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प्रेमचंद साहित्यकार होने के साथ-साथ एक कुशल समाजशास्त्री भी थे- प्रो. संजय श्रीवास्तव। - श्रीनारद मीडिया

प्रेमचंद साहित्यकार होने के साथ-साथ एक कुशल समाजशास्त्री भी थे- प्रो. संजय श्रीवास्तव।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार के चाणक्य परिसर स्थित राज कुमार शुक्ल सभागार में हिंदी विभाग के तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय प्रेमचंद साहित्योत्सव 2023 का मंगलवार को समापन हो गया।

समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम निश्चित तौर पर शोधार्थियों के ज्ञान,विमर्श व कुशलता को विकसित करने में सहायता करते हैं। प्रेमचंद को हम समाज के सबसे परिवर्तनकारी साहित्यकार के रूप में जानते है। इनके साहित्य में हमारे समाज का चित्रण होता है, इन्होंने समाज को एक अलग दृष्टि से देखा, उसके विन्यास को समझा। कहा जा सकता है कि प्रेमचंद साहित्यकार होने के साथ-साथ एक कुशल समाजशास्त्री भी थे। वह मानव संबंधों का गहराई से विश्लेषण करते थे। मानव का समाज से, समाज का मानव से क्या संबंध है, उन्होंने बखूबी इसकी पड़ताल की थी। उनके पास एक सशक्त भाषा थी, जिसके माध्यम से वह समाज के अंतिम व्यक्ति की बात को सभी तक अवश्य पहुंचा पाते थे।

सत्र में संरक्षक के तौर पर मानविकी व भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि प्रेमचंद अपनी कथा के माध्यम से स्वत्व को पहचाना भारत का बोध उनके साहित्य में मिलता है।

समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से पधारे हिंदी एव॔ अखिल भारतीय भाषा विभाग के सह आचार्य डॉ. आशुतोष पार्थेश्वर ने कहा कि भारत बोध निर्भीक, है वह नैतिक भी है जो प्रेमचंद के साहित्य में मिलता है। निर्भय हो और वह सत्य के साथ हो यह गांधीजी सिखाते है, जिसे प्रेमचंद अपने साहित्य में स्थान देते है। प्रेमचंद के साहित्य में मनुष्य की करुणा का दायरा पशु, पेड़-पौधे तक जाता है। उनके साहित्य में साझेपन से भारत को आगे बढ़ाने और विकसित करने का वर्णन है। निश्चित तौर पर प्रेमचंद पर गांधी के आदर्श का प्रभाव है।

कार्यक्रम में चीन के क्वांनगतोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय से पधारे सह आचार्य डॉ विवेक मणि त्रिपाठी ने कहा कि भारत ज्ञान की भूमि है। चीन भारत को पश्चिम का स्वर्ग मानता है, क्योंकि हमारा भारत वसुधैव कुटुंबकम के लिए प्रसिद्ध है। प्रेमचंद हमारे आख्यान को सरल शब्दों में पाठक के लिए प्रस्तुत करते हैं। प्रेमचंद भारत बोध को जीया है। भारत की आत्मा को जानना है तो प्रेमचंद को पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि उन्होंने अपने साहित्य में स्वभाषा स्वदेशी एवं स्वत्व पर बल दिया है। भारतीय संस्कृति के आलोक में प्रेमचंद का साहित्य अनमोल है।

इससे पहले कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष व कार्यक्रम के संयोजक डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया, जबकि सत्र का सफल संचालन हिंदी विभाग की सहायक आचार्य और कार्यक्रम की सह संयोजक डॉ. गरिमा तिवारी ने किया, वहीं दो दिवसीय पांच सत्र की आंख्या प्रस्तुति शोधार्थी राजेश पाण्डेय ने किया।
कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने किया।
पूरे सत्र के दौरान कुल 32 शोध पत्रों का वाचन हुआ। शोध पत्र वाचन करने वाले सहायक आचार्य,शोधार्थियों को कुलपति महोदय ने प्रमाण पत्र दिए।

इस मौके पर विभाग के सहायक आचार्य डॉ. श्याम नंदन, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. विमलेश कुमार सिंह, राजनीतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ.सरिता तिवारी, सहायक आचार्य डॉ. उमेश पात्रा, संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. बबलू पाल सहित कई विभाग के शोधार्थियों व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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