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संकल्प से भटकाते हैं विकल्प,कैसे ? - श्रीनारद मीडिया

संकल्प से भटकाते हैं विकल्प,कैसे ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जीवन के पथ पर हम एक संकल्प लेकर उतरते हैं किन्तु राह में मिलने वाले विकल्प हमें भटका देते हैं। परिणामत: हम संकल्प भुलाकर विकल्पों के पीछे दौड़ लगाने लगते हैं। यह विकल्प शॉर्टकट की तरह होते हैं जो राह को तो आसान बनाते हैं किन्तु सफलता के तट से हमें दूर पहुंचा देते हैं। हमारा यही भटकाव हमारे पतन का इतिहास बन जाता है।

किसी भी महापुरुष की जीवनी के पन्नों का अवलोकन करके देखिए आप यही पाएंगे कि उन्होंने विकल्पों के शॉर्टकट का कभी सहारा नहीं लिया अपितु दृढ़ निश्चय के साथ अपने संकल्प को कभी भुलाया ही नहीं। संघर्षों से विमुख होकर उन्होंने कभी आसान राहों को नहीं अपनाया।

याद कीजिए मां के गर्भ में ही चक्रव्यूह में घुसने की कला में पारंगत अभिमन्यु एक संकल्प के साथ चक्रव्यूह में प्रविष्ट हुए और अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया। शरीर पर घावों का सैलाब थपेड़े की तरह आहत करता रहा मगर उस वीर ने किसी शॉर्टकट को नहीं स्वीकारा और अंततः शहीद हो गया। इसी संकल्प ने वीर अभिमन्यु को इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया।

भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण का अवतार भी एक संकल्प के साथ धरा पर हुआ था। संकल्प की प्राप्ति तक उन्होंने कोई अन्य विकल्प नहीं तलाशा। राक्षस संस्कृति से आक्रांत होकर धरा कराह उठी तो भगवान श्रीराम ने राक्षस संस्कृति के विनाश का संकल्प लेकर अवतार लिया और जब तक उन्होंने धरा को राक्षस मुक्त न किया तब तक उन्होंने अपना ध्यान कहीं भी अन्यत्र केन्द्रित न किया। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए श्रीराम ने 14 वर्ष के वनवास में पीड़ा को भी सहा।

द्वापर युग में कंस के क्रियाकलापों से धरती कराह उठी तो उसके विनाश के संकल्प के साथ मुरलीधर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया और कंस के अंत तक उसकी हर आसुरी शक्ति से संघर्ष किया। बाल्यकाल में ही उन्होंने पूतना जैसी राक्षसी का संहार किया। जरासंध जैसे मायावी का अंत किया। कंस के कारागार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने हर बाधा का समाधान किया और अंततः अपना संकल्प प्राप्त किया। श्रीकृष्ण न विकल्पों को अपने संकल्प के लिए हथियार बना लिया।

श्रीराम और श्रीकृष्ण का समस्त जीवन साक्षी है कि परिस्थितियों की पगडंडियां भले ही कितनी ही कंटकमय हों मगर उस राजपथ का चयन हमें कदापि नहीं करना चाहिए जिसका अंतिम सिरा हमें पतन के मुहाने तक पहुंचाता हो क्योंकि जिंदगी में विकल्प से नहीं, संकल्प से सफलता पाई जाती है!

विकल्पों को अनदेखा कर उन्होंने सदैव अपने संकल्प को सामने रखा और उसकी पूर्ति के लिए हर संघर्ष को सहा मगर अविचलित रहकर अपने ध्येय की पूर्ति की।

शिव के रुद्रावतार पवनपुत्र हनुमान जी के जीवन का एक ही संकल्प था, भगवान श्री राम की सेवा जिसके लिए हनुमान जी ने स्वयं को सदैव समर्पित रखा। माता सीता की खोज के संकल्प के साथ निकले हनुमान जी ने हर बाधा को पार कर सीताजी की खोज की और रावण के सुत अक्षय कुमार का वध किया और सोने की लंका को ही जला दिया।

छल से अहिरावण भगवान श्रीराम का हरण कर ले गया तो उन्होंने अपने हाथों से अहिरावण का वध किया। मेघनाद शक्ति से आहत सुमित्रानंदन लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा हेतु वह सूर्योदय से पूर्व ही संजीवनी लाने के संकल्प के साथ गए तो समय पर संजीवनी लेकर वापस आए। यह सब उनके संकल्प की परिणति है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि जीवन में संकल्प का स्थान महत्वपूर्ण है, विकल्प हमें भटकाते हैं और संकल्प हमें सफलता के द्वार पर पहुंचाते हैं तो अपने जीवन में भी संकल्प की स्थापना कीजिए|

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