Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
जानवरों को भी इंसान की तरह जीने का हक है- हाइकोर्ट. - श्रीनारद मीडिया

जानवरों को भी इंसान की तरह जीने का हक है- हाइकोर्ट.

जानवरों को भी इंसान की तरह जीने का हक है- हाइकोर्ट.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 उत्तराखंड हाइकोर्ट ने कहा था कि जानवरों को भी इंसान की तरह जीने का हक है. हर राज्य ने अपना राजकीय पशु या पक्षी घोषित किया है. असल में ऐसे आदेशों से जानवर बचते नहीं हैं, जब तक समाज में यह संदेश नहीं जाता कि प्रकृति ने धरती पर इंसान, वनस्पति और जीव-जंतुओं को जीने का समान अधिकार दिया है.

जीव-जंतु या वनस्पति अपने साथ हुए अन्याय का न तो प्रतिरोध कर सकते हैं और न ही दर्द कह पाते हैं, परंतु इस भेदभाव का बदला खुद प्रकृति ने लेना शुरू कर दिया. आज पर्यावरण संकट का मूल कारण इंसान द्वारा उपजाया गया असमान संतुलन ही है. अब धरती पर अस्तित्व का संकट है. जिस दिन खाद्य शृंखला टूटी, धरती से जीवन की डोर भी टूट जायेगी.

प्रकृति में हर एक जीव-जंतु का एक चक्र है. जंगल में यदि हिरण जरूरी है, तो शेर भी. शेर का भोजन हिरण है. प्राकृतिक संतुलन का यही चक्र है. हिरणों की संख्या बढ़ जाए, तो अंधाधुंध चराई से हरियाली का संकट खड़ा हो जायेगा, इस संतुलन के लिए शेर भी जरूरी है. वहीं ऊंचे पेड़ों की नियमित कटाई-छंटाई के लिए हाथी जैसा ऊंचा प्राणी भी और शेर-तेंदुए द्वारा छोड़े गये शिकार के अवशेष को सड़ने से पहले भक्षण करने के लिए लोमड़ी-भेड़िया भी. इसी तरह हर जानवर, कीट, पक्षी धरती पर इंसान के अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं.

ऐसे ही गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनिवार्य पक्षी है. नब्बे के दशक में भारतीय उपमहाद्वीप में करोड़ों गिद्ध थे, लेकिन अब कुछ लाख ही बचे हैं. संख्या घटने लगी, तो सरकार भी सतर्क हो गयी. चंडीगढ़ के पास पिंजौर, बुंदेलखंड में ओरछा सहित कई स्थानों पर गिद्ध संरक्षण की परियोजनाएं चल रही हैं. मरे पशुओं को खाकर परिवेश को स्वच्छ करने के कार्य में गिद्ध का कोई विकल्प नहीं है. दूध के लिए इंसान ने पालतू मवेशियों को रासायनिक इंजेक्शन देने शुरू कर दिये. वहीं मवेशियों के चारे की खेती में कीटनाशकों व रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ गया. ऐसे मरे हुए जानवरों को खाने के कारण गिद्धों की मौत होने लगी.

आधुनिकता ने गिद्ध ही नहीं, गौरेया, बाज, कठफोड़वा व कई अन्य पक्षियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है. ये पक्षी कीड़ों व कीटों को अपना भोजन बनाते हैं, जो खेती के लिए नुकसानदेह होते हैं. कौवा, मोर, टिटहिरी, उकाब व बगुला सहित कई पक्षी जहां पर्यावरण को शुद्ध रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं मानव जीवन के उपयोग में भी इनकी अहम भूमिका है.

प्रकृति के बिगड़ते संतुलन के पीछे अंधाधुंध कीटनाशक दवाइयों की बड़ी भूमिका है. कीड़े-मकोड़े व मक्खियों की बढ़ रही संख्या के कारण इन मांसाहारी पक्षियों की मानव जीवन में बहुत कमी खल रही है. यदि इसी प्रकार पक्षियों की संख्या घटती गयी, तो मनुष्य को भारी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है. यह सांप सहित कई जनघातक कीट-पतंगों की संख्या को नियंत्रित करने में अनिवार्य तत्व है. खेतों में रासायनिक दवाओं की वजह से इनकी मृत्यु हो जाती है. सांप को किसानों का मित्र कहा जाता है. आबोहवा बदलने पर सबसे पहले वही प्रभावित होते हैं. मेंढकों की कमी के भयंकर परिणाम सामने आये हैं. इसकी खुराक हैं वे कीड़े-मकोड़े, मच्छर तथा पतंगे, जो हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. मेंढक समाप्त होने से सांपों का भोजन कम हो गया, तो सांप भी कम हो गये. सांपों के कम होने से चूहों की संख्‍या बढ़ गयी. चूहे अनाज की फसलों को चट करने लगे.

हमारे पूर्वज जानते थे कि इंसान की बस्ती में कौवे का रहना स्वास्थ्य व अन्य कारणों से कितना महत्वपूण है. कौवे इंसान को अनेक बीमारियों एवं प्रदूषण से बचाते हैं. टीबी ग्रस्त रोगी के खखार में जीवाणु होते हैं, जिसे कौवे खा जाते हैं.

इससे जीवाणुओं का फैलाव नहीं होता. शहरी भोजन में रसायन तथा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के चलते कौवे भी समाज से विमुख होते जा रहे हैं. इंसानी जिंदगी में कौओं के महत्व को हमारे पुरखों ने बहुत पहले ही समझ लिया था. इनकी कम होती संख्या चिंता का सबब बन रही है. जानकार कहते हैं कि इसके जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि हम खुद ही हैं, जो पर्यावरण को प्रदूषित करके कौओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

भारत में संसार का केवल 2.4 प्रतिशत भूभाग है, जिसके सात से आठ प्रतिशत भूभाग पर विभिन्न प्रजातियां पायी जाती हैं. प्रजातियों की संवृद्धि के मामले में भारत स्तनधारियों में सातवें, पक्षियों में नौवें और सरीसृप में पांचवें स्थान पर है. कितना सधा हुआ खेल है प्रकृति का! मानव जीवन के लिए जल जरूरी है, तो जल को संरक्षित करने के लिए नदी-तालाब. नदी-तालाब में जल को स्वच्छ रखने के लिए मछली, कछुए और मेंढक अनिवार्य हैं. मछली उदर पूर्ति के लिए, तो मेंढक ज्यादा उत्पात न करें, इसके लिए सांप अनिवार्य हैं. सांप जब संकट बने तो उनके लिए मोर या नेवला.

कायनात ने एक शानदार सह-अस्तित्व और संतुलन का चक्र बनाया. हमारे पूर्वज यूं ही सांप या बैल या सिंह या मयूर की पूजा नहीं करते थे, जंगल के विकास के लिए छोटे-छोटे अदृश्य कीट भी उतने ही अनिवार्य हैं जितने कि इंसान. विडंबना है कि अधिक फसल के लालच में हम केंचुओं और कई अन्य कृषि-मित्र कीटों को मार रहे हैं.

Leave a Reply

error: Content is protected !!