डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रवादी सोच के प्रेरक थे.

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पुण्यतिथि पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जब जब बात होगी, तब तब डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार की बात भी होगी। अगर हेडगेवार को हम त्याग की प्रतिमूर्ति कहे तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी। उन्होंने राष्ट्रहित को सर्वप्रथम रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ना सिर्फ एक संगठन के रूप में विकसित किया बल्कि उसे वैचारिक स्तर पर बहुत बड़ा बना दिया।

डॉ हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित बलिराम पंत था। बचपन से ही डॉ. हेडगेवार क्रांतिकारी स्वभाव के थे और उन्हें अंग्रेज के शासन से घृणा थी। स्कूल के दौरान भी डॉ. हेडगेवार के हिम्मत के किस्से खूब बताए जाते हैं। कहा यह जाता है कि एक बार अंग्रेज इंस्पेक्टर स्कूल की निगरानी के लिए पहुंचा था। हेडगेवार ने सहपाठियों के साथ उसका वंदे मातरम गाकर स्वागत किया। अंग्रेज इंस्पेक्टर इसके बाद इतना बिफर गया कि केशवराव को स्कूल से निकाल दिया गया। हालांकि डॉ. हेडगेवार ने अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई पूना के नेशनल स्कूल में पूरी की थी।

1910 में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए वे कोलकाता गए। वहां वे किसी क्रांतिकारी संस्था के संपर्क में आए थे। डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1915 में वे नागपुर लौटे और अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ठान ली थी। यही कारण रहा कि वे कांग्रेस में शामिल हो गए और उसके सक्रिय सदस्य बन गए। कांग्रेस ने उन्हें विदर्भ प्रांत का सचिव भी बना दिया। कहा तो यह भी जाता है कि 1920 में कांग्रेस का नागपुर में राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था।

इसी अधिवेशन में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के बारे में एक प्रस्तुति दी थी जिसे तब पारित नहीं किया गया था। हालांकि हेडगेवार लगातार अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे। असहयोग आंदोलन के दौरान भी उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी थी और जेल में 1 वर्ष बिताए थे। हालांकि, हेडगेवार अपने क्रांतिकारी विचार और अदम्य साहस की वजह से लोकप्रिय होते जा रहे थे। यही कारण था कि जब वह जेल से निकलकर वापस आए तो उनके स्वागत सभा में मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खान जैसे दिग्गजों ने अपना संबोधन दिया था।

हेडगेवार को यह भी लगता था कि केवल आंदोलन के जरिए लोगों को जागृत नहीं किया जा सकता है बल्कि वैचारिक तौर पर लोगों के अंदर राष्ट्रवाद को लाना बेहद जरूरी है। हेडगेवार चाहते थे कि एक ऐसा संगठन बने जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़े। वो हिन्दू समाज की जड़ों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक और दार्शनिक स्तर पर मजबूत रहे। यही कारण रहा कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से संस्कारशाला की शुरुआत की थी। यह देखने में तो साधारण सी थी। परंतु कई मायनों में चमत्कारी सिद्ध हो रही थी।

1925 में संघ की शुरुआत के बावजूद भी हेडगेवार का रुझान कांग्रेस के प्रति काफी सकारात्मक रहा। उन्होंने महात्मा गांधी के नमक कानून विरोधी आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जिसमें उन्हें 9 महीने की कैद हुई। हेडगेवार ना सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे बल्कि वे राष्ट्रवादी सोच के जनक भी थे। जब लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी 1930 को देश भर में तिरंगा फहराने का आह्वान किया गया तो हेडगेवार के निर्देश पर संघ के सभी शाखाओं में भी पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति का संकल्प लेते हुए 30 जनवरी को तिरंगा फहराया गया। हेडगेवार अपने जीवन में बाल गंगाधर तिलक और सुभाष चंद्र बोस के भी काफी करीबी रहे। महात्मा गांधी के साथ भी वो देश की राजनीति और भविष्य पर चर्चा किया करते थे। नेताजी के साथ तो उन्होंने संघ के साथ मिलकर नए भारत के निर्माण पर चर्चा भी की।

हेडगेवार अपने बड़े भाई से प्रेरणा लेते थे। उनके बड़े भाई हमेशा उन्हें अच्छा और बुरा बतलाते रहते थे। हेडगेवार के बड़े भाई महादेव शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता तो थे ही साथ ही साथ मल्लयुद्ध की कला से भी माहिर थे। हेडगेवार एक अच्छे वक्ता थे और यही कारण था कि धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्वयं संघ से लोग जुड़ने लगे थे। अंग्रेजों का सामना करने के लिए हेडगेवार ने प्राथमिक सैनिक शिक्षक की भी शुरुआत की थी।

संघ के स्थापना वर्ष 1925 से 1940 तक डॉ. हेडगेवार का जीवन विश्व के सबसे बड़े संगठन का आधार बनाने में अनवरत लगा रहा। यशस्वी संगठन का उपयोग डॉ. हेडगेवार ने कभी भी अपने प्रभाव के लिए नहीं किया। उन्होंने संघ को सदैव राष्ट्रहित के लिए तैयार किया। हेडगेवार एक दूरदृष्टा थे। उन्हें क्रांतिकारी, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में कार्य का अनुभव था।

अपने उन सब अनुभवों और भविष्य को ध्यान में रखकर ही डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को व्यक्ति केंद्रित संगठन बल्कि विचार केंद्रित संगठन का स्वरूप दिया। संघ आत्मनिर्भर बने, इसके संबंध में भी उन्होंने पर्याप्त प्रयास किए। डॉ॰ केशवराव बलिराम हेडगेवार का निधन 21 जून 1940 को हो गया। लेकिन उन्होंने जो वैचारिक सोच की नींव हमारे मध्य रखी, वह अभी भी हम सबको हमेशा जागृत करती रहती है।

 

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