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पुलिस तंत्र को जनता का पूरा भरोसा हासिल करना है-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. - श्रीनारद मीडिया

पुलिस तंत्र को जनता का पूरा भरोसा हासिल करना है-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय पुलिस सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों से संवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महत्वपूर्ण बातें कही हैं कि पुलिस तंत्र को जनता का पूरा भरोसा हासिल करना है. निश्चित रूप से पुलिसकर्मियों ने कोरोना संकट में प्रशंसनीय भूमिका निभायी है, लेकिन जब तक सामान्य पुलिसिंग का काम अच्छी तरह से नहीं करेंगे, हमें जनता का विश्वास प्राप्त नहीं होगा. सामान्य पुलिसिंग का मतलब यह है कि थाने पर कोई व्यक्ति शिकायत लेकर आता है, तो उसके प्रति हमारा रवैया कैसा है.

उसकी रिपोर्ट दर्ज होती है या नहीं होती, इसमें समय कितना लगता है और उसे सही ढंग से दर्ज किया जाता है या नहीं, फिर रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मामले की जांच-पड़ताल कितनी दक्षता से की जाती है, अपराधी की गिरफ्तारी या माल बरामद करने में कितनी तत्परता दिखायी जाती है, असली पुलिसिंग की परीक्षा इन्हीं अहम सवालों से होती है. ठीक है कि आपने कोविड काल में लोगों की मदद की, दवाई और खाना पहुंचा दिया, बहुत अच्छा है, पर यह एक तात्कालिक मामला है. यदि दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो पुलिस की जो बुनियादी जिम्मेदारी है, अगर वह ठीक से नहीं निभायी जायेगी, हम जनता का भरोसा नहीं जीत सकते हैं.

पुलिस व्यवस्था के विरुद्ध रिश्वत लेने, अनावश्यक बल प्रयोग करने, महिलाओं एवं वंचित समुदायों के साथ अनुचित रवैया अपनाने आदि की शिकायतें हैं. शिकायतें ऐसी भी हैं कि धनी और रसूखदार लोगों की बातें तो पुलिसकर्मी सुन लेते हैं, पर गरीबों की सुनवाई नहीं होती. जनता में पुलिस पर भरोसा बहाल करने के लिए इन शिकायतों को दूर करना होगा. नयी पीढ़ी के पुलिस अधिकारियों के समक्ष बड़ी और नयी चुनौतियां हैं.

बहुत सारे ऐसे अपराध हो रहे हैं, जिनके बारे में हमें अधिक पता भी नहीं था. ऐसे अपराधों में संगठित अपराध, साइबर अपराध आदि गंभीर हैं. नशीले पदार्थों का कारोबार, महिलाओं की तस्करी, पैसे का अवैध लेन-देन जैसे मामले जटिल और संगठित स्तर पर हैं. पहले तो हत्या, चोरी-डकैती जैसे अपराध ही मुख्य थे. अब अपराध का स्वरूप बदलता जा रहा है. इसी अनुपात में पुलिस व्यवस्था की चुनौतियां भी सघन होती जा रही हैं. नये अधिकारियों को कौशल और दक्षता से इनका सामना करना होगा.

चुनौतियों और समस्याओं की बढ़ोतरी की स्थिति में पुलिस तंत्र को और अधिक संबल और समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है. जब पुलिसकर्मी अच्छा काम करते हैं, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए और उनका हौसला बढ़ाया जाना चाहिए. यदि पुलिस व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कानूनी प्रावधानों में बदलाव की जरूरत पड़े, तो सरकार को उस दिशा में ध्यान देना चाहिए.

यह बात पिछले कुछ बरसों से लगातार कही जा रही है कि देशभर में पुलिसकर्मियों के लगभग पांच लाख पद खाली हैं. जनशक्ति के अभाव के साथ विभिन्न प्रकार के संसाधनों की कमी भी है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस संबंध में निर्देश दिया है, लेकिन सरकारों के आश्वासन के बावजूद संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है. सरकारों और राजनेताओं द्वारा पुलिस के रोजमर्रा के कामकाज में हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति में सुधार की आवश्यकता है.

सरकारों को चाहिए कि वे पुलिस को अपेक्षित स्वायत्तता प्रदान करें, ताकि वे अपना काम प्रभावी ढंग से कर सकें. पुलिस आपराधिक चुनौतियों का सामना तो अपनी तरफ से करेगी ही, लेकिन अधिकारियों को यह अहसास होना चाहिए कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाने में कोई रुकावट नहीं है.

पुलिस अधिकारियों को अपने मातहतों को उचित प्रशिक्षण उपलब्ध कराने और संवेदनशील बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए. इससे भी अहम पहलू है उनका कल्याण सुनिश्चित करना. संसाधनों की कमी के कारण आम पुलिसकर्मियों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है. मुझे लगता है कि उच्च अधिकारियों तथा सामान्य कर्मियों के बीच खाई उत्पन्न हो गयी है. इससे भी कामकाज पर नकारात्मक असर पड़ता है.

अधिकारियों को इस दूरी को पाटने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना चाहिए ताकि पूरा पुलिस बल एकजुट होकर अपराधों की रोकथाम और जांच-पड़ताल का काम ठीक से कर सके. विभिन्न परेशानियों की वजह से सिपाही यह सोचने लगते हैं कि अधिकारी केवल अपने सुख और सुविधा की चिंता करते हैं, वे अपनी गाड़ी ठीक रखते हैं, अपने कार्यालय में एयर कंडीशनर लगाते हैं, पर आम पुलिसकर्मियों की परवाह नहीं करते कि उनके लिए पीने के पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा भी है या नहीं.

नये पुलिस अधिकारियों को अपने मातहतों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील होना होगा. उन्हें सिपाहियों की समस्याओं का संज्ञान लेना चाहिए और अपने स्तर पर उनके समाधान की कोशिश करनी चाहिए. ऐसा होने पर ही वे उत्साह के साथ अपना कर्तव्य निभा सकेंगे.

निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा सकता है कि पुलिस व्यवस्था के भीतर जब तक जरूरी सुधार नहीं किये जायेंगे, तब तक ठीक से कामकाज भी नहीं होगा और जनता का भरोसा जीत पाना भी मुश्किल होगा. सरकारों तथा उच्च पदस्थ अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस सुधार से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जाए. यह सवाल अहम है कि इसमें देरी क्यों हो रही है. पुलिस बल को उत्कृष्ट बनाने के लिए अनेक स्तरों पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

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