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क्या अफगान लड़ाके कश्मीर में दस्तक दे सकते हैं? - श्रीनारद मीडिया

क्या अफगान लड़ाके कश्मीर में दस्तक दे सकते हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यमन में उन्होंने पटाखे फोड़े, सोमालिया में मिठाइयां बांटी और सीरिया में जिहाद के माध्यम से एक ‘आपराधिक सरकार’ को हटाने का जीता-जागता उदाहरण बनने के लिए तालिबान की तारीफ की। दुनियाभर में तालिबान के हाथों अफगानिस्तान सरकार के पतन से जिहादी खुश हैं। इसके व्यापक और दूरगामी प्रभाव होंंगे।

कमजोर और गरीब देशों में जिहादियों का प्रभाव बढ़ेगा। वे ऐसे देशों में कुछ इलाकों पर कब्जा करने की कोशिश करेंगे। जिहादी आतंकवादी गुटों के मामले में पाकिस्तान की स्थिति चिंताजनक हो सकती है। पाक समर्थक आतंकवादी कश्मीर में अधिक सक्रिय होंगे। अफगान लड़ाके उनकी मदद के लिए आ सकते हैं।

भविष्य में दुनिया को जिहाद से निपटना होगा। कुछ तालिबानी विदेशी सुन्नी जिहादियों की मदद को अपनी जिम्मेदारी मानेंगे तो कुछ पाकिस्तान में अपने भाइयों की मदद करेंगे। इससे परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान में अस्थिरता फैलेगी। अफगानिस्तान के बाहर मुख्य असर मनोवैज्ञानिक होगा। तालिबान की जीत अन्य देशों में जिहादियों का हौसला बढ़ाएगी और नए लोगों को आतंकवाद से जोड़ेगी।

अमीर देशों में कुछ लोगों को आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की प्रेरणा मिलेगी। कमजोर और गरीब देशों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा। इनमें जिहादी गुट इलाके पर कब्जा करने के लिए हत्याएं करेंगे। वे सरकार से टकराएंगे। पाकिस्तान, यमन, सीरिया, नाइजीरिया, माली, सोमालिया और मोजांबिक जैसे देशों में वे पहले ही ऐसा कर रहे हैं। वे एशिया, अफ्रीका और मध्यपूर्व के कुछ देशों में ऐसा करने की तैयारी में जुटे हैं।

सभी जिहादी एक जैसे नहीं हैं। कई आपस में लड़ते हैं। इस्लामिक स्टेट के समर्थक अमेरिका का पिट्ठू कहकर तालिबान की हंसी उड़ाते हैं। अधिकतर जिहादी गुट स्थानीय कारणों से प्रेरित हैं जैसे कि शोषक और अत्याचारी सरकार, जातीय या धार्मिक विभाजन। वे ग्लोबल स्थितियों पर भी नजर रखते हैं। अपने फोन पर रोज देखते हैं कि उनके देश के समान ही चीन के शिनजियांग से लेकर गाजा पट्टी तक मुसलमान प्रताड़ित हो रहे हैं।

खराब सरकारें जिहादीकरण के लिए रास्ता खोलती हैं। कई ग्रामीण अफगानियों की धारणा है कि तालिबानी अदालतों का न्याय कठोर जरूर है पर जल्द होता है। ये अदालतें सरकारी न्यायालयों से कम भ्रष्ट हैं। तालिबानी चेकपोस्ट में कम लूट होती है। यह भी एक कारण है कि सत्ता के लिए तालिबानियों के निर्णायक कूच का बहुत कम प्रतिरोध हुआ है। यह सिद्धांत अन्य स्थानों में लागू होता है।

सत्ता में आने के बाद जिहादियों के लिए उनकी विचारधारा शासन करना मुश्किल कर देती है। इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर उनका शासन केवल तीन साल चल सका था। वे लूटपाट और अपहरण के अलावा दूसरी आर्थिक गतिविधियां नहीं करते हैं। तालिबानियों का पहला कार्यकाल डरावना था। इसलिए वरिष्ठ तालिबानी नेता जोर देते हैं कि वे मानव अधिकारों का सम्मान करते हैं। लेकिन, आगे मुश्किल समय है। अमेरिका में जमा धन रुकने के कारण पैसे की कमी है। अफगान अर्थव्यवस्था संकट में हैं। तालिबानियों ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए अब तक कोई योजना पेश नहीं की है।

कश्मीर में आतंकवादियों को सहारा मिलेगा
पाकिस्तान सरकार लंबे समय से तालिबान की मदद कर रही है। वह अफगानिस्तान में भारत का प्रभाव कम होने से खुश होगी। कश्मीर में पाक समर्थक उग्रवादियों को हिंदुकुश से आने वाले अफगान लड़ाकों का सहारा मिलेगा। प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी के प्रमुख ने 23 अगस्त को पाकिस्तानी टेलीविजन पर कहा कि तालिबान का कहना है कि वे हमारे लिए कश्मीर को आजाद कराएंगे।

पाकिस्तानी तालिबान कहे जाने वाले जिहादी ग्रुप तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने 2007 से 2014 तक वहां भयानक युद्ध छेड़ा था। उसके कई सदस्य अल कायदा से जुड़े हैं। घाव सहला रहे टीटीपी ने अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं। उसने पिछले साल पाकिस्तान में 120 और पिछले माह 26 हमले किए थे।

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