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बिहार केवल इतिहास के भरोसे बैठा नौजवान नहीं, अपितु संभावनाओं की प्रबल बयार है! - श्रीनारद मीडिया

बिहार केवल इतिहास के भरोसे बैठा नौजवान नहीं, अपितु संभावनाओं की प्रबल बयार है!

बिहार केवल इतिहास के भरोसे बैठा नौजवान नहीं, अपितु संभावनाओं की प्रबल बयार है!

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बिहार के बारे में नकारात्मक अवधारणा के निरंतर प्रचार प्रसार ने खराब की सूबे की छवि

बिहार में संभावनाएं अपार, बस उठाना होगा अवसरों का लाभ

बिहार दिवस के संदर्भ में विशेष आलेख श्रृंखला भाग 03
✍️गणेश दत्त पाठक, स्वतंत्र टिप्पणीकार

श्रीनारद मीडिया –

बिहार बदनाम रहा है। वर्षों से बिहार के एक एक नकारात्मक तथ्य को विशेष तवज्जो दी जाती रही है। आश्चर्य इस बात पर होता है कि बिहार के संदर्भ में नकारात्मक नैरेटिव के संचार में सबसे ज्यादा योगदान बिहारवासियों का ही रहा है। बिहार के मजदूर दूसरे राज्यों में हैं तो बिहार के वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी दूसरे राज्यों में कार्यरत हैं। राजनीति के अपराधीकरण और अपराध का राजनीतीकरण, सिर्फ बिहार की थाती नहीं है यह भारतीय लोकतंत्र की एक विशिष्ट समस्या रही है। बिहार पर आरोप पलायन, गरीबी, बेरोजगारी, बाढ़, सूखा सबका लगता रहा है। फिर ये समस्याएं क्या देश के अन्य हिस्सों में नहीं है? अगर देश के अन्य भाग में ऐसी समस्याएं हैं तो फिर बिहार इन समस्याओं के संदर्भ में एकमात्र पहचान कैसे हो जाता हैं? बिहार केवल स्वर्णिम इतिहास के भरोसे बैठा नौजवान नहीं अपितु संभावनाओं की प्रबल बयार है।

क्या गुंडा तत्व सिर्फ बिहार की राजनीति में हैं?

बिहार को राजनीति के स्तर पर सबसे ज्यादा आलोचना झेलनी पड़ती है। राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतीकरण की सबसे मुखर प्रयोगशाला बिहार को ही माना जाता रहा है। राजनीति में गुंडा तत्व क्या सिर्फ बिहार में ही पाए जाते हैं? फिर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के बाहुबली क्या शराफत के परिचायक हैं? कभी बिहार में चुनाव के दौरान बूथ लूट लिए जाते थे तो देश के अन्य हिस्सों में ये घटनाएं नहीं होती थी क्या? क्या बाहुबल का प्रयोग राजनीति में सिर्फ बिहार में ही होता है? बिहार में राजनीति में अपराधिक तत्वों की भागीदारी से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन बिहार की राजनीति की पहचान बाहुबल को बना देना बिहार के साथ गंभीर अन्याय है!

क्या पलायन, बेरोजगारी, गरीबी सिर्फ बिहार की समस्या है?

जनांकिकीय तथ्यों को लेकर भी बिहार की आलोचना होती रहती है। बिहार की भौगोलिक स्थिति प्राचीन काल से भारी जनसंख्या के भरण पोषण के मुफीद रही है। जनसंख्या के अधिक होने पर पलायन, बेरोजगारी, गरीबी आदि तथ्य स्वाभाविक तौर पर सामने आते हैं। साथ में सवाल यह भी उठता है कि क्या पलायन, बेरोजगारी, गरीबी सिर्फ बिहार की समस्या है? फिर बिहार को इन तथ्यों के संदर्भ में बार बार क्यों लपेटा जाता है?

प्राकृतिक आपदाओं को आधार बनाकर बिहार को ताने देना कितना न्यायसंगत है?

बिहार की भौगोलिक स्थिति के कारण ही बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ आता है, सूखे की विकारालता को भी झेलना पड़ता है। हिमालय के पास होने से भूकंप का भी खतरा बना रहता है। ये प्राकृतिक आपदाएं हैं जिस पर किसी का बस नहीं होता। बिहार में हाल में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं को आधार बनाकर बिहार को ताने देना कितना न्यायसंगत है?

बिहारी छात्र सीमित संसाधनों के बूते कठिन परिश्रम के बल पर थोक भाव में हासिल करते हैं सफलता

बिहार शुरू से ही मेधा की धरती रहा है। चाणक्य, राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा, बृजकिशोर प्रसाद, तथागत तुलसी आदि प्रतिभाओं ने बिहार के मेधा का प्रतिनिधित्व किया है। यहां परिवार के स्तर पर पढ़ाई के प्रति विशेष संवेदनशीलता का भाव देखा जाता हैं। बिहारी छात्र सीमित संसाधनों के बूते कठिन परिश्रम के बल पर प्रतियोगिता परीक्षाओं में थोक भाव में सफलता हासिल करते है तो भी इसे बिहार के संदर्भ में नकारात्मक नैरेटिव का हिस्सा बना लिया जाता है।

बिहारी जनमानस तो श्रद्धाभाव का प्रतीक रहा है

बिहारी मजदूर अपने पसीने से पंजाब के खेतो को सींचते हैं और देश के अन्य बड़े शहरों की बुनियाद को मजबूत करते हैं फिर भी दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में गालियों का मिलना एक सामान्य घटना है। बिहार के लिए बीमार जैसे लफ्जों का इस्तेमाल भी किया जाता है। ये गलियां देनेवालों के मानसिक दिवालियापन का परिचायक तथ्य ही है। बिहारी लोग तो हर किसी के प्रति श्रद्धाभाव ही रखते हैं।

बिहार में संभावनाएं ही संभावनाएं मौजूद

बिहार केवल इतिहास के भरोसे बैठा नौजवान नहीं है। बिहार संभावनाओं की बयार है। उर्वर मृदा, उपलब्ध ताल तलैया, मानव संसाधन की प्रचुर उपलब्धता, आदि तथ्य बिहार के विकास की परिस्थितियों को बयां कर रहे हैं। खाद्य प्रसंस्करण, तरकारी उत्पादन, मछली, मखाना, मशरूम उत्पादन, सूचना तकनीक आदि में विशेषज्ञता बिहार के आयाम को विस्तृत करते नजर आते हैं। मानव संसाधन प्रबंधन और जल जीवन हरियाली आदि अभियान बिहार के तकदीर को बदल सकते हैं। पर्यटन के लिए भी बिहार एक आकर्षक स्थल बन सकता है। बिहार में बन रहे एक्सप्रेस वे बिहार के विकास की गति को तीव्रता प्रदान करने जा रहे हैं।

बिहार ऊर्जस्वित, तरंगित और प्रेरित हो रहा है। बिहार को सिर्फ सियासी नजरिए से ही नहीं देखा जाए। बिहार में अपार संभावनाएं है। बस आवश्यकता समन्वित, सार्थक और समर्पित प्रयासों की है।
जय बिहार?

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