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पूरी सृष्टि सीय राममय चेतना से आप्लावित है-डॉ.सीताराम झा। - श्रीनारद मीडिया

पूरी सृष्टि सीय राममय चेतना से आप्लावित है-डॉ.सीताराम झा।

पूरी सृष्टि सीय राममय चेतना से आप्लावित है-डॉ.सीताराम झा।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार के गांधी भवन परिसर स्थित नारायणी कक्ष में हिंदी साहित्य सभा की ओर से मंगलवार को तुलसीदास की सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में मुजफ्फरपुर से पधारे विद्वान लेखक व गीतामृत पुस्तक के रचयिता डॉ.सीताराम झा ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि ज्ञान का उदय सर्वप्रथम आर्यावर्त में हुआ है, वाल्मीकि रामायण से पूर्व सतकोटि रामायण भी लिखा गया है। हमारी संस्कृति में पहली गंगा जो गोमुख से निकलकर समुद्र में मिलती है लेकिन दूसरी गंगा हमारे देश की सामाजिक- संस्कृत गंगा है जो अपने ज्ञान के रूप में प्रवाहमय है इसकी झलक रामचरितमानस के माध्यम से हमें देश ही नहीं विदेश में भी प्रवाहित होती हुई दिखती है।

राम नाम की महत्ता को तुलसीदास ने अपनी कालजयी कृति रामचरितमानस में रेखांकित किया है, भारत की समतावादी दृष्टिकोण को भी उभरा है और सांस्कृतिक चेतना के माध्यम से समन्वय की विराट चेष्टा को दर्शाया है। तुलसीदास का मानना है की पूरी सृष्टि सीया राममय में सांस्कृतिक-सामाजिक चेतना से आप्लावित है, क्योंकि ज्ञान का स्रोत भारत है और उस ज्ञान का उपयोग है।

वहीं सामाजिक चेतना के रूप में एक आदर्श पारिवारिक चेतना की झलक रामचरितमानस में मिलती है, क्योंकि राम भगवान होकर भी शबरी को माॅ कहना पसंद करते हैं, पशु पक्षियों से सीता के बारे में पूछते हैं,राम जटायु को दशरथ की भांति सम्मान देते हुए उनका अंतिम संस्कार करते हैं,अर्थात रामचरितमानस हमारे समाज का समन्वयवादी एवं सांस्कृतिक ग्रन्थ है।

हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि वाल्मिकी रामायण के बाद रामचरितमानस लिखने वाले कवियों में सबसे बड़े कवि है। रामचरितमानस वाल्मिकी रामायण से कहीं आगे की कडी है। वाल्मिकी रामायण में मनुष्यत्व अधिक है और रामचरितमानस में ईश्वरत्व अधिक है। तुलसीदास की सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि ही रामचरितमानस को काव्य से शास्त्र की ओर ले जाती है। यही काव्य और शास्त्र की एकता रामचरितमानस की विशेषता है।


कार्यक्रम में सर्वप्रथम मुख्य वक्ता डॉ.सीताराम झा सर को हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने अंग वस्त्र एवं विश्वविद्यालय की पत्रिका ज्ञानाग्रह प्रदान कर स्वागत किया।समारोह में मंगलाचरण एवं विषय प्रवेश शोधार्थी प्रतीक कुमार ओझा ने प्रस्तुत किया, वहीं कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य शोधार्थी सुनंदा गराईन ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन शोधार्थी विकास कुमार ने किया,जबकि धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अस्मिता पटेल ने किया।

इस अवसर पर सभागार में अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ.विमलेश कुमार सिंह, संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ.श्याम कुमार झा, संस्कृत विभाग में सहायक आचार्य डॉ. विश्वजीत वर्मन सहित कई विभाग के शोधार्थी और परास्नातक के छात्र उपस्थित रहे।

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