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पितृ पक्ष के दौरान शारीरिक संबंध बना सकते हैं या नहीं? जरूर जानें नियम - श्रीनारद मीडिया

पितृ पक्ष के दौरान शारीरिक संबंध बना सकते हैं या नहीं? जरूर जानें नियम

पितृ पक्ष के दौरान शारीरिक संबंध बना सकते हैं या नहीं? जरूर जानें नियम

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पितृ देव तुल्य ही होते हैं। मरने के बाद पूर्वज देवता के समान हो जाते हैं और पितृ पक्ष के दौरान वो अपनी संतान को देखने आते हैं। गरुड़ पुराण में भी श्राद्ध का महत्व बताया गया है जिससे पूर्वज को शांति और मोक्ष प्राप्त होती है। अगर पूर्वज प्रसन्न ना हों और उन्हें शान्ति ना मिली हो तो फिर संतान सुखी नहीं रह सकता है। संतान के ऊपर पितृ दोष लगा रहता है।

यही वजह है कि भादो माह की पूर्णिमा तिथि से अश्विन माह की अमावस्या तक पितृ पक्ष के दौरान ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे मिलने आने वाले पूर्वजों के सम्मान को ठेस लगे। इसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना सबसे जरुरी है।

आइये आपको बताते हैं की पितृ पक्ष के दौरान यौन गतिविधि नहीं करने या यौन सम्बन्ध नहीं बनाने के पीछे क्या कारण है?

1. आध्यात्मिक अनुशासन ब्रह्मचर्य को आत्म-अनुशासन के एक रूप के रूप में देखा जाता है। इसका सीधा अर्थ है अपनी इच्छाओं और आवेगों को नियंत्रित करना। यौन गतिविधियों और अन्य कामुक सुखों से दूर रहकर, व्यक्ति अपने मन और शरीर पर अधिक नियंत्रण विकसित कर सकते हैं, जो आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है। पितृ पक्ष की यह अवधि व्यक्ति को यही सिखाती है।

2. अपनी ऊर्जा का संरक्षण माना जाता है कि ऊर्जा के संरक्षण में ब्रह्मचर्य महत्वपूर्ण है। व्यक्ति यौन क्रियाओं में लगकर अपनी इस ऊर्जा को नष्ट कर देता है। पितृ पक्ष में अपनी ऊर्जा को संरक्षित करना चाहिए और इसे आध्यात्मिक प्रथाओं और गतिविधियों के कार्य में लगाना चाहिए।
3. मन की पवित्रता ब्रह्मचर्य की मदद से व्यक्ति अपने मन को शुद्ध कर सकता है और उसे स्वयं को समझने में मदद मिलती है। एक अवधि के लिए यौन गतिविधियों से दूरी मानसिक शुद्धता, ध्यान और उच्च ज्ञान की खोज में सहायता करती है। जब कोई व्यक्ति संभोग में शामिल होने से परहेज करता है, तो ऐसा माना जाता है कि यह दिमाग को स्पष्ट, शांत और एकाग्र करने में मदद करता है।

4. भौतिक सुखों से वैराग्य सांसारिक सुखों से दूर रहकर, व्यक्ति खुद को भौतिक इच्छाओं और सुखों से अलग कर सकता है। ऐसा करके व्यक्ति आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाता है। ऐसा कहा जाता है कि इससे आत्मा जन्म और मृत्यु (संसार) के चक्र से मुक्त हो जाती है।

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