सुप्रीम कोर्ट से उद्धव कैंप को झटका,शिंदे गुट ही ‘शिवसेना.

सुप्रीम कोर्ट से उद्धव कैंप को झटका,शिंदे गुट ही ‘शिवसेना.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। साथ ही कोर्ट ने नोटिस जारी कर 2 हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फिलहाल एकनाथ शिंदे गुट को राहत मिली है। दरअसल, उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां पर 2 हफ्ते के लिए सुनवाई टल गई है। कोर्ट ने दोनों गुटों (शिंदे गुट और चुनाव आयोग) से जवाब मांगा है।

‘EC के फैसले पर रोक नहीं’

कोर्ट ने कहा कि हम इस समय फैसले पर रोक नहीं लगा सकते हैं। आपको बता दें कि शिवसेना विवाद को लेकर चुनाव आयोग से एकनाथ शिंदे को राहत मिली थी। आयोग ने अपने फैसले में एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना नाम और धनुष-तीर चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी।

उद्धव के पास मशाल चुनाव चिह्न

उद्धव ठाकरे को कोर्ट से राहत तो नहीं मिली, लेकिन उनके पास फिलहाल ‘मशाल’ चुनाव चिह्न है। चुनाव आयोग ने अपने फैसले में शिंदे गुट को ‘शिवसेना’ नाम आवंटित करने का फैसला दिया था, जबकि उद्धव ठाकरे को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम बरकरार रखने का आदेश दिया था।

उल्लेखनीय है कि उद्धव ठाकरे ने कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में कहा था कि चुनाव आयोग यह मानने में विफल रहा कि उनके गुट के पास विधान परिषद और राज्यसभा में बहुमत है। उद्धव ठाकरे के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से बुधवार को मामले की सुनवाई का अनुरोध किया था।

चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी है। जिसे लेकर महाराष्ट्र से दिल्ली तक सियासत गर्म है। चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना की मान्यता और चुनाव चिह्न ‘धनुष और तीर’ आवंटित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर चुनाव आयोग ने यह फैसला कैसे किया कि असली शिवसेना कौन है।

बहुमत परीक्षण के आधार पर दिया फैसला

शिंदे गुट बनाम उद्धव गुट की लड़ाई में चुनाव आयोग का आदेश केवल बहुमत के परीक्षण पर निर्भर था। यानी चुनाव आयोग ने यह आकलन किया कि शिवसेना के नाम के साथ ही ‘धनुष और तीर’ के प्रतीक का दावा करने के लिए किस गुट के पास अधिक सांसद और विधायक हैं। इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट विजयी हुआ।

सादिक अली मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला

चुनाव आयोग ने अपने आदेश में 1969 में इंदिरा गांधी के कांग्रेस में विभाजन के बाद सादिक अली मामले का हवाला दिया। कांग्रेस (ओ) बनाम कांग्रेस (जे) की लड़ाई तय करने के लिए चुनाव आयोग ने अंततः ‘बहुमत परीक्षण’ का इस्तेमाल किया था। यह सिद्धांत 1968 के सिंबल ऑर्डर में पेश किया गया था। इस मामले को ‘सादिक अली मामले’ के नाम से जाना जाता है और सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद कोर्ट ने 1971 में चुनाव आयोग के फैसले को बरकरार रखा था।

अन्य परीक्षणों को चुनाव आयोग ने इसलिए किया खारिज

वैसे यह फैसला करने के अन्य मानदंड भी हैं, जैसे ‘पार्टी संविधान का परीक्षण’ और ‘उद्देश्यों और लक्ष्यों का परीक्षण’ शामिल हैं। हालांकि, शिंदे बनाम उद्धव मामले में लगभग पांच दशक पहले कांग्रेस के विभाजन के मामले की तरह चुनाव आयोग ने अन्य दो को खारिज कर दिया। दोनों पक्षों ने लक्ष्य और उद्देश्यों के पालन का दावा किया। इसलिए, चुनाव आयोग ने पाया कि वह इस मानदंड पर भरोसा नहीं कर सकता।

चुनाव आयोग ने अपने आदेश में क्या कहा

शिवसेना के संविधान में 2018 के एक संशोधन ने पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को पदाधिकारियों को नियुक्त करने और बदलने की शक्ति दी। मगर, चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा कि संशोधन से संबंधित दस्तावेज पार्टी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया था। लिहाजा, इसने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन किया था।

कुल पदाधिकारियों में से कितने किस गुट के पक्ष में?

दूसरी बात यह है कि यदि ‘संविधान की कसौटी’ के मानदंड को लागू किया जाता, तो चुनाव आयोग को यह देखना होता कि कुल पदाधिकारियों में से कितने किस गुट के पक्ष में हैं। मगर, तब इसे चुनौती मिलने की सबसे अधिक संभावना होती। दरअसल, यह एक ऐसी स्थिति में बदल गई होगी जिसमें पार्टी के भीतर पूरे पदाधिकारी ठाकरे द्वारा नियुक्त किए गए लोग होंगे। लिहाजा, चुनाव आयोग ने इसे भी फैसला लेने में शामिल नहीं किया।

Leave a Reply

error: Content is protected !!