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अमेरिका में क्यों जमा हुई 29 देशों की सेना? - श्रीनारद मीडिया

अमेरिका में क्यों जमा हुई 29 देशों की सेना?

अमेरिका में क्यों जमा हुई 29 देशों की सेना?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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150 लड़ाकू विमान, 40 जंगी जहाज, 3 पनडुब्बियां और करीब 25 हजार सैनिक भाग ले रहे हैं। वैसे तो ये युद्धभ्यास 1971 से लगातार होता आ रहा है, लेकिन इस बार की कहानी थोड़ी अलग ही है। इस बार के रिमपैक में इजरायल भी शामिल हो रहा है। इतिहास में ये तीसरी बार है। इजरायल की भागीदारी इसलिए भी खास है क्योंकि वो गाजा में पिछले 9 महीने से जंग लड़ रहा है।

इसमें युद्धअपराध जैसे आरोप झेल रहे इजरायल के शामिल होने की वजह से कई देशों की तरफ से आपत्ति भी जताई गई है। कुल मिलाकर कहे तो रिमपैक पर विभिन्न मुद्दों को लेकर पूरी दुनिया की नजर बनी हुई है।

कौन-कौन देश इसमें शामिल हो रहे हैं

रिमपैक की स्थापना 1971 में हुई थी। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया इसके संस्थापक देश हैं। इसका मकसद अभ्यास में भाग लेने वाले देशों के बीच संबंधों में मजबूती और इंडो पैसेफिक के त्रासदियों और सुरक्षा सुनिश्चित करना। अमेरिका इसे लीड करता है और इसका मुख्यालय पर्ल हार्बर में है। भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, ब्रुनेई, कनाडा, चिली, कोलंबिया, डेनमार्क, इक्वाडोर, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इजरायल, इटली, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, पेरु, साउथ कोरिया, फिलीपींस, सिंगापुर, श्रीलंका, थाइलैंड और दोंगा।

रिमपैक हर दो साल पर जून और जुलाई के महीने में होता है। 2024 में ये 27 जून से 1 अगस्त तक चलेगा। ये कोई औपचारिक संगठन नहीं है इसलिए इसमें देशों की संख्या बढ़ती और घटती रहती है। उसी अनुपात में सैनिकों और जहाजों की संख्या कम और ज्यादा होती रहती है। 2022 में 26 देश शामिल हुए थे, 2014 में 22 देशों ने हिस्सा लिया था, जबकि 2024 में ये संख्या बढ़कर 29 हो गई है। 1971 के शुरुआत में सिर्फ आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका की सेना शामिल हुई थी।

भविष्य के युद्ध की तैयारी

चीन ने 2014 और 2016 में रिमपैक में भाग लिया था, लेकिन बढ़ते क्षेत्रीय तनाव के बीच, 2018 में उसे आमंत्रित नहीं किया गया था। इस वर्ष के आयोजन में उसे आमंत्रित नहीं किया गया है। इस महीने की शुरुआत में सिंगापुर में शांगरी-ला डायलॉग शिखर सम्मेलन में एक भाषण में अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने जोर देकर कहा कि एशिया प्रशांत अमेरिकी सुरक्षा रणनीति के केंद्र में था।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका केवल तभी सुरक्षित हो सकता है जब एशिया सुरक्षित हो। जब एक चीनी प्रतिनिधि ने पूछा कि क्या अमेरिका इस क्षेत्र में नाटो जैसा गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहा है, तो ऑस्टिन ने जवाब दिया कि समान मूल्यों वाले और स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के समान दृष्टिकोण वाले समान विचारधारा वाले देश एक साथ काम कर रहे हैं।

उस दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए. और हमने अपने सहयोगियों और साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत किया है और हम देखते हैं कि क्षेत्र में अन्य देश भी एक-दूसरे के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहे हैं। नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने भी एशिया प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया। पुतिन की प्योंगयांग यात्रा से पहले बोलते हुए स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि यूरोप में जो होता है वह एशिया के लिए मायने रखता है और एशिया में जो होता है वह हमारे लिए मायने रखता है।

इस बार का थीम क्या है? 

चीन को समझ आता है कि इतने सारे देश जब एक साथ आते हैं। ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको, बेल्जियम जैसे देशों के लिए चीन एक बाइंडिंग फैक्टर है। इस वर्ष के RIMPAC में अब तक का सबसे बड़ा मानवीय सहायता और आपदा राहत प्रशिक्षण भी शामिल होगा। संयुक्त राष्ट्र कर्मियों और गैर-लाभकारी समूहों जैसे बाहरी संगठनों के साथ काम करने वाले आठ देशों के अभियान बल और 2,500 प्रतिभागी।

प्रशिक्षण में राज्य-व्यापी सामूहिक हताहत अभ्यास और विदेशी आपदाओं के लिए संकट प्रतिक्रिया क्षमताओं को मजबूत करना, साथ ही एक शहरी खोज और बचाव अभ्यास शामिल होगा जो “मानवीय संकट के दौरान वास्तविक दुनिया के संचालन” को दर्शाता है। आयोजक साझेदार देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए RIMPAC की प्रशंसा करते हैं, यह पर्यावरण और जलवायु कार्यकर्ताओं, स्वदेशी समूहों और क्षेत्र के अन्य लोगों की आलोचना भी कर रहा है जो इस अभ्यास को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

रिमपैक में भारत की भूमिका

भारत द्वारा पिछले दस सालों में इसमें हिस्सा लिया जाना शुरू हो गया है। इसके पीछे की वजह भारत को अमेरिका के साथ रिश्ते को कायम रखना भी है। रिमपैक का ड्राइविंग फोर्स अमेरिका ही है। भारतीय नौसेना के प्रभाव और क्षमता को सबी जानते हैं। ऐसे में भारतीय नौसेना की उपस्थिति रणनीतिक आयाम के लिहाज से महत्वपूर्ण हो जाता है। चीन की विस्तारवादी नीति से भारत को भी खतरा है।

चीन हिंद महासागर में अपना प्रभुत्व बढ़ाता है तो भारत पैसेफिक में जाकर अपना दायरा बढ़ा रहा है। इंडो पैसेफिक के जियोपॉलिटिक्स पर नजर डालें तो सारे महत्वपूर्ण बदलाव भारत को प्रभावित करते हैं। ताइवान की खाड़ी में अगर कुछ होता है तो वो भारत पर उसका असर पड़ेगा क्योंकि वहां से अंडरसी केबल जाता है, जिस पर हमारा पूरा आईटी, सॉफ्टवेयर निर्भर है। मल्टीनेशनल एक्सरसाइज में भाग लेने से सभी देशों की नेवी से संपर्क आना शुरू हो जाता है। कुल मिलाकर देंखे तो इसका सभी देशों को बहुत फायदा होता है।

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