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जिले में भैया दूज, गोवर्धन पूजन, चित्रगुप्‍त पूजा की गई - श्रीनारद मीडिया

जिले में भैया दूज, गोवर्धन पूजन, चित्रगुप्‍त पूजा की गई

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श्रीनारद मीडिया, उतम पाठक, दारौंदा, सीवान (बिहार):

सिवान जिला के दारौंदा प्रखण्ड के क्षेत्रों में भैया दूज यानि गोवर्धन पूजन रविवार को मनाई गई।

धर्मग्रंथों के अनुसार भैया दूज चित्रगुप्त पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन यानी दिवाली के दूसरे दिन यम द्वितीया और भाई दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है।

मान्यता है कि इस तिथि को उनकी उत्पत्ति हुई थी।
पंचांग के अनुसार, इस साल चित्रगुप्त पूजा 3 नवंबर रविवार को मनाई गई।

इसे लेकर प्रखण्ड के दारौंदा,कोराड़ी,रामाछपरा, मंछा, कोरड़, मदारीचक, बगौरा आदि जगहों पर महिलाओं व लड़कियों ने रीति रिवाज के अनुसार गाय के गोबर से गोधन, गोधनी, की आकृति बनाकर कूटी।

बहने भाई की लंबी उम्र की कामना के लिए गोधन गोधनी बनाकर कूटने के पहले बहनें रेंगनी के कांट को जीभ पर सटाकर भाईयों को श्रापति हैं और कहती हैं कि फला भाई मर जास पुनः अपने भाईयों को रेंगनी के कांट को जीभ पर सटाकर जीवित करती हैं।
इसके बाद गोधन गोधनी की पूजन कर , कहानी सुन परम्परा के अनुसार महिलाएं मूसर से उन्हें मंगल गीत गाते हुए कूटती हैं।
उसके बाद कुंवारी लड़कियां कूटी हुई गोबर से घर में पीडिया लगाती हैं। तथा बहनें भाई को बजड़ी (चना और मिठाई) खिला लम्बी उम्र की कामना गोधन बाबा से करती हैं और भाई बहन को उपहार देता हैं।

वही आज कायस्थ समाज में चित्रगुप्त को आराध्य देव के रूप में विधि विधान से ब्राह्मणों ने षोडशोपचार विधि से पूजन अर्चन कराया।
इस दिन लोग चित्रगुप्त जयंती के रूप में मनाते हैं व लेखनी-दवात का पूजन करते हैं।
इसी के साथ लोग इस दिन लेखनी से संबंधित कार्यों को भी बंद रखते हैं। चित्रगुप्त पूजन को दवात पूजन के नाम से भी जाना जाता हैं।

पूजा के दौरान चित्रगुप्त जी की प्रतिमा के सामने कलम रखें। एक सफेद कागज पर हल्दी और रोली से उसपर ‘श्री गणेशाय नमः’ लिखकर। पांच देवता के नाम लिखते है और नीचे अपना नाम लिखकर रखते हैं।

चित्रगुप्त प्रार्थना मंत्र:

मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्। लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।

मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त का जन्म सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा के शरीर से कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को हुआ था। चूंकि वे भगवान ब्रह्मा के शरीर यानी ‘काया’ से पैदा हुए थे, इसलिए उनका एक नाम ‘कायस्थ’ भी है और पृथ्वी पर उन्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना है। चित्रों मे उन्हें हमेशा कलम और दवात (स्याही की बोतल) लिए हुए दिखाया जाता है। कायस्थ समुदाय का मानना ​​है कि वे चित्रगुप्त के वंशज यानी ‘चित्रांश’ हैं। इसलिए कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त पूजा की जाती है।

मनुष्यों के अच्छे-बुरे कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा यानी अकाउंट जो देवता रखते हैं, वे भगवान चित्रगुप्त। वे स्वर्गलोक में धर्मराज के सहायक और प्रधान लेखपाल हैं। भगवान चित्रगुप्त की पूजा देवताओं के यमराज के सहायक और लेखपाल रूप में पूजा जाता है। चित्रगुप्त भगवान व्यक्ति के पूरे जीवन के कर्मों का हिसाब रखते हैं। मान्यता है कि चित्रगुप्त पूजा के दिन उनकी पूजा से जीवन उन्नति, मधुर वाणी और बुद्धि में विकास का वरदान प्राप्त होता है।

कलम-दवात पूजा के दिन भगवान चित्रगुप्त का स्मरण करने से कार्य में उन्नति, आकर्षक वाणी और बुद्धि में वृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।

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