फाइलेरिया प्रसार दर का पता लगाने होगा ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे
राज्य के 6 जिलों में होने वाले सर्वे में गया जिला भी है शामिल: जिला में 682 लिम्फेडेमा और 403 हाइड्रोसील के मामले:
श्रीनारद मीडिया, गया, (बिहार):
बिहार के गया जिला में फाइलेरिया रोग उन्मूलन को लेकर ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे किया जायेगा। सर्वे में बिहार के 6 जिलों को शामिल किया गया है। इनमें गया, अरवल, खगड़िया, भोजपुर, कटिहार, एवं पूर्णिया हैं। ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे की मदद से यह जानकारी मिल सकेगी कि किस क्षेत्र में फाइलेरिया का प्रसार खत्म हो चुका है और फाइलेरिया की रोकथाम को लेकर मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के तहत दवा सेवन कराने की कितनी जरूरत है। तैयार मापदंड के आधार पर यह सर्वे किया जायेगा। यह जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ राजेश पांडेय ने फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर 20 सितंबर से राज्य के 22 जिलों में शुरू होने वाली मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के तहत आयोजित राज्य स्तरीय मीडिया वर्कशाप के दौरान दी। उन्होंने बताया फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे: हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों में सूजन) और दूधिया सफेद पेशाब (काईलूरिया) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक भेदभाव सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। इसकी रोकथाम बहुत ही जरूरी है।
जिला में भी हैं फाइलेरिया के मामले:
वर्ष 2020—21 की लाइन लिस्टिंग के अनुसार जिलावार लिम्फेडेमा और हाइड्रोसील के आंकड़े बताते हैं कि जिला में 682 मामले लिम्फेडेमा और 403 मामले हाइड्रोसील के हैं. लिम्फेडेमा एक ऐसा संक्रमण है जिसमें हाथ या पैर में सूजन हो जाता है. शरीर में लसीका प्रणाली में अवरोध होने से ऐसा होता है. आमभाषा में हाथीपांव के नाम से जाना जाने वाले इस रोग के कारण रोगी का काम करना या चलना फिरना दुर्भर हो जाता है.
ट्रांसमिशन असेसमेंट के तहत होती है रक्त जांच:
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ एमई हक ने बताया फाइलेरिया प्रभाव को देखते हुए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के तहत लगातार पांच साल तक फाइलेरिया दवा सेवन करा कर ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे का काम किया जाता है. ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे के दौरान स्कूल के पहली व दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले छह से सात वर्ष आयुवर्ग के बच्चों के खून की जांच की जाती है. इस जांच के लिए एक किट का इस्तेमाल किया जाता है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा उपलब्ध कराया जाता है. इस जांच से ट्रांसमिशन की स्थिति की जानकारी मिलती है. ट्रांसमिशन दर को देखते हुए आवश्यक होने पर दो बार पुन: एमडीए राउंड चलाया जाता है. उन्होंने बताया पूरा बिहार फाइलेरिया से प्रभावित है. इसमें गया जिला भी शामिल है.
फाइलेरिया पीड़ादायक रोग, मच्छरों से बचाव जरूरी:
लिम्फैटिक फाइलेरियासिस या हाथीपांव एक पीड़ादायक रोग है जो क्यूलेक्स मादा मच्छर के काटने से होता है. इसलिए मच्छरों से बचाव आवश्यक है. मच्छरों से बचाव के लिए घरों के आसपास गंदगी नहीं होने दें तथा सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल अवश्य करें. यह संकमण आमतौर पर बचपन में हो जाता है और शरीर की लसिका तंत्र को क्षतिग्रस्त कर देता है. यदि सही समय में इसका इलाज नहीं किया जाये तो संक्रमण बढ़ जाता है. फाइलेरिया से जुड़ी विकलांगता जैसे लिम्फेडिमा पैरो में सूजन और हाइड्रोसील अंडकोष की थैली में सूजन के कारण पीड़ित लोगों को अक्सर सामाजिक बोझ सहना पड़ता है जिससे उनकी आजीविका और काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है. सभी लोग जिन्हें फाइलेरिया से खतरा है उन्हें डीईसी तथा अल्बेंडाजोल का निश्चित रूप से सेवन कराना होता है.
फाइलेरिया के लक्षण:
• हाथ, पैर तथा जननअंग में सूजन
• त्वचा का सख्त और मोटा होना
• प्रभावित हिस्से में दर्द व बेचैनी
• बुखार, कफ व सांस में तकलीफ
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