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चरमपंथी कांग्रेसी नेता लोकमान्य पo बाल गंगा धर तिलक : डा. महेन्द्र शर्मा  - श्रीनारद मीडिया

चरमपंथी कांग्रेसी नेता लोकमान्य पo बाल गंगा धर तिलक : डा. महेन्द्र शर्मा 

चरमपंथी कांग्रेसी नेता लोकमान्य पo बाल गंगा धर तिलक : डा. महेन्द्र शर्मा

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक। पानीपत (हरियाणा):

पानीपत : उत्तर भारत के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य एवं शास्त्री आयुर्वेदिक अस्पताल पानीपत के संचालक डा. महेन्द्र शर्मा ने धर्म चर्चा पर जानकारी देते हुए बताया की जब पo बाल गंगा धर तिलक 1890 ईo में कांग्रेस के सदस्य बने तो उस समय भारत में अंग्रेजों का राज्य था और उस समय अंग्रेजों से राष्ट्र को मुक्त करवाने के आन्दोलन प्रारम्भ हो चुके थे, 1857 के प्रथम स्वधीनता संग्राम के समय यद्यपि भारत अभी भी क्षेत्रीय रजवाड़ों में बंटा हुआ था तथापि अंग्रेजों से मुक्ति तो हर कोई चाहता था। उस समय केवल कांग्रेस ही थी जो आजादी की लड़ाई लड़ रही थी।

अंग्रेजों के खिलाफ़ जन मानस को एक करने के लिए पo बाल गंगा धर तिलक जी ने 1893 ईo के भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक वैदिक सनातन पर्व श्री गणेश प्राकट्योत्सव का आश्रय लेकर इसको सार्वजनिक जनमानस का पर्व बना दिया। सौराष्ट्र क्षेत्र पo जी ने सामूहिक पंडालों में दस दिवसीय पर्व पर हर घर मंदिर गली मोहल्ले कूचे बाजार चौक में गणपति भगवान की मूर्तियां स्थापित कर लोगों को एकत्र किया और पंडालों में श्री गुरु हर गोबिंद जी के “मीरी पीरी सिद्धान्त” से प्रेरणा लेकर जन मानस को अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने की प्रेरणा दी। जगह जगह पंडालों में देश को आजाद करवाने के संदेश प्रसारित होने लगे और इस तरह से थोड़े ही समय में आम लोग जो निष्पक्ष थे, वो किसी भी प्रकार से सरकार का खुल कर विरोध नहीं करते थे वह लोग भी जाग उठे और अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई ने जोर पकड़ लिया और अब अंग्रेजी हुकूमत के आंदोलन को रोकने की हिम्मत भी जवाब देने लगी कि किस किस को गिरफ्तार करें और जेल में डालें।

यदि किसी को गिरफ्तार करने की कोशिश भी जाती तो जन सैलाब वहां पहुंच जाता। शोर और विरोध को कुचलने की कोशिश में विरोध और उग्र हो जाता उससे आजादी के आंदोलन को और बल मिलता। अब यह देखें कि क्या कांग्रेस उस समय धर्म निरपेक्ष थी, क्या पo बाल गंगा धर तिलक को रोका गया था कि वह धर्म को सीढ़ी न बनाएं , क्या किसी ने तब हिंदू मुस्लिम ईसाई किया था … किसी भी व्यक्ति या नेता ने ऐसा विरोध नहीं किया था उल्टे 1918 ईo में पंडित बाल गंगा धर तिलक तो कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। कहने का अर्थ यह है कांग्रेस आज 100 वर्षों के बाद धर्म निपेक्षता का झूठा स्वांग क्यों कर रही है जिस का आश्रय वह पहले ले चुकी है। कांग्रेस को अपनी राजनैतिक छाप बचाए और बनाए रखने के गुरु साहिब द्वारा स्थापित जन मानस (सादसंगत) से आज्ञा और मार्गदर्शन लेने की परम्परा “मीरी पीरी नियमन” को पुनः अपनाना होगा।

पo जी भली भांति जानते थे कि केवल धर्म का मार्ग और राह पकड़ने से लोग इकट्ठे हो सकते हैं। तब भी यही स्थिति थी, आज भी यही है और कल भी यही रहेगी। आज समय आ गया है कि। कांग्रेस को अब यह समझना चाहिए कि वह यह जाने कि लोग क्या चाहते हैं और कांग्रेस को भी धर्म निरपेक्ष का लबादा उतारना ही होगा। यह कोई नया काम नहीं होगा जब उस (कांग्रेस) ने 1893 में उतारा था और लोगों को इकठ्ठा कर के अंग्रेजों से लोहा लिया था और आजादी प्राप्त की थी। धर्म तब भी जनमानस की कमज़ोर नस था और आज भी है। ऐसा करने से एक दल विशेष का धर्म या मुद्दा कमज़ोर हो सकता है, इससे आम लोगों के यह चुनना (option) खत्म हो जाएगी कि कौन धर्म के कंधे पर बैठ कर राजनीति कर रहा है। कांग्रेस अब भी Diamond Cuts Diamond का गियर लगाएं तभी कुछ होगा अन्यथा आज श्री राम मंदिर आंदोलन के चलते चुनाव हो जाए तो कांग्रेस के लिए परिणाम भयावह होगा। आगे कांग्रेस के भाग्य निराले हम तो ब्राह्मण हैं जो शास्त्र की बात करते हैं और करते रहेंगे। कांग्रेस अपनी “कुएं का मेढ़क वाली राजनैतिक सोच” से बाहर निकल कर अवलोकन करें कि जनमानस से कैसे जुड़ें।
गते शोके न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणा।।
श्री गीता
बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान लोग तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं।
डॉ. महेन्द्र शर्मा “महेश”
देवभूूमे पानीपत।

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