वर्षों के दौरान विशेष रूप से देश के ग्रामीण इलाकों में गैर-संस्थानों से लिए गए ऋण का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। यह वर्ष 2012 के 44 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2018 में 34 प्रतिशत हो गया है। इसका आशय यह है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में वित्तीय संस्थानों ने अधिक ऋण प्रदान किया है। इस प्रकार देश के ग्रामीण इलाकों में अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण हुआ है। इस क्षेत्र में विशेष रूप से हरियाणा, गुजरात, बिहार, राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल में बहुत अच्छा काम हुआ है।

एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 को समाप्त पिछले 7 वर्षों की अवधि के दौरान, किसान क्रेडिट कार्ड की संख्या में 5 गुना से अधिक वृद्धि दर्ज हुई है। यह विश्वास भी जताया जा रहा है कि कृषि के क्षेत्र में हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए वित्तीय सुधार कार्यकर्मों से कृषि क्षेत्र के औपचारीकरण में और भी तेजी देखने में आएगी, इससे छोटे-छोटे किसानों को अधिक लाभ होने की सम्भावना है क्योंकि अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होने से शनैः शनैः बिचौलियों की महत्ता खत्म होती जाती है और इसका सीधा लाभ छोटे-छोटे किसानों को मिलता है।

 

हालांकि ग्रामीण इलाकों में वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किए गए ऋण का प्रतिशत अब 66 प्रतिशत पर पहुंच गया है और इससे भी देश की अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण की झलक दिखाई देती है। परंतु, देश के शहरी इलाकों में वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किए गए ऋण का प्रतिशत 87 है। इस प्रकार, ग्रामीण इलाकों में अभी भी वित्तीय संस्थानों द्वारा मेहनत किए जाने की आवश्यकता है।

केंद्र सरकार द्वारा किए गए उक्त सुधार कार्यक्रमों के साथ ही अब कृषि क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण सुधार किए जाने की आवश्यकता है। बैंकिंग नियमों के अनुसार, उद्योग धंधों एवं व्यापार के लिए प्रदान किए जाने वाले ऋणों का नवीनीकरण एवं वृद्धिकरण समय पर केवल ब्याज अदा किए जाने के बाद किया जा सकता है जबकि कृषि क्षेत्र में किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से प्रदान किए जाने वाले ऋण की स्थिति में ऋण के नवीनीकरण एवं वृद्धिकरण के लिए किसान को ऋण एवं ब्याज की राशि दोनों का भुगतान करना आवश्यक होता है।

अतः इस नियम का अब सरलीकरण करना आवश्यक हो गया है अर्थात किसानों के लिए भी उनके किसान क्रेडिट कार्ड का नवीनीकरण एवं ऋणों में वृद्धि करने के लिए समय पर केवल ब्याज का भुगतान किया जाना ही आवश्यक होना चाहिए न कि मूलधन की राशि का भुगतान भी किया जाना आवश्यक हो।

कृषि क्षेत्र में अभी और वित्तीय सुधार किए जाने की आवश्यकता बनी हुई है क्योंकि देश की आबादी का 44 प्रतिशत भाग अभी भी अपने रोजगार के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और कृषि क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 16 प्रतिशत ही है और कृषि क्षेत्र केवल 3 से 4 प्रतिशत के बीच की वृद्धि दर प्रतिवर्ष दर्शाता है अतः इस गति से तो कृषि क्षेत्र पर निर्भर लोगों की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि बहुत ही कम मात्रा में हो रही है।

उक्त सर्वे प्रतिवेदन के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में प्रति परिवार औसत ऋण की राशि 59,748 रुपए थी जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रति परिवार औसत ऋण की राशि 120,000 रुपए थी। शहरी क्षेत्रों में अधिक ऋण की राशि उपलब्ध करने से शहरी क्षेत्रों में व्यवसाय भी अधिक तेज गति से आगे बढ़ रहा है। इस प्रकार, ग्रामीण इलाकों में भी अभी और अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!