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एक ऐसा श्मशान जहां अंतिम संस्कार कराती हैं देवरानी-जेठानी  - श्रीनारद मीडिया

एक ऐसा श्मशान जहां अंतिम संस्कार कराती हैं देवरानी-जेठानी 

एक ऐसा श्मशान जहां अंतिम संस्कार कराती हैं देवरानी-जेठानी

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

उतर प्रदेश  के जौनपुर जिले के खुटहन ब्लॉक का सबसे ज्यादा आबादी और क्षेत्रफल वाला गांव है पिलकिछा। गोमती के तट पर स्थित इस गांव के श्मशान घाट पर हर रोज सुबह 7-8 बजे तक दो महिलाएं पहुंच जाती हैं, जो शाम सात-आठ बजे तक रहती हैं। ये महिलाएं रिश्ते में देवरानी और जेठानी हैं। दोनों घाट पर आने वाले शवों का अंतिम संस्कार कराती हैं।

यह देखकर शव के साथ आने वाले भी हैरान हो जाते हैं और उनसे इस बारे में पूछ बैठते हैं। अपने पतियों की विरासत संभाल रहीं देवरानी-जेठानी अपनी कहानी बताते-बताते नहीं थकती हैं, लेकिन जब किसी बच्चे की देह चिता पर हो, तो दोनों का कंठ रुंध जाता है। मातृत्व की कोमलता पिघल कर आंखों से बह निकलती है। वे कहती हैं ऐसे परिवारों से दक्षिणा लेना भी हम पर भारी गुजरता है, लेकिन मजबूरी में यह कार्य करना पड़ता है।

जौनपुर के खुटहन ब्लॉक मुख्यालय से करीब चार किमी दूर स्थित पिलकिछा घाट पर ब्लॉक क्षेत्र के अलावा शाहगंज और बदलापुर तहसील के तथा अन्य पड़ोसी जिले सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, आजमगढ़ के लोग भी शवों का दाह संस्कार करने के लिए आते हैं। लेकिन, इस घाट की अलग ही पहचान हो गई है।

यहां देवरानी सरिता और उनकी जेठानी महराती दिन में आने वाले शवों का अंतिम संस्कार कराती हैं। जिन्हें देखकर एक बार शव लेकर आने वाले भी सोचने को मजूबर हो जाते हैं। दोनों महीने भर में करीब सौ शवों को जलाकर अपना और परिवार का खर्चा चलाती हैं।

इस कार्य में लगी पिलकिछा गांव की सरिता बताती हैं, 11 साल पहले पति चुनमुन की मौत हो गई थी। वे इसी घाट पर अंतिम संस्कार कराते थे। तब मेरे सामने दो ही रास्ते थे। मजदूरी करूं या अपने पति की विरासत संभालूं। काफी सोच विचारकर मैंने पति की विरासत संभालने का फैसला किया। हालांकि पहले लोगों ने समझाया और डराया भी, वे कहते थे शव देख कर डरोगी। नींद नहीं आएगी, समाज क्या कहेगा। लेकिन, अंतत: मैंने घाट का रास्ता चुना। इसी से परिवार का जीविकोपार्जन कर रही हूं।

सरिता की जेठानी महराती बताती हैं, करीब 25 साल पहले ब्याह करके आई थी, आठ साल पहले पति संजय की मौत हो गई। इसके बाद मैंने भी देवरानी की तरह अपने पति की विरासत को संभालने का फैसला किया। दाह संस्कार से मिलने वाले पैसों से ही घर का खर्च चलता हैं। एक बेटी की शादी कर चुकी हूं। एक ही बेटा है, वह भी हाथ व पैर से दिव्यांग है। यह कार्य सात वर्ष से कर रही हूं।

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