जब डॉक्टर नरेश त्रेहान को गीता का संदेश समझाया था मेरे बाबूजी ने!
संघर्षमय जीवन ही रहा मेरे पिता स्वर्गीय मधुसूदन पाठक जी की कर्मठता और सहजता का आधार
मेरे परम् आदरणीय पिताजी स्वर्गीय मधुसूदन पाठक जी के पुण्यतिथि पर उनके सादर स्मृति को नमन करता मेरा आलेख
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
बात 2003 की है। नई दिल्ली का तत्कालीन एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल, वर्तमान का फोर्टिस हॉस्पिटल। हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर के सामने तकरीबन 18 हृदय रोगी हृदय के बाई पास सर्जरी होने के इंतजार में बैठे थे। अधिकांश मरीज बेहद दुखी थे, कुछ तो रो भी रहे थे। हृदय के शल्य क्रिया के संबंध में अनहोनी की आशंका से सभी दहशत में थे लेकिन एक मरीज बिल्कुल शांत भाव से वहां बैठे हुए थे।
हृदय की शल्य क्रिया के पूर्व विख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ, वर्तमान में गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल के निदेशक डॉक्टर नरेश त्रेहान राउंड पर आए। उस बिलकुल शांत भाव से बैठे मरीज के पास आए तो डॉक्टर त्रेहान ने मरीज से पूछा क्या आपको डर नहीं लगता? मरीज का जवाब था, जी बिलकुल नहीं। मरीज बोले, डॉक्टर साहब मैं तो गीता में विश्वास रखता हूं, जो होना हैं वहीं होगा। फिर तनाव कैसा? डॉक्टर त्रेहान भी इस जवाब को सुन बेहद आश्चर्यचकित हो गए। इस सकारात्मक तेवर का असर रहा कि मरीज शीघ्र स्वस्थ हो गए।
ये मरीज थे सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड के जामापुर के निवासी मेरे पिता स्वर्गीय इंजीनियर मधुसूदन पाठक जी। सकारात्मकता, कर्मठता, सरलता उनकी पहचान थी। शुरुआती जीवन की तंगहाली ने उनके व्यक्तित्व को संघर्ष के लायक बनाया। परिवार की बुनियाद को मजबूत कर समाज के प्रति योगदान को भी उन्होंने बेहद संजीदगी से निभाया। आज उनके पुण्यतिथि पर उन्हें शत् शत् नमन।
बचपन गुजरा बेहद तंगहाली में
मेरे दादा जी श्री रामजी पाठक जी वैसे तो जीरादेई के प्राथमिक स्कूल में कार्यरत रहे थे। खेत खलिहान भी थे। लेकिन दादा जी की समाजसेवा के प्रति विशेष लगाव और अतिशय उदारता परिवार के लिए आर्थिक चुनौती का सबब बन गई। बचपन में बाबूजी को गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ा, जिससे आगे भी उन्हें पढ़ाई के दौरान बाधा का सामना करना पड़ा। स्थिति यह रही कि हर परीक्षा के समय उन्हें बुखार की पीड़ा सताती थी। उनका पाचन तंत्र भी बेहद कंमजोर रहा। फिर भी पढ़ाई के प्रति उत्साह कम नहीं हुआ।
राजेंद्र बाबू के छात्रवृति से मिला सहारा
घर की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक थी। हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, जब भी अपने गांव जीरादेइ आते थे, तो गांव में बिना प्रशासनिक तामझाम के घूमना उनका प्रिय शगल था। मेरा गांव जामापुर जीरादेई से बिलकुल सटा हुआ है। इसी क्रम में एक दिन ग्राम भ्रमण के दौरान दरवाजे पर मेरे बाबूजी भुजा खाते राजेंद्र बाबू मिल गए। गौरतलब है कि राजेंद्र बाबू की मेरे दादाजी से बेहद घनिष्ठता थी। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने मेरे दादाजी से बातचीत के बाद कुछ बीजगणित के सवालों को बाबूजी से पूछ लिया। जिसका बिलकुल सही जवाब पाकर, वे प्रसन्न हुए और दिल्ली जाकर 15 रुपए की छात्रवृति स्वीकृत कर दी। उस समय यह राशि पर्याप्त थी। इस राशि से बाबूजी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और परिवार का सहयोग भी किया। डिप्लोमा करने के उपरांत बिहार सरकार के सिंचाई विभाग में कनीय अभियंता के रूप में नियुक्त हुए। जहां बाद में कार्यपालक अभियंता के पद से रिटायर हुए।
गांव के लोग श्रवण कुमार ही मानते थे
मेरे बाबूजी अपने पिता स्वर्गीय रामजी पाठक जी के प्रति विशेष स्नेह रखते थे। उनके माता पिता के प्रति अपार सेवा भावना के कारण गांव जामापुर के लोग, उन्हें श्रवण कुमार बोलते हैं। इंजीनियर होने के बावजूद बड़ी बेटी के शादी के अवसर पर जब दादा जी किसी बात पर सबके सामने बाबूजी को डांटने लगे तो उनके नयन से अश्रु धारा बह निकली लेकिन सर भी नहीं उठाया। आज के दौर में सम्मान की यह बानगी विरले ही दिख सकती हैं। हालांकि पिता पुत्र में असीम स्नेह था।
खुद से ज्यादा परिवार का रखा सदा ख्याल
मेरे बाबू जी का अपना जीवन बेहद साधारण था। अति साधारण वेशभूषा, उनकी पहचान थी। परंतु परिवार की विशाल जिम्मेदारियों के निर्वहन में ताजिंदगी लगे रहे। पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन की लगन में खुद का ख्याल कभी नहीं रखा। हर जिम्मेदारी को संजीदगी से निभाया, परिवारजन की हर ख्वाहिश का ख्याल रखा। परिवारजन की परवरिश में हर संभव योगदान दिया। उनके त्याग और परिश्रम का ही फल रहा कि उनके परिवारजन आज एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।
लोग आज भी उनके व्यवहार के माधुर्य को याद करते हैं
उनके मधुर व्यवहार के कायल जामापुर गांव और निकट के अन्य गांवों सिवान के अयोध्यापुरी मुहल्ले के गणमान्यजन, उनके विभाग के सहयोगी आज भी उनको याद कर भावविभोर हो उठते हैं। उनके अफसरान भी उनको बेहद पसंद करते थे। सिंचाई विभाग के पूर्व मुख्य अभियंतगण(चीफ इंजीनियर) स्वर्गीय पारसनाथ त्रिवेदी जी, स्वर्गीय एम एन तिवारी जी, श्री डी के पाण्डेय जी और सिवान के पूर्व जिलाधिकारी श्री रशीद अहमद खां जी, उनपर अपना विशेष स्नेह प्रदर्शित करते थे।
समाज के लिए सदा रहे आगे
जब भी किसी ने मदद मांगा। यथाशक्ति सहायता के लिए मेरे बाबूजी आगे रहे। सामाजिक कार्यों में सदा उनकी सक्रियता बनी रहीं। मंदिर निर्माण में सहयोग की बात हो या सड़क या पुलिया के निर्माण में सहयोग की बात, या हो स्कूल निर्माण या धर्मशाला के निर्माण की बात, हर जगह वे सहयोग में आगे रहे। किसी भी बीमार की मदद में वे सबसे आगे रहते थे। तत्कालीन परिस्थितियों में जब नौकरी दिलाना आसान था, उस समय उन्होंने सैकड़ों लोगों को नौकरी दिलाने में सहयोग कर, उन परिवारों के परवरिश में सहायता पहुंचाई।
जिंदगी भर चुनौतियों का सामना
बड़े परिवार के नेतृत्वकर्ता होने से सदा आर्थिक संकट बना ही रहा। बड़े भाई के तौर पर भाई बहनों के परवरिश, माता पिता की सेवा के साथ चार बेटियों और एक पुत्र का परवरिश, बेहद खर्चीला सफर रहा। लेकिन वे हर चुनौती को इतनी सहजता से स्वीकार करते थे, जिसे देखकर आश्चर्य होता था। यह अलग बात हैं कि मेरी माताजी स्वर्गीय प्रभावती देवी का समर्पित और संवेदनशील सहयोग, उनकी ऊर्जा का महत्वपूर्ण आधार था।
चिंता की घड़ी में उनकी मुस्कान का निराला अंदाज होता था
मेरे बाबूजी की जिंदगी में चुनौतियां अपार थी। पर उनकी सदाशयता, कर्तव्यनिष्ठा, कर्मठता की बानगी, उन्हें सदा ऊर्जावान बनाए रखती थी। किसी भी तरह की परेशानी हो, उनकी मधुर मुस्कान जीवन को नया संदेश देते दिखती थी। चार बेटियों और बहन की शादियों के दौरान, विभागीय कार्यकलाप के दौरान कई विकट परिस्थितियां आई लेकिन वे हमेशा संयत रहते थे। उनके संस्कारों का ही प्रतिफल है कि उनकी बेटियां गीता पांडेय, सुनीता पांडेय, अनीता पांडेय, गौरी पांडेय और बेटा गणेश दत्त पाठक भी जिंदगी में तमाम विकट परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना कर पाते हैं।
सुबह टहलने से कई व्याधियों का किया सफलतापूर्वक सामना
मेरे बाबूजी का प्रिय शगल मॉर्निंग वॉक हुआ करता था। प्रतिदिन 10 किलोमीटर टहलना उनकी नियमित दिनचर्या में शामिल था। इस टहलने के कारण ही वे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग आदि व्याधियों का सामना कर पाए। अयोध्यापुरी में बीएसएनएल के पूर्व इंजीनियर श्री विद्याभूषण शर्मा जी के साथ सुबह टहलने निकल जाना, शहर के लोग आज भी उन्हें राम लक्ष्मण की जोड़ी के तौर पर जानते हैं।
लकवाग्रस्त होने के बावजूद बीमार बेटे को देखने की चाहत उनकी जीवटता की परिचायक थी
बात 2015 की है। बाबूजी तकरीबन एक माह से बेड पर थे। वे पक्षाघात के शिकार यानी लकवाग्रस्त हो चुके थे। मां भी कमर की हड्डी टूटने के कारण बेड पर थी। अचानक एक दिन स्वस्थ माने जानेवाले उनके इकलौते पुत्र यानी मैं बेहोश हो गया। मुझे निकट में स्थित डॉक्टर अशोक वर्मा जी के क्लिनिक पर ले जाया गया। स्लाइन, मेडिसिन और पैथोलॉजी टेस्ट और सिटी स्कैन से ब्रेन ट्यूमर का अंदेशा मिल गया। दिनभर क्लिनिक पर भर्ती रहने से मेरे लकवाग्रस्त मेरे बाबूजी व्यग्र हो गए। घर पर उपस्थित लोगों से कहने लगे, मुझे बेटे को देखने जाना है। जबकि स्थिति ऐसी थी कि वे एक कदम भी चलने में असमर्थ थे। यह उनकी जीवटता का परिचायक था, जो ताजिंदगी उनकी पहचान रही।
विपदा में उनका ईश्वर पर भरोसा सबको देता था दिलासा
24 फरवरी, 2015 को जब बैंगलोर के निम्हांस अस्पताल में मेरा ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन चल रहा था। लगातार 9 घंटे का ऑपरेशन चला था। उस दिन बाबूजी और मां दोनों ही बेड पर थे। इकलौते बेटे के कुशल छेम को लेकर व्यग्रता चरम पर थी । सभी की हालत खराब थी। लेकिन उस समय, जब उनको दिखाई देना भी बंद हो चुका था तो बार बार सबसे जानकारी ले रहे थे और कह रहे थे कि ईश्वर सब ठीक करेंगे। ईश्वर में उस विपदा की घड़ी में इतना अटूट विश्वास श्री हरि की अहैतुक कृपा से ही संभव था। उनका यह दिलाशा सभी के लिए संजीवनी बूटी था।
आंखों से दिखाई नहीं दिया लेकिन आवाज से व्यथा भांप गए
मधुमेह की बीमारी से ग्रसित होने के कारण कालांतर में उन्हें दिखाई देना भी बंद हो गया था। बेंगलुरु से ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन से आने तक वे पूर्ण अंधत्व के शिकार हो चुके थे। अपने इकलौते बेटे को देख तो नहीं पा रहे थे लेकिन आवाज को सुन व्यथा भांप रहे थे। ऑपरेशन के साइड इफेक्ट के कारण मेरे मुख में पाल्सी का असर हो गया था, जिसके कारण आवाज सही से निकल नही पा रही थी। बाबूजी बरबस पूछ ही लेते थे ‘बाबू का आवाज तो पहचान ही नहीं आ रहा हैं। ज्यादा बड़ा ऑपरेशन हुआ हैं क्या? इसका चेहरा तो ठीक हैं न।’
मेरे बाबूजी के व्यक्तित्व की सरलता, उदारता, संवेदनशीलता की याद आज भी हमें ऊर्जस्वित करती है। उनके जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण हमें आशान्वित करता है। उनका त्याग और समर्पण हमें प्रेरित करता है। उनका संघर्षमय कलेवर हमें उत्साहित करता है। उनके व्यक्तित्व का माधुर्य हमें गौरव का अहसास दिलाता है।
बाबूजी आज आप इस दुनिया में नहीं है लेकिन आपकी यादेंजेडीयू नेता गणेश हत्याकांड में कोर्ट ने सुनाया अपना फैसला, तत्कालीन थानेदार और एक दारोगा को उम्रकैद की सजा हमारा मार्गदर्शन उसी गंभीरता से कर रही हैं जिस संजीदगी और जीवटता से आपने जिंदगी को जिया।
आपके पुण्यतिथि पर आपको अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और सादर नमन???????
आपका बेटा………….
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