डांडिया रास से रौशन हो रही थी सीवान में संस्कृति की वह सांझ!

डांडिया रास से रौशन हो रही थी सीवान में संस्कृति की वह सांझ!

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

 कला से जुड़े संगठनों आराध्या चित्रकला और अन्य द्वारा आयोजित डांडिया रास शहर का बना सांस्कृतिक धरोहर

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान का भगवान पैलेस। शनिवार की सांझ। नवरात्रि का त्योहार। डांडिया रास का आयोजन। वह सांझ संस्कृति की थी। वह सांझ आस्था की थी। वह सांझ उत्सव की थी। वह सांझ उमंग की थी। रंग बिरंगे परिधानों में सजी नारी शक्ति के हाथ में जब डांडिया खनक रहे थे तो लग रहा था जैसे नवरात्रि का त्योहार आस्था से सुशोभित हो रहा हो।

नवरात्रि के त्योहार की महिमा तो यही होती है कि अस्तित्व में सिर्फ मां आदिशक्ति ही होती है। उनकी आराधना से हर पल सुवासित हो उठता है। पूजन, अर्चन, उपवास, से मन कहां भरता है? तो नृत्य आराधना यानी डांडिया रास भी होने लगता है। प्रयास कई होते हैं परंतु लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ मां जगत जननी जगदम्बे की प्रसन्नता ही होती है।

सीवान के निजी मैरिज हॉल में शनिवार की संध्या में कुछ कला जगत से जुड़े संगठनों आराध्या चित्रकला और अन्य द्वारा आयोजित डांडिया रास सीवान के सांस्कृतिक इतिहास का एक अविस्मरणीय आयोजन बन गया। ऐसे लग रहा था जैसे सीवान में गुजरात थिरक रहा हो। सांस्कृतिक समावेशन का ऐसा दृश्य उत्पन्न हो रहा था जिसमें एक भारत, श्रेष्ठ भारत की संकल्पना अंगीकार हो रही थी। नवरात्रि के उत्सव का उमंग अपनी दिव्य आभा से आस्था की प्रबल लहर को बहा रहा था।

एक परिपाटी सी चल पड़ी है कि हर सांस्कृतिक आयोजन के नुस्खे निकाले जाने लगते हैं। लेकिन मन का भाव पवित्र हो तो हर सांस्कृतिक उत्सव आपको आनंद के सागर में गोते लगाने को विवश कर देगा। रंग बिरंगे परिधान में सजी धजी युवतियां जब नृत्य आराधना कर रही थीं तो मन उस आदिशक्ति से एकाकार हो जा रहा था। जिसकी तलाश शायद हर आस्थावान को होती है।

सांस्कृतिक सुख तो सिर्फ सरलता और सहजता के वश की ही बात होती है। अपने मन को पवित्र रखिए अपनी सोच को पवित्र रखिए फिर देखिए सांस्कृतिक आयोजन आपको कितना सुख पहुंचा जाते हैं? और जब बेटी और बहन थिरक थिरक कर मां आदिशक्ति की आराधना करती हैं तो बस मन तो यहीं प्रार्थना करता है कि हे मां! इन्हें इतनी ऊर्जा दो कि उमंग खिलखिला उठे और आस्था निहाल हो उठे।

डांडिया रास का आयोजन शानदार था। दीप प्रज्वलन हुआ, अतिथियों का सम्मान हुआ, प्रायोजकों का भी सम्मान हुआ। गीत संगीत की अविरल सरिता तो प्रवाहित हो ही रही थी। डांडिया रास में जुटी युवतियां मातृ शक्ति की दिव्य और आस्थमयी आभा से सुसज्जित दिख रही थीं। मंच पर मौजूद जिले के प्रबुद्घगण डांडिया के आध्यात्मिक, आस्थमय पहलुओं पर मीडिया के सारगर्भित सवालों का जवाब देते देते बीच में स्वयं भी चर्चा कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी कर ले रहे थे।

हर चर्चा में संस्कृति थी, हर दृश्य सांस्कृतिक था, हर व्यक्तित्व सांस्कृतिक आभा से लैस था। वहां सिर्फ और सिर्फ फिज़ा में संस्कृति ही थी। नवरात्रि के पावन पर्व के शुभ अवसर पर आस्था के किरण से संस्कृति रोशन ही नहीं हो रही थी अपितु उसकी दिव्य आभा भी प्रस्फुटित होकर सनातनी संदेश दे रही थी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!