गांव की लाइफलाइन हैं आशा दयावंती, संस्थागत प्रसव के लिए करती हैं महिलाओं को जागरूक

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गर्भवती महिलाओं को देती हैं प्रसव पूर्व जांच और संस्थागत प्रसव के फायदों के बारे में जानकारी:

श्रीनारद मीडिया‚ गया, (बिहार)


स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियमित रूप स गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच की जाती है। ताकि उच्च जोखिम वाले प्रसव मामले का पता किया जा सके। प्रसव पूर्व जांच के साथ साथ ​संस्थागत प्रसव की संख्या बढ़ाने के लिए उद्देश्य से प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षा अभियान भी चलाया गया है। इस अभियान के तहत हर माह नौ तारीख को गर्भवती महिलाओं का वजन, रक्त, बीपी आदि की जांच की जाती है। जच्चा बच्चा को सुरक्षित रखने के इस कार्य में आशा कार्यकर्ताओं का उल्लेखनीय योगदान होता है। ग्रामीणों को संस्थागत प्रसव की सुविधा पहुंचाने में आशाओं कार्यकर्ताओं के इस योगदान में दयावंती जैसी आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करती हैं दयावंती:
जिला के डोभी प्रखंड की केसापी गांव की आशा कार्यकर्ता दयावंती विगत 15 सालों से अपने गांव की लाइफलाइन हैं। ऐसा इसलिए कि दयावंती अपने क्षेत्र में सभी गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित रखने का हरसंभव प्रयास करती हैं। चाहे उनका प्रसव पूर्व टीकाकरण हो या उनका प्रसव, सभी कामों को निर्धारित समय पर पूरा करना वे अपना दायित्व मानती हैं। दयावंती बताती हैं कि गांव में सबसे पहले उन महिलाओं की जानकारी लेती हैं जो गर्भवती हैं। इसके बाद वे गर्भवती और परिवार के सदस्यों से मिलती और गर्भवती के खानपान, प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण की जानकारी देती हैं। प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण के लिए गर्भवती को अस्पताल तक ले जाना होता है। वह बताती हैं कि कई बार गर्भवती महिला के परिवार वाले टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच की अहमियत को नहीं समझते तब उन्हें टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच नहीं कराने के नुकसान के बारे में बताना पड़ता है । गर्भवती महिलाओं का समय पूरा होने पर उन्हें संस्थागत प्रसव के लिए अस्पताल ले जाया जाता है। अस्पताल में चिकित्सकों व नर्सों को प्रसव के तैयारी करने की जानकारी पूर्व में ही देती हैं ताकि प्रसव कार्य में परेशानी नहीं हो। वह बताती हैं कि गांव के सभी परिवार के पास उनका मोबाइल नंबर है और रात दिन कभी भी उन्हें फोन किया जा सकता है।

प्रसूता की देखभाल से मिलती है जीवन को ऊर्जा:
आशा कार्यकर्ता दयावंती बताती हैं कि संस्थागत प्रसव और प्रसव पूर्व जांच के लिए लोगों को समझाना चुनौतीपूर्ण होता है। कई परिवार घरों पर ही प्रसव आदि कराने की बात करते हैं तो कुछ गर्भवती महिलाएं व ​उनके परिवार के सदस्य नियमित प्रसव पूर्व जांच को जरूरी नहीं समझते जिससे ​उन्हें समस्या का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन लगातार प्रयास से स्थिति बदली भी है। लोग अस्पतालों में प्रसव कराने को लेकर सहमति दे रहे है। वह बताती हैं कि कई बार रातों को भी प्रसव के अस्पताल ले जाना पड़ता है। ऐसे में रात रात भर रहकर प्रसूता और नवजात की देखभाल करनी होती है। लेकिन इन कामों से उन्हें थकान नहीं बल्कि ऊर्जा मिलती है।

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