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आस्था की स्थली भरौली मठ। - श्रीनारद मीडिया

आस्था की स्थली भरौली मठ।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘धर्मो रक्षितः रक्षतः’

हमारी ज्ञान की परंपरा वेद से सदैव चली आ रही है। हमारी संस्कृति नित्य नूतन चिर पुरातन है। इसे सदैव नूतन नये कलरव के साथ बनाए रखने के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं। यह अनुष्ठान अपनी सांस्कृतिक विरासत को समेटे ग्राम्य जीवन को परिलक्षित करते हैं।
इस कड़ी में सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड अंतर्गत एक पंचायत व गांव है भरौली, जहां सैकड़ों वर्षो से वैष्णो मठ स्थित है यहां राम जानकी की मंदिर है। ज्ञात स्रोतों के मुताबिक इस मठ के संरक्षक’पुजारी-सेवा कर्ता- महाराज राम नारायण दास है। इनसे पहले भी दो और संत मठ की देखरेख करते अपना शरीर त्याग दिये।
इस भरौली मठ में प्रत्येक बसंत पंचमी से यज्ञ प्रारंभ होता है जो नौ दिनों तक चलता है। यह पिछले 25 वर्षों से अनवरत जारी है। इस वर्ष यह यज्ञ ‘मारुति नंदन महायज्ञ’ नाम से 5 फरवरी से प्रारंभ होकर 13 फरवरी 2022 को संपन्न हुआ।

‘अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभि’

अर्थात यज्ञ को संसार की सृष्टि का आधार बिंदु कहा गया है। हमारे शास्त्रों में यज्ञ की महत्ता बताई गई है।यही कारण है कि प्राचीन समय से कई प्रकार के यज्ञ समाज में कराये जाते रहे हैं।
ज्ञात हो कि यज्ञ योग की विधि है, यह प्रकृति से जुड़ने की अद्भुत सनातन व्यवस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य धार्मिक प्रवृत्ति के लिए संगठित करना और समूह में एकत्रित होकर मंत्र उच्चारण के द्वारा मन और भाव को केंद्रित करना है। यह प्रत्यक्ष रुप में इंद्रिय दोष को रोकती है और शारीरिक,मानसिक एवं भावनात्मक रूप से व्यक्ति को शुद्ध करती है।
यज्ञ शुद्ध होने की मूलतः प्रक्रिया है। अतः यज्ञ के तीन तात्पर्य है त्याग, बलिदान और शुभ कर्म।
त्याग अपनी कुप्रवृत्तियों का, बलिदान अपनी कुइच्छाओं का और शुभ कार्य जिससे जनमानस का भला हो।

श्रीनारद मीडिया की भरौली यात्रा।

श्रीनारद मीडिया की ओर से मेरा सौभाग्य रहा कि मैं भी यज्ञ में पूर्णाहुति के दिन सम्मिलित हुआ। इस यज्ञ के आचार्य सीवान पतार निवासी आदरणीय अरविंद मिश्रा जी रहे।
यहां हमने देखा कि जनता की अगाध आस्था है श्रद्धा है अपनी संस्कृति के प्रति। यहां भरने वाला मेला समाज की सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करता है। यहां के कार्यक्रमों में प्रातः 9:00 बजे से 1:00 बजे तक हवन पूजन अनुष्ठान, इसके बाद 1:00 बजे से 3:00 बजे तक रामलीला का मंचन, तत्पश्चात सांध्य आरती व रात्रि में गीत-संगीत प्रवचन का पाठ वातावरण व प्रकृति को मनोरम छटा से भर देता रहा।
श्रद्धालु भक्त आते जा रहे हैं यहां के भंडारे में जो अहर्निश चलता है, भरपेट भोजन कर रहे हैं,मेला घूम रहे हैं और अपने को धन्य मानकर ईश्वर को प्रणाम निवेदित करते हैं।


आप जब भी भरौली जाएं उस मठ में प्राचीन राम जानकी मंदिर का दर्शन करें,पूजन करें। लेकिन यदि आप वसंत ऋतु में जाते हैं तो प्रकृति की हरियाली, छटा एवं ग्रामीण जीवन के प्रति आपकी दृष्टि अवश्य ही बदल जाएगी।
हमारे ग्रंथों में वसंत ऋतु को लेकर कहा गया है कि–
‘ऋतु वसंत से हो गया कैसा यह अनुराग।
काली कोयल गा रही भांती भांती के राग।
धरती सुंदर सांवरी महके सारे खेत।

इस मनोरम देखते भूले अपना चेत।

वसंत सभी ऋतु का राजा है, ठंड का जाना दिन का समय बढ़ जाना और सुहानी धूप का अधिक होना हमेशा से जनमानस को आकर्षित करता है। हम इससे ऊर्जावान होते है। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में इस तरह के मठ का होना व्यक्ति को स्थूल से सूक्ष्म बना देता है।
नगर के कोलाहल व प्रदूषण से दूर भरौली मठ का परिसर पूरे नौ दिनों तक भक्तिमय होता है।यहां ग्रामीण वस्तुओं से सजने व लगने वाले छोटे-छोटे दुकान,मिठाइयों की दूकान, जलेबी की दुकान ग्रामीण संस्कृति व विरासत को धरती पर उतार देती है।

अंततः कहा जा सकता है कि–‘
चंदन है इस देश की माटी,
तपोभूमि हर ग्राम है,
हर बाला देवी की प्रतिमा,

बच्चा बच्चा राम है।
मैं विशेष रूप से भरौली निवासी आदरणीय कमलेश्वर दुबे,आदित्य दुबे उर्फ छोटे जी का आभारी हूं जिन्होंने मुझे इस पावन भूमि से साक्षात्कार कराया।

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