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राजयोग मेडिटेशन से मन ही नही, तन भी स्वस्थ रहता है : बी.के. सरोज  - श्रीनारद मीडिया

राजयोग मेडिटेशन से मन ही नही, तन भी स्वस्थ रहता है : बी.के. सरोज 

राजयोग मेडिटेशन से मन ही नही, तन भी स्वस्थ रहता है : बी.के. सरोज

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, कुरूक्षेत्र –

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र सेवा केन्द्र की इन्चार्ज बी.के. सरोज बहन ने बताया कि आत्मा का परमात्मा से मिलन ही राजयोग है। आत्मा इस सृष्टि पर आई तो पवित्र व सतो प्रधान थी। धीरे धीरे उसमें गिरावट शुरु हुई और अपवित्र बनती गई। आज मनुष्य आत्मा क्या से क्या बन गई है। हम आत्माओ को फिर से पावन बनाने और राजयोग की शिक्षा देने स्वयं परमात्मा इस घरा पर अवतरित होते हैं। परमपिता परमात्मा का अवतरण होता है न कि जन्म लेते हैं। इसीलिए उनको परमपिता कहते हैं। परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा के तन का आधार लेकर सच्चा ज्ञान सुनाते हैं और आत्मा का परमात्मा से मंगल मिलन की राह बताते हैं। यही मिलन राजयोग है।

यह मिलन सर्वश्रेष्ठ होने के कारण इसे राजयोग कहा जाता है। यही योग सभी योगों का राजा है। स्वयं परमात्मा शिव अपना सत्य परिचय देकर आत्मा को अपने साथ योग लगाने की विधि बताते हैं। राजयोग मेडिटेशन से मन ही नही, शरीर भी स्वस्थ रहता है। इसमें जीवन की हर समस्या का हल समाया हुआ है। राजयोग के अभ्यास द्वारा हमारी सुषुप्त शक्तिया जागृत हो जाती हैं। वैसे तो हर व्यक्ति भगवान को किसी न किसी रूप में याद करता ही है, लेकिन सत्य जानकारी न होने के कारण उसकी बुद्धि भगवान की याद में एकाग्र नहीं होती। बुद्धि इधर उधर भटकती है। शक्ति व्यर्थ की बातों के चिंतन-मनन में नष्ट हो जाती है। जब तक परमात्मा का सत्य

परिचय नहीं तब तक शक्तियां कैसे प्राप्त हो। गीता के नौवें अध्याय के आरम्भ में ही कहा गया है कि भगवान द्वारा सिखाया गया योग राजयोग है। आत्मा के समान परमात्मा भी अति सूक्ष्म, ज्योर्तिबिन्दु है। इस अवसर पर डा. बी.के. प्रवीण महाजन, सन्तोष शर्मा, सुदेश दीगड़ा, राज कुमारी, ममता दुआ और बी.के. सतीश कत्याल, प्रो. सुरेश चंद्र,हरबंस सिंह औजला, डा. आर.डी शर्मा व कुमारी लक्ष्मी (एनआईटी), विकास कुमार (एनआईटी)
मौजूद रहे।

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