Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य. - श्रीनारद मीडिया

2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य.

2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कल्पना कीजिए कि आप एक बर्तन में पानी उबालना चाहते हैं। ऐसा आप ढक्कन के साथ और बिना ढक्कन के कर सकते हैं। लेकिन बिना ढक्कन के पानी उबालने पर ईंधन का पूरा सदुपयोग नहीं हो पाता है और पानी उबलने में समय व गैस भी ज्यादा लगती है। अगर यही काम ढक्कन के साथ किया जाए तो पानी जल्दी उबलता है और गैस की भी बचत होती है।

यही बात भारत को वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य पाने पर भी लागू होती है, जिसकी घोषणा हाल ही में प्रधानमंत्री ने की है। हमारे घरों, कार्यालयों, वाहनों और कारखानों में ऊर्जा संरक्षण के हमारे प्रयास ही तय करेंगे कि भारत नेट-जीरो लक्ष्य को समय पर और कम से कम संसाधनों में हासिल कर सकेगा या नहीं। भारत को अपना दीर्घकालिक लक्ष्य पाने के लिए 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रति करोड़ रुपये पर होने वाले उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक घटाने की जरूरत है। हम 2016 तक पहले ही 24 प्रतिशत तक घटा चुके हैं। ऐसे में कौन से काम हैं जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर करने की जरूरत है?

ब्यूरो आफ एनर्जी इफिशिएंसी (बीईई) का आकलन है कि वित्त वर्ष 2019-20 में कुल जितनी ऊर्जा की बचत हुई, उसमें उपकरणों की ऊर्जा दक्षता और उजाला कार्यक्रम का एक तिहाई हिस्सा था। काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के इंडिया रेजिडेंशियल एनर्जी सर्वे (आइआरईएस) में सामने आया है कि केवल एक चौथाई भारतीय परिवार ही इलेक्टिक उपकरणों पर लगे बीईई के स्टार-लेबल (बिजली की बचत के चिन्ह) को पहचान पाते हैं।

उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता की कमी, बिजली की बचत करने वाले उपकरणों की ऊंची कीमत और खुदरा दुकानों पर ऊर्जा कुशल उपकरणों की सीमित उपलब्धता जैसे कारण इसके प्रसार में बाधक हैं। उदाहरण के लिए, 2014 के बाद से उजाला के तहत 37 करोड़ एलईडी बल्बों की बिक्री हुई, जबकि ऊर्जा-कुशल सीलिंग फैन की बिक्री 26 लाख से भी कम रही, जो ज्यादा बिजली की खपत करने वाले उपकरण हैं।

उद्योगों को ध्यान में रखकर लागू की गई परफार्म अचीव एंड ट्रेड (पीएटी) योजना का वित्त वर्ष 2019-20 की कुल ऊर्जा बचत में लगभग दो-तिहाई की हिस्सेदारी थी। इन उद्योगों में तापीय विद्युत संयंत्रों, लौह और इस्पात व सीमेंट जैसे बड़े उद्योग सबसे प्रमुख थे। सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग (एमएसएमई) ऊर्जा संरक्षण में काफी पीछे हैं। भारत में लगभग 6.3 करोड़ एमएसएमई हैं।

इनमें से केवल 20 फीसद ही अपनी बिजली के बिल और उपकरणों के स्तर पर ऊर्जा की खपत की निगरानी करते हैं। अगर भारत के छह हजार एमएसएमई क्लस्टर्स की ऊर्जा खपत के आधार पर बेंचमार्किंग कर दी जाए तो उनकी ऊर्जा दक्षता को बढ़ाने और प्रतिस्पर्धा सुधारने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, एमएसएमई खुद से ऊर्जा-दक्षता के लिए निवेश करें, इसके लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किए जाने की भी आवश्यकता है।

इस दशक ने भारत को ऐसे उपकरणों से बचने का मौका दिया है, जो ऊर्जा की खपत के मामले में कुशल नहीं हैं। इसका लाभ लेने के लिए सबसे पहले हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्यों के पास ऊर्जा दक्षता के अपने लक्ष्य हों और उसे कानून का समर्थन हासिल हो। बिजली क्षेत्र के मौजूदा नियम राज्य सरकारों और बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) को अपने सेवा क्षेत्रों में ऊर्जा उपयोग का समग्रता से प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रोत्साहित नहीं करते हैं। ऊर्जा दक्षता पर पारदर्शी निगरानी और राज्यवार लक्ष्यों के साथ एक राष्ट्रीय लक्ष्य को मिशन मोड में लागू करने की आवश्यकता है। इस मामले में हमारे नीति-निर्माता सौभाग्य योजना का उदाहरण ले सकते हैं, जिसने सभी घरों तक बिजली पहुंचाने का काम किया।

दूसरा, नवाचार आधारित वित्तपोषण योजनाओं के साथ ऊर्जा-दक्षता के लक्ष्यों को मजबूत करना होगा। वित्तीय जोखिम की गहरी आशंका के कारण एमएसएमई, घरों और संबंधित कंपनियों को ऊर्जा-दक्षता संबंधी निवेश के लिए संघर्ष करना पड़ता है। बिजली कंपनियों की खराब वित्तीय स्थितियां किसी से छिपी नहीं है।

तीसरा, ऊर्जा संरक्षण मानकों को स्थापित करने और उन्हें लागू करने के लिए राज्यों और स्थानीय सरकारी संस्थानों को सशक्त बनाना होगा। शहरी निकायों जैसे स्थानीय संस्थानों को अपने स्थानीय कानूनों में ऊर्जा-दक्षता के बेहतर व्यवहार को शामिल करने और नए निर्माणों में ईको-निवास संहिता जैसे ग्रीन बिल्डिंग मानकों को लागू करने की क्षमता पैदा करने की जरूरत है। इसके अलावा, राज्यों में बीईई की नामित एजेंसियों की तकनीकी क्षमता सुधारने के लिए भी फंडिंग की जरूरत है। इससे उन्हें राज्य स्तर पर ऊर्जा संरक्षण की विविध गतिविधियों को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिलेगी।

चौथा, व्यवहार परिवर्तन पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। एयर-कंडीशनर के इस्तेमाल पर हमारे अध्ययन में सामने आया है कि ऊर्जा-कुशल माडल, उसके उपभोग संबंधी व्यवहार में वास्तविक बदलाव के लिए जागरूकता पैदा करने के प्रयासों के बीच काफी अंतर है। उपकरणों की खरीद और उनके उपयोग संबंधी व्यवहार को ऊर्जा दक्षता की दिशा में मोड़ने के लिए उपभोक्ताओं की गहन भागीदारी के साथ-साथ राज्य सरकारों, निर्माताओं, खुदरा विक्रेताओं और मरम्मत व सर्विस करने वाले टेक्नीशियनों जैसे कई हितधारकों को भी शामिल करने की आवश्यकता है।

ऊर्जा दक्षता संबंधी सरल लक्ष्यों को हमने पहले ही हासिल कर लिया है। इसलिए यहां से ऊर्जा बचत को आगे बढ़ाने और उसे बनाए रखने के लिए सरकार और अर्थव्यवस्था के सभी स्तरों पर एक व्यापक तालमेल बनाने की जरूरत है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!