चीन क्यों पाक और अफगानिस्तान में मित्रता कराना चाहता है?

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श्रीनारद मीडिया सेन्ट्रल डेस्क

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में खाई और चौड़ी हो चुकी है। दूसरी तरफ भारत और अफगानिस्तान के बीच पारंपरिक सौहार्दपूर्ण रिश्तों के रंग के और गहरे होने के संकेत हैं। ऐसे में चीन की तरफ से यह कोशिश शुरू हो गई है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव को खत्म किया जाए। भारी-भरकम आर्थिक व कूटनीतिक समर्थन देने का वादा कर चीन पहले ही तालिबान सरकार को साध चुका है।
मंगलवार (20 मई) को राजधानी बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी, पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री इशाक दार और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच एक महत्वपूर्ण त्रिकोणीय बैठक है। बैठक का मुख्य मकसद पाक व अफगान के बीच भरोसे को बढ़ाना है।

आपरेशन सिंदूर के समाप्त होने के कुछ ही दिनों बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानी विदेश मंत्री मुत्तकी की मुलाकात से दक्षिण एशिया की कूटनीति में खासी हलचल मची हुई है। ऐसे में बीजिंग में होने वाली त्रिपक्षीय बैठक पर भारत की भी पैनी नजर होगी। अफगानिस्तान को लेकर चीन की रणनीति किसी से छिपी हुई नही है।

तालिबान को आर्थिक मदद कर रहा चीन

अगस्त, 2021 में अमेरिकी सैनिकों की अचानक वापसी के फैसले के बाद चीन अफगानिस्तान में काफी सक्रिय हो गया है। जब काबुल में अफरा-तफरी थी तब भी चीन ने वहां अपने दूतावास को बंद नहीं किया।

तालिबान के सत्ता में काबिज होने के साथ ही चीन ने वहां की सरकार के प्रतिनिधियों के साथ संपर्क साधा और आर्थिक मदद भी दी। भारत इसके तकरीबन छह महीने बाद तालिबानी प्रतिनिधियों से संपर्क साध पाया था। वैसे भारत भी लगातार अफगानिस्तान को कई तरह से मदद पहुंचा रहा है।

सीपीईसी को अफगानिस्तान से जोड़ने का प्रस्ताव

कूटनीतिक सूत्रों ने बताया है कि वांग यी, मुत्तकी और दार के बीच होने वाली बैठक में एक खास मद्दा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कारीडोर (सीपीईसी) को अफगानिस्तान से जोड़ने की है। तालिबान सरकार ने पहले ही कहा है कि वह इस आर्थिक कारीडोर से जुड़ना चाहती है। चीन इस कारीडोर पर तकरीबन 65 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है।
इस परियोजना के तहत पाकिस्तान के बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में कई ढांचागत परियोजनाओं और कनेक्टिविटी परियोजनाएं लगाई जा रही हैं। कुछ प्रोजेक्ट्स पूरी हो चुकी हैं। ग्वादर पोर्ट इसका हिस्सा है। अगर अफगानिस्तान इस कारीडोर से जुड़ जाता है तो चीन अपने उत्पादों को सीपीईसी के जरिए पाकिस्तान व अफगानिस्तान होते हुए मध्य एशियाई देशों व उसके आगे यूरोप तक कम समय में भेज सकता है।

अफगानिस्तान के खनिज पर है चीन की नजर

तालिबान सरकार के प्रति चीन के झुकाव के पीछे एक बड़ी वजह अफगानिस्तान के पास कई बहुमूल्य धातुओं के भंडार को बताया जा रहा है। अफगानिस्तान में लिथियम, कापर और आयरन के बड़े भंडार हैं जिनका बहुत ही कम दोहन हुआ है। चीन की कंपनी मेटालार्जिकल कार्प ऑफ चाइना लिमिटेड अफगानिस्तान में काम करना शुरू कर चुकी है और उसकी नजर तांबे के खान पर है। हाल ही में काबुल में चीन के राजदूत ने यह कहा है कि चीन अफगानिस्तान के साथ कई औद्योगिक सेक्टरों में शुल्क मुक्त कारोबार करने को इच्छुक है।

सनद रहे कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद जैसा कि उम्मीद थी वैसा अफगानिस्तान व पाकिस्तान के रिश्तों में नहीं दिखा। आज दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य तनाव है।
कई बार गोलीबारी भी हो जाती है। पाकिस्तान सरकार देश के कई हिस्सों में गैरकानूनी तरीके से रहने वाले अफगानी शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल रही है। ऑपरेशन सिंदूर के समय जब पाकिस्तान ने अफवाह फैलाया कि भारत ने अफगानिस्तान में भी मिसाइल दागा है तो तालिबान ने तुरंत इसका खंडन किया।

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