Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
भारत में कपास उत्पादन में गिरावट के क्या कारण है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में कपास उत्पादन में गिरावट के क्या कारण है?

भारत में कपास उत्पादन में गिरावट के क्या कारण है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कपास एक बहुउद्देश्यीय फसल है जिसका उपयोग भोजन, चारा और फाइबर प्रदान करने के अतिरिक्त वस्त्र बनाने, खाद्य तेल आदि के लिये किया जा सकता है। यह भारत के लाखों किसानों के लिये आय और रोज़गार का एक प्रमुख स्रोत भी है।

  • हालाँकि हालिया वर्षों में कपास उत्पादन व पैदावार में काफी गिरावट आई है, जिससे देश के कृषि तथा वस्त्र उद्योग के लिये चुनौती उत्पन्न हो गई है।

भारत के लिये कपास का महत्त्व:

  • परिचय:
    • कपास भारत में खेती की जाने वाली सबसे प्रमुख व्यावसायिक फसलों में से एक है और यह कुल वैश्विक कपास उत्पादन का लगभग 25% है।
      • भारत में इसके आर्थिक महत्त्व को देखते हुए इसे “व्हाइट-गोल्ड” भी कहा जाता है।
    • भारत में लगभग 67% कपास वर्षा आधारित क्षेत्रों में और 33% सिंचित क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • खेती के लिये आवश्यक स्थितियाँ: 
    • कपास की खेती के लिये पालामुक्त दीर्घ अवधि और ऊष्म व धूप वाली जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्म तथा आर्द्र जलवायवीय परिस्थितियों में इसकी उत्पादकता सबसे अधिक होती है।
    • कपास की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है, जिसमें उत्तरी क्षेत्रों में अच्छी जल निकासी वाली गहरी जलोढ़ मृदा, मध्य क्षेत्र की काली मृदा तथा दक्षिणी क्षेत्र की मिश्रित काली व लाल मृदा शामिल है।
      • कपास में लवणता के प्रति कुछ सहनशीलता होती है, किंतु यह जलभराव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है, यह कपास की खेती में अच्छी जल निकासी वाली मृदा के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • खेती की जाने वाली कपास की प्रजातियाँ: 
    • भारत में कपास की सभी चार प्रजातियाँ; गॉसिपियम अर्बोरियम और हर्बेशियम (एशियाई कपास), जी.बारबाडेंस (मिस्र कपास) तथा जी. हिर्सुटम (अमेरिकी अपलैंड कपास) उगाई जाती हैं।
    • कपास का अधिकांश उत्पादन दस प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में किया जाता है, जिन्हें निम्नानुसार तीन विविध कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
      • उत्तरी क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा और राजस्थान
      • मध्य क्षेत्र: गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश
      • दक्षिणी क्षेत्र: तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु
  • कपास उत्पादन का महत्त्व: 
    • कपास, जिसकी तुलना अक्सर नारियल से की जाती है, तीन महत्त्वपूर्ण घटकों के स्रोत के रूप में कार्य करता है:
      • फाइबरसफेद रोएँदार फाइबर अथवा लिंट, यह लगभग बिना बुने हुए कच्चे कपास का 36% होता है और वस्त्र उद्योग के लिये प्राथमिक स्रोत है। शेष बीज (62%) और अपशिष्ट (2%) होता है जो ओटाई (Ginning) के दौरान लिंट से अलग हो जाता है।
        • भारत के कुल कपड़ा फाइबर खपत में कपास की हिस्सेदारी दो-तिहाई है।
      • खाद्य पदार्थ: कपास के बीज में 13% तेल होता है, जिसका उपयोग आमतौर पर खाना पकाने और तलने के लिये किया जाता है।
        • सोयाबीन के बाद कॉटनसीड केक (कपास के बीज से बना खाद्य पदार्थ)/भोजन भारत का दूसरा सबसे बड़ा चारा है।
      • चारा: बचा हुआ बिनौला खली, जिसमें 85% बीज होता है, पशुधन व मुर्गीपालन के लिये एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रोटीनयुक्त चारा सामग्री है।
        • सरसों और सोयाबीन के बाद बिनौला तेल देश का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू स्तर पर उत्पादित वनस्पति तेल है।

भारत में कपास उत्पादन में त्वरित वृद्धि और गिरावट का कारण:

  • वृद्धि: 
    • भारत में वर्ष 2000-01 और 2013-14 के बीच कपास उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिसका मुख्य श्रेय BT (बैसिलस थुरिंजिएन्सिस) तकनीक को जाता है। इन प्रमुख विकासों में शामिल हैं:
      • BT जीन वाले आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास हाइब्रिड को अपनाया जाना, जिसे अमेरिकी बॉलवर्म कीट से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
      • इससे लिंट की पैदावार वर्ष 2000-01 में 278 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 566 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई।
        • कपास के बीज से प्राप्त तेल और खली के उत्पादन में भी इसी प्रकार की वृद्धि हुई।
      • हालाँकि BT प्रौद्योगिकी के उपयोग से प्राप्त लाभ अल्पकालिक थे और वर्ष 2013-14 के बाद कपास उत्पादन एवं पैदावार में गिरावट आनी शुरू हो गई।

  • गिरावट: 
    • पिंक बॉलवर्म (पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला) कपास उत्पादन में आई गिरावट के लिये ज़िम्मेदार प्राथमिक कारक था।
      • पिंक बॉलवॉर्म का लार्वा कपास के बीजकोषों (Cotton Bolls) पर आक्रमण से कपास के पौधे कम कपास का उत्पादन करते हैं और उत्पादित कपास कम गुणवत्ता भी निम्न होती है।
    • पॉलीफैगस अमेरिकन बॉलवॉर्म के विपरीत पिंक बॉलवॉर्म मुख्य रूप से कपास का सेवन करता है। जिसने बीटी प्रोटीन के खिलाफ प्रतिरोध के विकास में योगदान दिया है।
    • BT हाइब्रिड की निरंतर खेती से पिंक बॉलवॉर्म की आबादी में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई, इसने अतिसंवेदनशील पॉलीफैगस अमेरिकन बॉलवॉर्म का स्थान ले लिया।
    • वर्ष 2014 में पाया गया कि गुजरात में रोपण के 60-70 दिन बाद कपास के फूलों पर पिंक बॉलवॉर्म लार्वा अधिक अवधि तक जीवित रहने लगे थे। वर्ष 2015 में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी पिंक बॉलवॉर्म संक्रमण की सूचना मिली।
      • वर्ष 2021 में पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में भी पहली बार इस कीट का अत्यधिक संक्रमण देखा गया।

नोट: मोनोफैगस/एकभक्षी से आशय एक ऐसे जीव से है जो मुख्य रूप से एक ही विशिष्ट प्रकार के भोजन अथवा होस्ट पर निर्भर करता है।

PBW कीट के प्रबंधन के लिये अपनाई गई वर्तमान विधियाँ: 

  • पारंपरिक कीटनाशकों ने PBW लार्वा को नियंत्रित करने में काफी सीमा तक सफलता हासिल की। इसके बजाय वर्तमान में “मेटिंग डिसरप्शन” नामक एक अलग विधि का उपयोग किया जाता है।
    • इसमें गॉसीप्लर (एक फेरोमोन सिग्नलिंग रसायन जो नर वयस्कों को आकर्षित करने के लिये मादा PBW पतंगों द्वारा स्रावित होता है) का उपयोग किया जाता है। इसमें फेरोमोन को कृत्रिम रूप से संश्लेषित किया जाता है।
    • यह विधि नर पतंगों को मादाओं की खोज करने और संभोग में संलग्न होने से रोकती है, जिससे उनके प्रजनन चक्र में व्यवधान उत्पन्न होता है।
  • संभोग व्यवधानों/मेटिंग डिसरप्शन के लिये दो अनुमोदित उत्पाद इस प्रकार हैं:
    • PBKnot, जो संक्रमण को कम करने और पैदावार बढ़ाने के लिये कपास के पौधों पर इन रसायनों वाले रस्सियों का उपयोग करता है।
    • SPLAT-PBW एक अनोखा तरल पदार्थ, PBW को सिंथेटिक यौगिकों के साथ मिलने से रोकता है।

भारत में कपास क्षेत्र से जुड़े अन्य मुद्दे:

  • उपज में उतार-चढ़ाव: विभिन्न कारकों के कारण भारत में कपास का अप्रत्याशित उत्पादन हो सकता है।
    • सिंचाई प्रणालियों तक सीमित पहुँच, मृदा की उर्वरता में गिरावट व सूखे अथवा अत्यधिक वर्षा सहित अनियमित मौसम पैटर्न, कपास की पैदावार को लेकर अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं।
  • लघु किसानों की अधिकता: भारत में अधिकांश कपास की खेती छोटे स्तर के किसानों द्वारा की जाती है।
    • ये किसान अक्सर ही पारंपरिक कृषि पद्धतियों पर निर्भर होते हैं और आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों तक उनकी सीमित पहुँच होती है जो कपास के वृहत उत्पादन को प्रभावित करती है।
  • बाज़ार तक सीमित पहुँच: भारत में बड़ी संख्या में कपास उत्पादकों को बाज़ार तक पहुँचने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है और अंततः वे मध्यस्थों को कम दरों पर अपनी फसल बेचने के लिये मजबूर होते हैं।

आगे की राह 

  • एकीकृत कीट प्रबंधन: एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) रणनीतियों का समर्थन करने की आवश्यकता है जिसके तहत कीटों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करते हुए कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करने के लिये प्राकृतिक नियंत्रण, जाल फसलों (ऐसी फसलें जो विशेष रूप से कीटों को फँसाने के लिये लगाई जाती हैके अलावा लाभकारी कीटों का संरक्षण किया जाता है।
  • समुदाय-आधारित बीज बैंक: पारंपरिक कपास बीज की किस्मों को संरक्षित और साझा करने, आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने तथा अधिक उपज देने वाली किस्मों को बढ़ावा देने के लिये सामुदायिक स्तर पर बीज बैंकों की स्थापना करना।
  • मार्केट लिंकेज प्लेटफॉर्म: डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थापित करना जो कपास किसानों को खरीदारों और कपड़ा निर्माताओं से सीधे जोड़ता है, मध्यस्थ की भागीदारी को कम करता है तथा उचित मूल्य सुनिश्चित करता है।
  • स्थानीय प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्य संवर्द्धन: स्थानीय कपास प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करके मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देना, जो कपास फाइबर से बिनौले निकालना/रुई ओटना, रेशों को साफ और संसाधित कर सकती हैं, रोज़गार के अवसर सृजित कर सकती हैं तथा कपास आपूर्ति शृंखला को बढ़ावा देती हैं।
  • यह भी पढ़े…………….
  • लघु उद्योग को बढ़ाबा दे रही सरकार – सिडबी
  • भाजपा किसान मोर्चा ने अमृत कलश में गांवो से किया मिट्टी संग्रह
  • प्रत्येक वर्ष15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!