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भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला...क्यों? - श्रीनारद मीडिया

भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला…क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जब जीरो दिया था भारत ने दुनिया को तब गिनती आई, तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सिखलाई। देता न दशमलव भारत तो चांद पर जाना मुश्किल था। धरती और चांद की दूरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था। 70 के दशक में फिल्म आई थी पूरब और पश्चिम भारत कुमार यानी मनोज कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने गाने के बोल के जरिए ये बताने की कोशिश की कि अपना भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला और आगे बढ़ा।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ के बीच अंतरिक्ष की दौड़ मानव जाति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बिंदु रही। इस महाशक्ति की दौड़ ने शीत युद्ध की प्रतिद्वंद्विता को और बढ़ा दिया। मानव जाति पहली बार अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करना चाह रही थी। अंतरिक्ष पर प्रभुत्व और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर दोनों के लिए गर्व का विषय बन गई।

अंतरिक्ष को जीतने की प्रतिस्पर्धा इतनी बड़ी थी कि 1950 और 1960 के दशक में लगभग हर साल दो महाशक्तियों में से एक द्वारा एक नया मानदंड स्थापित किया गया था। अब आप सोच रहे होंगे की जब कोल्ड वॉर के दौरान अंतरिक्ष में जाने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी तो उस वक्त हमारा भारत क्या कर रहा था? जुलाई 1969 में अमेरिका के अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद पर कदम रखा था तो इसी साल भारत ने अंतरिक्ष की खोज के लिए अपना कदम बढ़ाया था। 15 अगस्त 1969 को भारत की आजादी के 22 साल पूरे हुए थे और इसी दिन विक्रम साराभाई ने इसरो की स्थापना की थी।

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई ने एक ऐसी टीम तैयार की कि एक के बाद एक अनेक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को दूरदर्शी नेतृत्व प्रदान करते आ रहे हैं। प्रोफेसर सतीश धवन, प्रोफेसर यू आर राव, प्रोफेसर कस्तूरीरंगन और माधवन नैयर से लेकर अब एस सोमनाथ तक इसरो का लंबा समृद्ध इतिहास है। हमारा सफर आर्यभट्ट से शुरू हुआ था। अब हम चंद्रयान-3 तक पहुंच गए हैं।

देश स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष अन्वेषण में एक उभरती हुई शक्ति है और इसके भविष्य के मिशन निश्चित रूप से और भी अधिक महत्वाकांक्षी होंगे। इन मिशनों के अलावा, भारत कई अन्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का भी विकास कर रहा है, जैसे पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान और उपग्रह नेविगेशन सिस्टम। देश संयुक्त मिशनों पर अन्य अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों के साथ सहयोग करने के लिए भी काम कर रहा है।

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम देश के लिए गर्व का एक प्रमुख स्रोत है, और इसे इसकी बढ़ती तकनीकी शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस कार्यक्रम को भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार और इसके वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में भी देखा जाता है।

भारत के ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन

आर्यभट्ट

अंतरिक्ष अनुसंधान तथा उपग्रह तकनीक के क्षेत्र में भारत का प्रवेश 19 अप्रैल 1975 को आर्यभट्ट नामक उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के साथ हुआ था। भारत का पहला उपग्रह, 1975 में लॉन्च किया गया था। यह 358 किलोग्राम (787 पाउंड) का उपग्रह था जो पृथ्वी के वायुमंडल और विकिरण बेल्ट का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक उपकरण ले गया था।

इस उपग्रह का नाम महान खगोल विद और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर इंदिरा गांधी ने रखा था। इस उपग्रह का अंतरिक्ष में सफल प्रक्षेपण सोवियत रूस की सहायता से किया गया था। आर्यभट्ट प्रथम के माध्यम से खगोल विज्ञान एक्स रे और सौर भौति की बहुत जानकारी हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। आर्यभट्ट उपग्रह के लॉन्च होने के इस ऐतिहासिक अवसर पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1976 में 2 रुपए के नोट पर इसकी तस्वीर छापी थी।

इंस्टा

1983 से भारत द्वारा प्रक्षेपित भूस्थैतिक उपग्रहों की एक श्रृंखला। इंस्टा उपग्रहों का उपयोग दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और आपदा प्रबंधन के लिए किया जाता है। इसे अमेरिकी कंपनी फोर्ड एयरोस्पेस ने बनाया था। इसका प्रक्षेपण द्रव्यमान 1152 किलोग्राम था और इसमें बारह ‘सी’ और तीन ‘एस’ बैंड ट्रांसपोंडर थे।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी)

1990 के दशक में भारत द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण यान। पीएसएलवी उपग्रहों को निचली पृथ्वी कक्षा, जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर कक्षा और कम पृथ्वी ध्रुवीय कक्षा में लॉन्च करने में सक्षम है।

जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी)

2000 के दशक में भारत द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण यान। जीएसएलवी उपग्रहों को भूतुल्यकाली कक्षा में प्रक्षेपित करने में सक्षम है।

चंद्रयान-1

भारत का चंद्रमा पर पहला मिशन, 2008 में लॉन्च किया गया। चंद्रयान-1 ने 10 महीने तक चंद्रमा की परिक्रमा की और पानी की बर्फ की उपस्थिति सहित चंद्रमा की सतह के बारे में महत्वपूर्ण खोजें कीं। इस अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 वैज्ञानिक उपकरणों को भी लगाया गया था। इस अंतरिक्ष यान का वजन 1380 किलोग्राम था। आज चांद पर पानी की संभावना खोजने का श्रेय भारत को देते हुए चंद्रयान 1 को याद किया जाता है। 14 नवंबर 2008 को चंद्रयान 1 ने मून इंपैक्ट क्राफ्ट नाम का 29 किलोग्राम का एक भारी उपकरण चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव पर गिराया। इस उपकरण ने गिरते समय चंद्रमा के परी सतह के अनेक चित्र लिए।

मंगलयान

भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन, 2013 में लॉन्च किया गया। मंगलयान ने सितंबर 2014 में मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया और अभी भी चालू है। यह अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला पहला और एकमात्र अंतरिक्ष यान है। इसरो ने इस मानवरहित सैटेलाइट को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया। इसकी कल्पना, डिजाइन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने किया और इसे भारत की धरती से भारतीय रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया। भारत के पहले मंगल अभियान पर 450 करोड़ का खर्च आया और इसके विकास पर 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया था।

चंद्रयान-2

चंद्रमा पर भारत का दूसरा मिशन, 2019 में लॉन्च किया गया। चंद्रयान -2 को चंद्रमा पर एक रोवर उतारना था, लेकिन लैंडर विक्रम का अंतिम वंश के दौरान जमीनी नियंत्रण से संपर्क टूट गया। ऑर्बिटर अभी भी चालू है और चंद्रमा के बारे में बहुमूल्य डेटा प्रदान कर रहा है। इस ऑर्बिटर का चंद्रयान 3 से भी संपर्क हुआ है। विक्रम लैंडर के संपर्क टूटने के बाद ये आम धारणा बनी की भारत का मिशन चंद्रयान 2 विफल हो गया, पर ये सच नहीं है। इसरो के एक अधिकारी बातते हैं कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिशन का पांच प्रतिशत हिस्सा थे। 95 प्रतिशत हिस्सा ऑर्बिटर का है, जो सुरक्षित चक्कर लगा रहा है। इससे जो जानकारियां मिली वो चंद्रायन 3 के काम आ रही हैं।

चंद्रयान-3

भारत का तीसरा चंद्र मिशन, 2022 में लॉन्च किया गया। इसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल है। चंद्रयान-3 का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर और रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना है। चंद्रयान 3 तीन लाख किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करते हुए चांद के करीब पहुंचा है। चंद्रयान 3 मिशन में लैंडर, रोवर और प्रॉपल्शन मॉड्यूल शामिल है। भारत के इस महत्वकांक्षी मिशन में केवल 615 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। चंद्रयान 3 का मकसद चांद के दक्षिणि ध्रुव पर ऑक्सीजन और पानी की खोज करना है।

ये भारत द्वारा किए गए कई ऐतिहासिक अंतरिक्ष अभियानों में से कुछ हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विश्व में अग्रणी है और जो संभव है उसकी सीमाओं को लगातार आगे बढ़ा रहा है। आने वाले वर्षों में इसरो द्वारा कई और महत्वाकांक्षी मिशन शुरू करने की उम्मीद है, जिसमें चंद्रमा पर मानवयुक्त मिशन भी शामिल है।

चांद को खंगालने की कोशिश में लगे ये देश

दुनिया के 10 देश अभी चांद पर जाने के लिए प्रायासरत हैं।

सोवियत संघ सफल अभियान चला चुका है, लेकिन अब उसकी जगह रूस है।

यूरोप के सभी देश मिलकर अभियान चला रहे हैं। इटली ने अलग से प्रयास किया है।

चीन अब तक कुल आठ चंद्रयान अभियान चला चुका है या चला रहा है।

जापान छह चंद्र अभियान चला चपुका है, उसके तीन अभियान सफल रहे हैं।

अलग अभियान वाले 5 देश एशिया के हैं- भारत, चीन, जापान, इजरायल, यूएई।

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