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प्रतापी प्रताप को शत शत नमन । - श्रीनारद मीडिया

प्रतापी प्रताप को शत शत नमन ।

प्रतापी प्रताप को शत शत नमन ।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नमन युद्धवीर ! शत शत नमन ।

प्रताप ! तुम तो जानते थे कि अधिकांश रजवाड़े तुम्हारे साथ नही हैं । तुम्हें पता था कि मुगल सेना हुमायूं के दुःस्वप्न से आगे निकल चुकी है । अकबर की आंखों में शूल की तरह दिन रात खटकते थे तुम । फिर भी मैत्री चाहता था तुमसे । मानसिंह को भेजा था उसने । सिर्फ अधीनता स्वीकारनी थी तुम्हें । तुम्हारा राज्य कायम रहता । महाराणा बने रहते । लेकिन तुम्हें तो स्वर्गादपि गरियसी जननि जन्मभूमि की स्वाधीनता प्रिय थी । किसी भी कीमत पर । अपमानित कर के भेज दिया था मान सिंह को । मुगलिया सत्ता के मद में पगलाया मान सिंह वापस लौटा । हल्दी घाटी में सेनाएं आमने सामने हुईं ।

यह युद्ध बहुत महत्व का था प्रताप ! दुर्भाग्य से इतिहास लिखनेवाले नहीं समझ सके । ये भी कहा जा सकता है कि सोच समझकर एक नायक के गौरव को पृष्ठभूमि में धकेलना चाहा । व्यक्ति केंद्रित इतिहास को नकारने का प्रपंच करते रहे और व्यक्तियों का ही यशगान करते रहे । महाराणा में इन्हें नायक नहीं दिखा । कहा जाता है कि आज भी हल्दी घाटी में प्रेतात्माएँ तलवार टकराती हैं । आज भी महाराणा की वीरता के सामने शत्रुओं की आत्माएं चीत्कार करती हुई सुनाई देती हैं । युद्ध के मैदान में राजा सैनिक बनकर लड़े तो क्या होगा ? हल्दी घाटी ने यह मंजर देखा था अपनी आंखों से । पहली लड़ाई हार गए मुगल । दूसरी लड़ाई शुरू हुई । इस बार तोप गोले बरसा रहे थे । राणा के पास तोप नहीं था । मातृभूमि पर मिटने को संकल्पित योद्धाओं के सीने थे । योद्धाओं ने संकल्प लिया था कि अपनी छाती से तोप के गोलों की दिशा बदल देंगे । शोणित धार से हल्दी घाटी लाल हो गई । राणा के योद्धा ऐसे लड़ रहे थे जैसे नागिन केंचुल छोड़कर युद्ध के मैदान में आ गई हो ।

राणा तलाश रहे थे मान सिंह को । हाथी पर सवार मान सिंह खुश होने लगा था । चेतक ने छलांग लगाई । दोनों पैर हाथी के मस्तक पर था । भाला चला । पीलवान को लगा । मान सिंह जान बचाकर भाग चला । दिन के अंतिम प्रहर तक राणा लड़ते रहे । शत्रुओं का संहार करते रहे लेकिन शत्रु रक्तबीज की तरह बढ़ते जाते । सांस थमने लगी थी राणा की । इसी बीच झाला सरदार प्रकट हुए । राणा का मुकुट और मेवाड़ का चिह्न अपने हाथों में ले लिया । शत्रु सेना पर झाला सरदार टूट पड़े । हाहाकार मच गया शत्रु सेना में । सरदार ने राणा को भगवान एकलिंग का सौगंध देकर युद्ध के मैदान से वापस जाने को कहा था । कहा था कि तुम्हारे होने से आजादी की मशाल जलती रहेगी । इसे बुझने मत देना । शत्रु झाला को राणा समझ बैठे । झाला ने आजादी की अलख जगानेवाले योद्धा को अपने प्राण देकर सहेज लिया था । राणा कभी हारा नहीं । कभी झुका नहीं । कभी टूटा नहीं ।

आज तुम्हारी जयंती है प्रताप ! तुम्हारे होने से इस देश ने अपना वर्तमान स्वरूप पाया है । तुम्हारी सेना में सिर्फ राजपूत नहीं थे । मुसलमान भी थे । भील थे । दबे कुचले लोग थे । भामा शाह जैसे व्यापारी थे जिन्होंने जीवन भर की कमाई मिट्टी की स्वाधीनता के नाम कुर्बान कर दिया । तुम हमारे गौरव हो प्रताप ! इतिहास के पन्ने तुम्हारे बारे में भले खामोश रह जाएं , तुम्हारी कीर्ति गाथा हमारी आनेवाली पीढियां ह्रदय में आत्मसात करती रहेंगी । नमन युद्धवीर ! शत शत नमन ।

आभार-संजय सिंह

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