भारत में कुपोषण की समस्या क्यों हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में कुपोषण (Malnutrition) की समस्या, विशेष रूप से छोटे बच्चों में व्याप्त कुपोषण, सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों में से एक है। यह बच्चों की मृत्यु में से लगभग आधे भाग के लिये ज़िम्मेदार है और बच्चों में रुग्णता का एक प्रमुख कारण है। इससे गरीबी और भेदभाव में निहित चिकित्सा और सामाजिक विकार संबद्ध है। इसका एक आर्थिक तरंग प्रभाव (Ripple effect) भी उत्पन्न होता है जो विकास को बाधित करता है।

  • कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिये सरकार विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन कर रही है। हालाँकि उनके वित्तपोषण और कार्यान्वयन में अभी भी अंतराल मौजूद हैं। इस मुद्दे को समग्र रूप से संबोधित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है।

कुपोषण क्या है?

  • कुपोषण में शरीर में स्वस्थ ऊतकों और अंगों के कार्यकरण हेतु आवश्यक विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
    • यह स्थिति उन लोगों में उत्पन्न होती है जो या तो अल्प-पोषित (Undernourished) या अति-पोषित (over-nourished) हैं।
  • भारत में कुपोषण के विभिन्न आयामों में शामिल हैं:
    • कैलोरी की कमी
    • प्रोटीन हंगर
    • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी

कुपोषण से निपटने के लिये सरकार की वर्तमान पहलें

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक कुपोषण के उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission- NNM) लॉन्च किया है जिसे पोषण अभियान (POSHAN Abhiyaan) के रूप में भी जाना जाता है।
  • एनीमिया मुक्त भारत अभियान: इसे वर्ष 2018 में एनीमिया में कमी की गति को सालाना एक से तीन प्रतिशत अंकों तक कम करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • मध्याह्न भोजन (Mid-day Meal- MDM) योजना: इसका उद्देश्य स्कूलों में बच्चों के नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति बढ़ाने के अलावा उनके पोषण स्तर में सुधार लाना है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA), 2013: इस अधिनियम का उद्देश्य भोजन तक पहुँच को कानूनी अधिकार बनाते हुए समाज के सबसे कमज़ोर लोगों के लिये खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस कार्यक्रम का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को भोजन, पूर्व-स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवाएँ प्रदान करना है।

भारत में कुपोषण से संबद्ध प्रमुख समस्याएँ

  • भूख की पहचान का मनमाना रवैया: किसी परिवार के गरीबी रेखा से नीचे होने की स्थिति निर्धारित करने का मानदंड मनमाना है और यह एक राज्य से दूसरे राज्य में पर्याप्त भिन्न है। इसके अलावा, गरीबी रेखा से ऊपर (APL) और गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के दोषपूर्ण वर्गीकरण के कारण खाद्य उपभोग में व्यापक गिरावट आई है।
    • इसके अलावा, खराब गुणवत्ता के अनाजों ने समस्या में योगदान किया है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (Micronutrient Deficiency): भारत में सूक्ष्म पोषक तत्वों की गंभीर कमी देखी गई है, जिसे ‘प्रच्छन्न भूख’ (Hidden Hunger) के रूप में भी जाना जाता है। इसके कई कारण हैं, जिनमें गुणवत्ताहीन आहार ग्रहण, बीमारी और गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों के ग्रहण की कमी शामिल है।
    • इसके अलावा, माताओं में पोषण, स्तनपान और पालन-पोषण के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव भी पाया जाता है।
  • गरीबी का दुष्चक्र: निम्न क्रय शक्ति के कारण गरीब लोग परिवार के लिये वांछित मात्रा में और वांछित गुणवत्ता का भोजन नहीं खरीद पाते हैं। इससे शारीरिक श्रम करने की उनकी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वे निम्न आय अर्जित करते हैं।
    • इससे फिर गरीबी, अल्पपोषण, निम्न कार्य क्षमता, निम्न आय अर्जन, गरीबी के एक दुष्चक्र का निर्माण होता है।
  • संक्रमण प्रेरित कुपोषण: मलेरिया एवं खसरा जैसे संक्रमण तीव्र कुपोषण को बढ़ावा दे सकते हैं और मौजूदा पोषण की कमी को और बढ़ा सकते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और सामर्थ्य की कमी से स्थिति और बदतर हो जाती है।
    • इसके अलावा, संक्रमण के दौरान भूख की कमी से कम कैलोरी के सेवन की स्थिति बन सकती है जो फिर कुपोषण की ओर ले जाती है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक कारक: अधिकांश गरीब परिवारों में महिलाओं और छोटे बच्चों (विशेष रूप से बालिकाओं) को आर्थिक रूप से सक्रिय पुरुष सदस्यों की तुलना में कम भोजन प्राप्त होता है।
    • बड़े परिवारों में बार-बार गर्भधारण से माताओं की पोषण स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बड़े परिवार को संभालने के प्रयास में वे गर्भावस्था के दौरान अपने स्वयं के स्वास्थ्य और प्रसव पूर्व जाँचों की उपेक्षा करती हैं।
      • माताओं में अल्पपोषण की स्थिति कम वजन के शिशुओं के जन्म का कारण बन सकती है।

आगे की राह

  • पोषण संबंधी जागरूकता: स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कम लागत वाले खाद्य पदार्थों के महत्त्व एवं पोषण संबंधी गुणवत्ता के बारे में जनता को शिक्षित करने के रूप में ज़मीनी स्तर पर पोषण संबंधी जागरूकता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
    • कम व्यय पर स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री के उपयोग से उपयुक्त शिशु आहार (Weaning Foods) और पूरक खाद्य पदार्थ तैयार करने के सर्वोत्तम तरीकों को को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से परिवार की महिलाओं के साथ भी साझा किया जा सकता है।
  • कुपोषण का आरंभ में ही पता लगा लेना: नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं का एक अच्छी तरह से रिकॉर्ड किया गया विकास स्वास्थ्य चार्ट आरंभिक चरण में ही कुपोषण का पता लगा सकता है।
    • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रत्येक ज़िले में मध्याह्न भोजन योजना को एक सामाजिक लेखा परीक्षा के अधीन भी लाना चाहिये।
      • कार्यक्रम निगरानी के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग भी एक सार्थक विचार है।
  • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में सुधार: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) में सुधार से महिलाओं और बच्चों के पोषण स्तर में निश्चित रूप से सुधार होगा।
    • एक अच्छी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली जो टीकाकरण, मौखिक पुनर्जलीकरण (oral rehydration), समय-समय पर कृमिनाशक उपाय और सामान्य बीमारियों का उचित उपचार प्रदान करे, समाज में कुपोषण को रोकने में दीर्घकालिक योगदान कर सकती है।
  • व्यापक पोषण स्थिति: पोषण केवल आहार तक सीमित विषय नहीं है; इसमें स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता, लैंगिक दृष्टिकोण और सामाजिक मानदंड भी शामिल हैं। इसलिये, यह ज़रूरी है कि पोषण संबंधी कमियों को दूर करने के लिये व्यापक नीतियों का विकास किया जाए।
    • स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और पोषण अभियान को समन्वित करने से भारत की पोषण स्थिति में समग्र रूप से परिवर्तन लाया जा सकता है।
  • कृषि-पोषण गलियारा: भारत के पोषण केंद्र (गाँव) सबसे अधिक अल्पपोषित हैं और गाँवों की पोषण सुरक्षा की जाँच के लिये तंत्र विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
    • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस कड़ी को चिह्नित करते हुए वर्ष 2019 में ‘भारतीय पोषण कृषि कोष’ स्थापित किया था।
  • उपलब्धता, पहुँच, सामर्थ्य: खाद्य की बेहतर आपूर्ति एवं उत्पादन, क्रय शक्ति बढ़ाने हेतु कार्यक्रम और बेहतर फसल उत्पादन के लिये किसानों का बेहतर कृषि मार्गदर्शन देश की पोषण सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।
    • इसके अतिरिक्त, सरकार को किसानों को उनके उत्पादों के विपणन में सहायता देनी चाहिये और साथ ही साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि एक उपयुक्त निगरानी-पूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे तंत्रों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण आहार सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हों।
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