जे आर कॉन्वेंट दोन में जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में बही सांस्कृतिक बयार

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श्रीकृष्ण और राधा के स्वरूप में नन्हें नन्हें बच्चों ने मोहा मन

श्रीनारद मीडिया,  डा0 गणेश दत पाठक, सीवान (बिहार):

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण और देवी राधा को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता रहा है। जन्माष्टमी के पर्व के कई मायने भी होते हैं। जन्माष्टमी के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता रहा है। जन्माष्टमी के पर्व को भक्ति और प्रेम का प्रतीक भी माना जाता रहा है। जन्माष्टमी के पर्व का विशेष सांस्कृतिक महत्व भी होता है।

जब जन्माष्टमी का पर्व आता है तो स्कूलों में विविध आयोजन भी होते हैं। छोटे छोटे बच्चे राधा कृष्ण के रूप को धारण कर सांस्कृतिक जीवंतता की बयार को बहाते देखे जाते हैं। शनिवार को महाभारतकालीन गुरु द्रोण की नगरी दोन के जे आर कॉन्वेंट स्कूल में जन्माष्टमी उत्सव धूम धाम से मनाया गया। जहां एक तरफ नन्हें नन्हें बच्चे राधा कृष्ण के स्वरूप में मन को मोह रहे थे वहीं स्कूल के सभागार में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति पर बच्चों ने खूब तालियां बजाईं और सांस्कृतिक उल्लास के उमंग को महसूस किया। इस अवसर पर संगीत शिक्षक मुनेश्वर पांडेय, नृत्य शिक्षिका पूजा किशन, संदीप दास, पूर्णिमा, मोनी, सुष्मिता, बीपी वर्मा आदि उपस्थित रहे।

स्कूलों में जन्माष्टमी के पर्व पर ऐसे आयोजन के महत्व के बारे में जे आर कॉन्वेंट स्कूल के प्राचार्य सीएस नायक ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण और राधा की कहानी हमारी संस्कृति और परंपरा की अहम हिस्सा रही है।इसके बारे में बच्चों को जानना जरूरी है। साथ ही, श्रीकृष्ण और राधा की कहानी सत्य निष्ठा, दया, करुणा, न्याय जैसे नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी देती है। आज के उपभोक्तावादी युग में नैतिक मूल्यों को बच्चों को सिखाना एक अनिवार्य तथ्य है।

स्कूल के प्रबंधक अनीश पांडेय ने बताया कि विद्यालय के संस्थापक स्वर्गीय कुमार बिहारी पांडेय जी का भी मानना था कि बच्चों को समय समय पर आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना चाहिए।

विद्यालय के निदेशक श्री सतीश पांडेय और संजय पांडेय ने अपने संदेश मेंं कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और राधा की कहानी प्रेरणा और उत्साह के भाव का सृजन भी करती है। इससे बच्चे अपने जीवन में कुछ अच्छा करने का संकल्प भी लेते हैं।

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