एक बेटी छठ के घाट पर अपनी छठबरती माँ के हमराह पर है जाने-अनजाने में।

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छठी मईया की किरपा-छाँव में फलती-फूलती भोजपुरी संस्कृति

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उसके एक हाथ फल वाले सीपुली को धरने में सहयोग कर रहें हैं दूसरा माँ को सहारा दे रहें हैं।ठीक इसी तरह छठपूजा के माध्यम से सम्पूर्ण भोजपुरी संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरित होते रहती है।

भोजपुरी की यही अनुपम और अनूठी विधि उसे न केवल अन्य संस्कृतियों से जुदा, अनुपम व अभिनव बनाती है अपितु अन्य संस्कृतियों, भाषा -भाषियों, धर्मावलम्बीयों को अपनी ऒर बड़ी सहज भाव से आकर्षित कर उसे अपना बना लेती है।

आज़ भोजपुरी भाषा का डंका अग़र भारत के साथ पुरे विश्व में बज रहा है तो उसके पीछे छठ के सुंदर-श्लील गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। योगदान है हमारे अभूतपूर्व अनुशासन और समयबद्धता का जो हम छठ घाट पर दिखाते हैं। हम सूरज के डूबने से पहले और उनके उगने से पहले उनके पूजन-अर्चन में खड़े हो जाते हैं। घाट पर करोड़ों लोग, मगर मजाल जो कोई वाद-विवाद हो,हरगिज नहीं, सब के साध्य बस एक हैं — सुरुज भगवान!

मित्रों का मालुम है मैं असम में रहता हूँ — पत्रकार, शिक्षक व लेखक हूँ। तो इन पचास वर्षों में मैंने देखा है ब्राह्मपुत्र और दीवाँग नदी के घाट पर बिहारी छठवर्तियों के साथ असमिया, अरुणाचली, नगा, मिजो, मणिपुरी, चाकमा, त्रिपुरी और गोरखा लोगों को छठपूजा करते और भोजपुरी छठपुजा के गीत गाते, यह सिलसिला रुकेगा नहीं चलते रहेगा युगों-युगों तक।

आज़ अग़र असम में रहने वाले लाखों लोग असमिया भाषा और संस्कृति की ऒर झुकते हैं तो इसमें उदार और सुंदर असमिया संस्कृति का बहुत बड़ा योगदान है, रंगाली बिहु का बहुत बड़ा योगदान है।

धीरे-धीरे अनजाने में हीं छठ करने वाले अन्य अंचल, प्रान्त, राज्य और विश्व के वासी, भोजपुरी बोलना, साड़ी पहनना, सेनूर लगाना, ठेकुआ, खजूर बनाना सीख जाते हैं। इस तरह मानव का मानव से रिश्ता मजबूत होता चला जाता है।

आइये संकल्प लें कि छठपूजन के इस सिलसिला को हम यूँ हीं आगे बढ़ाते रहेंगे। भोजपुरी संस्कृति को आगे ले जाते रहेंगे। मानव का मानव से प्रेम बढ़ाते रहेंगे।
छठी मैया की जय।

आभार–मनोज कुमार ओझा,ब्राह्मपुत्र छठ घाट,
गुवाहाटी, असम से

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