जीवंत राष्ट्र के लिए जातिभेद के समूल उन्मूलन के पक्षधर थे ज्योतिबा फुले: गणेश दत्त पाठक

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पाठक आईएएस संस्थान में ज्योतिबा फुले की जयंती पर श्रध्दासुमन किया गया अर्पित

श्रीनारद मीडिया‚ सीवान (बिहार)

दूरदर्शी चिंतक, प्रखर विचारक और क्रांतिकारी समाज सुधारक ज्योतिबा फुले जीवंत राष्ट्र के लिए जातिभेद के समूल उन्मूलन के हिमायती थे। उनका मानना था कि समाज में धर्म पर अत्याधिक निर्भरता के कारण किसी प्रकार का सुधार तब तक संभव नहीं है, जब तक धर्म में सुधार न हो तथा धार्मिक विचार उन्नत बौद्धिकता पर आधारित न हो।

महात्मा फुले का मानना था कि किसी भी व्यक्ति को सामाजिक समानता, राजनीतिक भागीदारी, धार्मिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता तथा शिक्षा प्राप्ति के अधिकार से वंचित करना तथा उनका शारीरिक एवं मानसिक रूप से धर्म के आधार पर शोषण करना या शोषण को धर्म मानना क्रूरता तथा निर्दयता है। उनके विचार में धर्म आत्मशुद्धि है, सदाचरण है, जिसके द्वारा मनुष्य शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। उन्होंने कहा कि धर्म मानव मात्र की सेवा है।

यह स्वतंत्रता समानता तथा बंधुता की भावना है। उनके विचार में सभी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरूष जन्म से समान होते हैं। इसलिए उनके साथ किसी प्रकार का भेद-भाव का व्यवहार मानवता एवं नैतिकता के खिलाफ है तथा वह ईश्वर के साथ अपराध है।

ये बातें सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान में सोमवार को ज्योतिबा फुले के जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर एक संक्षिप्त परिचर्चा का आयोजन भी किया गया। इस परिचर्चा में संस्थान में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों मोहन यादव, रागिनी कुमारी, मीरा कुमारी, आकाश कुमार, रोहन पांडेय, विकास सिंह आदि ने भागीदारी की।

 

श्री पाठक ने इस अवसर पर कहा कि ज्योतिबा फुले का मानना था कि समाज के विकास के लिए यह आवश्यक है कि समाज का संगठन ऐसा हो कि उसके सभी सदस्यों को स्वतंत्रता एवं समानता के अधिकार बिना किसी भेद-भाव के प्राप्त हो तथा उनके बीच बंधुता और भाईचारा हो। उनके अनुसार विश्व एक परिवार है।

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