देश के दूरदराज क्षेत्रों तक इंटरनेट पहुंचाने की प्रक्रिया में तेजी आने की जगी उम्मीद.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के छह वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जुलाई को इसके फायदे गिनाते हुए कहा कि आनलाइन शिक्षा से लेकर चिकित्सा तक के लिए विकसित किए गए प्लेटफॉर्म से करोड़ों भारतीय लाभान्वित हो रहे हैं। कोरोना काल में इसकी बदौलत ही दूरदूराज तक स्वास्थ्य सुविधाओं को संभव बनाया जा सका। साथ ही इसके सहयोग से कोरोना महामारी से निपटने में भी मदद मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संदर्भ में नया नारा देते हुए कहा- डिजिटल इंडिया मतलब सबको अवसर, सबको सुविधा, सबकी भागीदारी।

इसके बढ़ते उपयोग के बीच अब हाई स्पीड इंटरनेट की जरूरत महसूस की जा रही है। इसकी पूíत में देसी-विदेशी कंपनियां से लगी हुई हैं। इसी संदर्भ में जियो ने गूगल से समझौता किया है, तो बीएसएनएल ऑप्टिकल फाइबर बिछाने पर जोर दे रही है। टेलीकॉम आपरेटरों में पुरानी कंपनी एयरटेल 28.2 मेगाहट्र्ज एयरवेव और एडवांस नेटवर्क साफ्टवेयर टूल का इस्तेमाल कर हाई स्पीड डाटा सíवस एवं गांवों में व्यापक सुविधाएं उपलब्ध करवाना चाहती है।

इनसे हटकर हजारों सेटेलाइटों के जरिए आकाश से इंटरनेट सेवा लाने की होड़ मची हुई है। इसमें अमेजन भी शामिल हो गया है। उसने करीब तीन हजार सेटेलाइट लांच करने का एक प्रोजेक्ट बनाया है। उसकी निगाह भारत के सबसे बड़े इंटरनेट बाजार पर है। उनके सेटेलाइट पृथ्वी के सबसे निकटतम भू-स्थिर कक्षा यानी लो-अर्थ आर्बटि (एलईओ) में स्थापित किए जाएंगे, जिससे पृथ्वी के चारों ओर सेटेलाइटों के समूह का जाल बन जाएगा।

इस सिलसिले में पिछले एक दशक से प्रयास जारी है। इंटरनेट स्पीड बढ़ाने से लेकर सभी जगहों पर उसकी सहज उपलब्धता को लेकर तरह-तरह के उपाय ढ़ूंढे जा रहे हैं। पूरी दुनिया में इंटरनेट के लिए समुद्र में केबल फैलाए गए हैं। कई मल्टीनेशनल कंपनियां इस मैदान में हैं। गूगल और फेसबुक से लेकर स्पेसएक्स तक इसमें शामिल हैं। हालांकि फेसबुक और गूगल को इस मामले में अब तक अप्रत्याशित सफलता नहीं मिली है।

फेसबुक ने 2013 में अपना प्रोजेक्ट ‘इंटरनेट डॉट ओआरजी’ शुरू किया था। आकाशीय इंटरनेट के लिए सेटेलाइट भी छोड़े। असफल हुए। इसी तरह गूगल ने बैलून के जरिए इंटरनेट उपलब्धता का प्रयोग किया। उन्हें भी आशानुरूप सफलता नहीं मिली। इस क्षेत्र से दोनों ने अपने हाथ खींच लिए। उसके बाद स्पेसएक्स को सैकड़ों सेटेलाइट के जरिए आकाश से इंटरनेट सेवा देने में सफलता मिली। उसकी योजना 2,824 सेटेलाइट छोड़ने की है।

स्पेसएक्स दुनिया को अपने ‘स्टार लिंक’ प्रोजेक्ट से जोड़ना चाहती है, जो छोटी सेटेलाइटों का एक सिस्टम है। प्रोजेक्ट की पहली किस्त के तौर पर अमेरिकी क्षेत्र को कवर करने के लिए 60 सेटेलाइट को मई 2019 में छोड़ा जा चुका है। एशियाई देशों को ध्यान में रखकर भी पिछले दिनों सेटेलाइट छोड़े गए। अमेजन द्वारा भारत में हाई स्पीड सेटेलाइट इंटरनेट सेवाओं को लाने की दौड़ में शामिल होने को वन-वेब और स्पेसएक्स के खिलाफ प्रतिस्पर्धा के नजरिए से देखा जा रहा है।

अमेजन भारत में पहले से ही हाई स्पीड सेटेलाइट इंटरनेट सेवाएं शुरू करने की योजना पर काम रहा है। इसके तहत अप्रैल 2019 में ‘प्रोजेक्ट कुइपर’ की नींव रखी गई थी। इसकी स्थापना तब ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए एक बड़े ब्रॉडबैंड उपग्रह इंटरनेट समूह को तैनात करने के लिए की गई थी। उन्हीं दिनों अमेजन ने घोषणा की थी कि वह इस परियोजना में उपग्रह इंटरनेट समूह को तैनात करने के लिए 10 अरब डॉलर का निवेश करते हुए कुल 3,236 सेटेलाइट लांच किए जाएंगे।

सेटेलाइट लांचिंग की तैयारी के बाद कानूनी वैधता हासिल करने के लिए अमेजन भारत सरकार के संपर्क में है। अमेजन को भारत में विदेशी उपग्रहों के संकेतों को डाउनलिंक करने के लिए लैंडिंग अधिकारों की भी आवश्यकता होगी, जो अंतरिक्ष विभाग द्वारा प्रदान किया जाएगा। साथ ही भारत में उसे अंतरिक्ष विभाग और दूरसंचार विभाग के साथ सहमति बनने एवं उनसे अनुमति मिलने पर ही वह भारत के लिए सेटेलाइट सíवस का इस्तेमाल कर पाएगा। इसके लिए आवश्यक नियामक के अनुमोदन की जरूरत होगी और भारत के कानूनी दायरे में रहकर सेवाएं बहाल करने की इजाजत मिलेगी।

तकनीकी तौर पर समङों तो पाएंगे कि अमेजन एलईओ उपग्रहों का एक तारामंडल बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इस पर खर्च की जाने वाली राशि में भारत में कितना निवेश होगा, इस बारे में अभी उसने कुछ नहीं कहा है। आखिर आकाश से बेतार इंटरनेट देने के लिए इतनी होड़ क्यों मची हुई है? इसका जवाब स्पेसएक्स, अमेजन और गूगल के पास है।

उसके अनुसार इसमें सफलता मिलने पर इंटरनेट कनेक्टिविटी संबंधी दिक्कत हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। उनकी मंशा धरती के चप्पे-चप्पे को इंटरनेट से जोड़ना है। साथ ही, उसमें एकाधिकार वाले कारोबारी हित के छिपे होने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, ग्लोबल इंटरनेट एक्सेस की जब बात होती है तो विभिन्न देशों में इसकी उपलब्धता में काफी अंतर की भी चर्चा होती है। इस अंतर को खत्म करने के लिए आकाश से आने वाले वायरलेस इंटरनेट का दायरा बढ़ाया जा रहा है।

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